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गीत, ग़ज़ल और कविता हमें मानसिक तनाव से मुक्त करती है !”:  – प्रेम किरण

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सपाटबयानी कविता के अपेक्षा  गीत और ग़ज़ल आम पाठकों की पहली पसंद  ! “: सिद्धेश्वर

 

पटना :25/04/2022 ! ” मुट्ठी भर लोगों के लिए हमें कविता नहीं लिखनी है,  बल्कि अस्सी प्रतिशत आम पाठकों के लिए लिखनी है l  जीवंत साहित्य के लिए यह जरूरी है कि हम जिनके लिए कविता,  कहानी, लघुकथा लिख रहे हैं,  उनको समझ में आने वाली हो और उनके हृदय से वह सीधा संवाद कर सकें l  साहित्य की यही उपयोगिता है और प्रासंगिकता भी l  शायद इसलिए सपाटबयानी कविता के अपेक्षा  गीत और ग़ज़ल  आम पाठकों की पहली पसंद बन गई  है l ”

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के ‘ अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका ‘ के पेज पर ‘हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन ‘ का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया !

ऑनलाइन कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ शायर प्रेम किरण ने कहा कि – ” आदमी के दिन भर की थका देने वाली भागदौड़ के बाद जब शाम को आराम के पल मिलते हैं तो यही गीत, ग़ज़ल और कविता उसे मानसिक तनाव से मुक्त करता है। इसलिए यह कहना कि कविता का अंत हो गया है, मुझे मुनासिब नहीं लगता। अब सवाल यह उठता है कि कविता कैसी हो ? कविता के पाठक या श्रोता दो प्रकार के होते हैं। एक वो जिनके लिए कविता सिर्फ़ मनोरंजन का साधन है। दूसरे वो जिनके लिए कविता बौद्धिक परिष्कार का साधन है। पहली श्रेणी के लोग अपने मनोरंजन के लिए फिल्मी गीतों या ग़ज़लों के कैसेट सुनकर रिलैक्स होते हैं तो दूसरी श्रेणी के लोग स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाओं को पढ़कर अपना बौद्धिक परिष्कार करते हैं। दोनों ही स्तर पर कविताओं की उपयोगिता प्रासंगिक है l”

मुरारी मधुकर ने कहा कि -”  जिस मुक्तछंद के जनक महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जैसे कवि हों, वह  सपाटबयानी  कैसे हो सकती है ? मुक्तछंद में भी लयात्मकता एवं काव्यात्मक होनी  ही चाहिए l  कई फिल्मी गीत भी इन्हीं  कविता के मानक कोटि में समाहित है। ”

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सीमा रानी ने कहा कि -“आज के ऑनलाइन कवि सम्मेलन में पढ़ी गई  अधिकांश कविताएं इस बात का प्रतीक है कि कविता अभी जिंदा है और आज के कवि पाठकों के प्रति सचेत है l साहित्य के प्रति,  संयोजक सिद्धेश्वर जी का लगन और समर्पण की जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है। एक ही मंच पर नए और पुराने कवियों को समेटकर रखना बहुत बड़ी चुनौती है,जिसे इस माध्यम से वे साकार रूप दे रहे हैं l

” गीत, गजल और सपाटबयानी कविता “पर विस्तृत चर्चा के बाद,  देशभर के लगभग दो दर्जन  रचनाकारों ने अपनी सारगर्भित कविताओं से इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन को यादगार बना दिया l

सर्वश्री समीर परिमल ने -” जहां के रिवाजों की ऐसी की तैसी!, जमीं  के खुदाओं की ऐसी की तैसी !”/ भावना शेखर ने -” सोचा था मेरी भी पतंग उड़ेगी आसमान में एक दिन !”/ अभिमत राय ने -“नाम गुमनाम होने लगे हैं,  हसरतें शोहरतों  के इंतजार में, जरजर जर्जर होने लगे हैं !”/ डॉ अर्चना त्रिपाठी ने- “पतन निश्चित है, सूख रही हैं जड़े,  संस्कृति की डर है, कहीं नई नसलें  की पौध नष्ट न कर दें l”/रूबी भूषण ने – “थकी बहुत हूं कठिन सफर में चलते-चलते, तेरे कांधे पर सो जाना चाह रही हूँ !”

