Spread the love

 

 

 

-रीतु प्रज्ञा

कविता

ई की भ गेलै भगवान?
नहि बदलल चान आर सुरुज
नहि बदलल प्रकृतिक भेट
किएक बदलि गेल इंसान?
एक दोसर कें देखि
मुंह अइंठै छी हम
मुंह तकैत छी हम।
पोसने छी कटुता हृदय
भ रहल अछि अपनापन खतम
ईर्ष्याक केने छी खेती
नहि झुकैत छी सहृदय
अहंकार मे मगन छी हम
मुंह तकैत छी हम।
तरसैया मुन्ना-मुन्नी सदिखन
टूटि गेल अछि दाई-बाबाक सिनेहक बंधन
जेठक छाया बिसरि रहल छी हम
मुंह तकैत छी हम।
नहि रहल रिश्ता मे जुड़ाव
माटिक देहिया स होईत अछि लोभक रिसाव
देखि दोसरक तरक्की जरैत छी हम
भ कुंठित मुंह तकैत छी हम।
कानि रहल अछि गाछ-पात
देखि , सुनि ईर्ष्याक,घृणाक बात
पहिने जकां आब
नहि फुलाइत अछि फूल
नहि फरैत अछि फल
बहि रहल अछि माटिक दल
भाव लेल तरसै छी हम
टुकूर-टुकूर तकैत छी हम
एक-दोसर के मुंह तकैत छी हम।
मुंह तकैत छी हम।

– दरभंगा, बिहार

Leave a Reply

Your email address will not be published.

satta king gali