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– मनिन्दर कौर

सुप्रभात कहते हुए,

सूरज की किरणों ने ली अंगड़ाई|

यूँ लगा अंबर धरती से आ मिला|

मिलन की इस बेला में,

धरा ने न्यौछावर कर दिये सुंदर दृश्य ।

धरती का प्रफुलित हुआ हर कोना,

मनमोहक यह नजारा|

यह हरियाली, यह फूलों का भंडारा,

सब अर्पित है तुझे,

नई सुबह के उजियारे|

उगते ही सूरज की किरणे,

उड़ उड़ लग गई सृष्टी को जगाने|

फूलों में रंग भर हरियाली को गहराने|

बाकी है अभी फसलों को पकाना,

तितलियों का फूलों पर मंडराना,

चिड़ियों का चहचहाना,

मैं तो रब की नियमावली में चलता हूं,

इसीलिये ‘ मनिंदर’  सूरज कहलाता हूं|

इसीलिये सूरज कहलाता हूं|

  • औरंगाबाद

9326183934

 

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