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स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने में, शब्दों की अहम भूमिका रही है !”: सिद्धेश्वर

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।” :डॉ सविता मिश्रा मागधी
—————————— पटना :14/07/2021!” सिद्धेश्वर के संयोजन में, “स्वतंत्रता आन्दोलन में साहित्य की भूमिका !” विषय पर ऑनलाइन ” हेलो फेसबुक चर्चा-परिचर्चा सम्मेलन का आयोजन किया गया l पूरे संगोष्ठी का संचालन करते हुए सिद्धेश्वर ने अपनी डायरीनामा में कहा कि – ” आंदोलन चाहे जिस उद्देश्य के तहत निहित हो, लेकिन उसे गति देने में, उसके भीतर प्राणवायु भरने में, शब्दों की अहम् भूमिका रही है ! ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति ना होगा कि हमारे देश की स्वतंत्रता आंदोलन का ऐसा सार्थक परिणाम सामने नहीं आता, अगर शब्दों के माध्यम से, जनमानस के हृदय को उद्वेलित करने, उनकी चेतना को जागृत करने, उनके भीतर की सोई हुई संवेदना को ललकारने का काम हिंदी साहित्य न किया होता ! “
दो घंटे तक चली इस संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कथा लेखिका और कवयित्री डॉ सविता मिश्रा मागधी ने कहा कि – ” साहित्य की अभिव्यक्ति सदा देश समाज और मानव उत्थान के प्रति रहती आई है। चाहे उनकी विधा गद्य रही हो या पद्य। हम जानते हैं कि वही देश और समाज प्रगतिशील रहता है, जो तन-मन-धन तीनों से स्वतंत्र हो। “रामचंद्र द्विवेदी यानी प्रदीप की इन पंक्तियों को किस देश भक्त में आत्मसात ना किया होगा:-“आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है/दूर हटो ऐ दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है।”
इस संगोष्ठी के मुख्य अतिथि साहित्य त्रिवेणी के संपादक का वरिष्ठ कविडॉ कुंवर नारायण सिंह ‘मार्तण्ड ‘, कोलकाता ने कहा कि – “अंधकार है वहां जहां आदित्य नहीं है/मुर्दा है वह देश जहां साहित्य नहीं है..! “
आधुनिक युग में जब अंग्रेजों के अत्याचार चरमसीमा पर पहुंच गए और देश का जनमानस उनसे मुक्ति पाने के लिए छटपटाने लगा तो देश के कोने कोने में स्वतंत्रता के लिए आंदोलन शुरू हो गया। और आंदोलनकारियों को जोश दिलाने का काम साहित्यकार करने लगे थे l
विशिष्ट अतिथि :डॉ शरद नारायण खरे (म, प्र) ने कहा कि “आंदोलन के समय साहित्यकारों ने अपनी लेखनी से जन-मानस को जागृति किया।”
प्रतिभागियों ने अपने उत्कृष्ट विचार व्यक्त किए ! डॉ ऋचा शर्मा के अनुसार “कवि आपने विचार देने से कभी पीछे नहीं रहता।” डॉ. पुष्पा जमुआर “कवियों की लेखनी घर-घर पहुँच कर क्रांति की चिनगारी फूँकी।” राजप्रिया रानी “आजादी में कलम की भूमिका अहम थी।’ अपूर्व कुमार ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि “साहित्यकारों ने वीर रस की कविताओं से आंदोलनकारियों को उत्साहित किया।” माधुरी भट्ट “सच्चा देशभक्त तन-मन से अर्पित रहता है देश के लिए।”
दुर्गेश मोहन “साहित्य सृजन एक हथियार की तरह आंदोलनकारियों के लिए संबल बना।” राजकांता राज “भारत ने अधिकतर लड़ाई कलम से लड़ी।” डॉ. नगेन्द्र मेहता “साहित्यकार जन चेतना जगाने में सबसे आगे रहता है।” डॉ. मीना कुमारी “ओजश्वी उद्गारों द्वारा कवि देश प्रेम की भावना जगाने में सदा समर्पित रहे।” डॉ.सविता मिश्रा मागधी के मतानुसार “साहित्यकारों ने जन-मानस को समझा दिया कि ‘पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।” अतः आजादी के लिए आंदोलन आवश्यक है।”
इससे संगोष्ठी में भाग लेने वाले अन्य प्रमुख लोग थे : ” संतोष मालवीय, श्रीकांत गुप्ता, घनश्याम राम, अंजू भारती, पुष्प रंजन, संजय रॉय और मुसाफिर बैठा !

प्रस्तुति: ऋचा वर्मा ( सचिव) और सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष) / भारतीय युवा साहित्यकार परिषद मोबाइल 9 2347 60 365

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