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-डॉ. जियाउर रहमान जाफरी

 

बज़ाहिर और दिन खाली उठेगी

मगर वो ईद में  जल्दी  उठेगी

चलो जल्दी चलें अपने घरों को

अभी बस शाम में आंधी उठेगी

ज़माना कब तलक दुश्मन बनेगा

कहां  तक प्यार की अर्थी उठेगी

रहेंगी  फिर वहीं  नफ़रत  यहां पर

सियासी  जब कहीं बोली उठेगी

कई दिल टूट जाएंगे यहां पर

यहीं जब बीच से डोली उठेगी

 

— स्नातकोत्तर हिंदी विभाग

मिर्जा गालिब कॉलेज गया, बिहार

9934847941

 

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