रशीद गौरी ) ने -”  बताओ परिस्थितियों की सिकुड़ती  बदहवास रेखाओं !” /उजालों को बांधकर समर्थक संबंधों पर !”/ नीलू अग्रवाल ने -”  जिंदगी ने दिया तोहफा, कुबूल फरमा लें,  चलो यूं ही जिएं,  साथ निभा लें !”/ सीमा रानी ने -“मई जून का महीना पिछले साल की तरह फिर घूम कर आ गए !”/ श्रीकांत ने – “फिर फिर फिर घिर  आए बादल!”/ प्रियंका त्रिवेदी (बक्सर ) ने -”  आपका मार्गदर्शन हमें चाहिए, हमारी खामियां आप गिनाते जाइए !”

सिद्धेश्वर ने-”  इस जीवन में ऐसा कौन है ?,जीवित रहते रहता जो मौन है ?”/  रवि खंडेलवाल (इंदौर ) ने -” कानून की निगाह क्या उठती चली गई, कातिल नजर गुनाह की झुकती चली गई !”/  पूनम श्रेयसी ने -“चांद पर कविता रचूं मैं, ये अभी मुमकिन कहां ?, लगे ये रोटी के जैसा,  पर मिले प्रतिदिन कहां ?”/ मधुरेश नारायण ने -”  एकाकी जीवन होता है जिनका कोई होता  नहीं, सपनों से सुंदर घर की  परिकल्पना नारी ही करती है l”/कालजयी ” घनश्याम ” ने -‘  यूं आंखें मूंद कर भी  क्यों मेरे सरकार बैठे हैं!, कि रखकर हाथों पर हाथ को लाचार बैठे हैं !”/डॉ शरद नारायण खरे ने -” गीत प्यार के कैसे गांउँ ?,  मौसम है बारूदी  खुशियां तो हर रोज की सिसकती,  हर गम है बारूदी !”/ शैलजा सिंह ने -”  तू आग और मैं पानी, क्यों है इतनी हैरानी ?”/ मुरारी मधुकर ने -“नित्य ही चर्चा में होता है महंगाई की दुहाई !”/ प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र  ने – “लिखने बैठी प्रीतम को पाती, शब्द नहीं मिलता मुझको !”/  नीलम नारंग (  नई दिल्ली) ने – “जीना आना चाहिए,  दुख तो सबके, जीवन में है,  दुखों का निवारण आना चाहिए !” /  ऋचा वर्मा ने -“धूल वातावरण का सूक्षमतम कण,  बहुत जिद्दी और लगनशील भी l”/  समीर उपाध्याय(गुजरात ) ने -”  हे नाथ अग्निसाक्षी मैं फेरे लेकर,  मुझे अपनी जीवनसंगिनी बनाया!”/  राज प्रिया रानी ने -”  न चुप रहने देता न खुशियां बांटता जमाना,   जीवन के हर मोड़ पर खंजर चुभोता जमाना !”  जैसी गीत,  गजल और  छंद मुक्त कविताओं का पाठ किया l

इनके अतिरिक्त आराधना प्रसाद, ,  दुर्गेश मोहन,  संतोष मालवीय, ज्योत्सना सक्सेना, बृजेंद्र मिश्रा,  ललन सिंह, खुशबू मिश्र, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय, अनिरुद्ध झा दिवाकर, बीना गुप्ता, स्वास्तिका,  अभिषेक  आदि की भी भागीदारी रही।

( प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव ) / एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष ) भारतीय युवा साहित्यकार परिषद) {मोबाइल: 9234760365 } Email :[email protected]

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