– सन्तोष सुपेकर
राजपाल खेत से गांव के अपने घर मे लौटे तो बच्चे को पढ़ाती रीमा उठी और रसोईघर में चली गई।
“मम्मी…” टिंकू गला फाड़कर चिल्लाया, “मेरा होमवर्क पूरा करवाओ न।”
“बेटा, थोड़ा दादाजी से करवा ले। मैं जरा खाना गरम कर दूं।”
“बाबा, बाबा” टिंकू कुछ डरता-डरता बोला ,” बादल शब्द का वाक्य में प्रयोग लिखना है। लिखवा दो न।”
“ऐ? बादल?” थके हुए राजपाल बच्चे को डांटने ही वाले थे कि बादल शब्द सुन रुक गए। मार्च के महीने में आसमान में बादल देखकर आए वे वैसे ही तनाव में थे। बोले, “लिख ले बेटा, किसान की ज़िंदगी का अहम हिस्सा हैं बादल! समय पर न आएं तो मुसीबत और समय से पहले आ जाएं तो और ज्यादा मुसीबत!”
अच्छी लघुकथा। संतोष सूपेकर की लघुकथाएं उम्दा होती हैं।