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– सुरेन्द्र कौर बग्गा

 

मेरी 12 वर्षीय बेटी रिया रोज आटो- रिक्शा से स्कूल जाती थी । वह अक्सर ही मुझसे नाराजगी से कहती, “मम्मी, आप तो इतनी बड़ी सरकारी अफसर हो आप के पास तो सरकारी गाड़ी और ड्राइवर भी है फिर भी आप हमें ऑटो रिक्शा से स्कूल भेजती हो।”

मैं उसे समझाती, “सरकार ने मुझे गाड़ी सरकारी काम के लिए दी है, उसमें मैं तुम्हें स्कूल नहीं भेज सकती।”

वह फिर बोलना शुरू कर देती, “मम्मी, हमारी क्लास में पढ़ने वाली अदिति के पापा तो आपसे बहुत छोटे वाले अफसर है, पर उनके पास तो दो-तीन बड़ी – बडी कारें हैं वह तो रोज स्कूल कार से आती-जाती है। आप तो हमें रोज – रोज टिफिन में बस पराठा – सब्जी ही देती हो पर अदिति तो टिफिन में रोज केक, पेस्ट्री, ड्राई फ्रूट और पिज्जा- बर्गर लाती है । उसके पापा उसे खूब सारी पाकेट – मनी भी देते हैं। आप तो हमसे दस रूपये का हिसाब भी दस बार पूछती हो! ”

मैं उसे समझाती, “बेटा, सभी को अपना काम ईमानदारी और सच्चाई से करना चाहिए। गलत तरीके से कमाया हुआ धन पाप करने के समान होता है । बुरे कामों का हमेशा बुरा ही नतीजा होता है।”

लेकिन बाल मन को यह सब बातें कहाँ समझ में आती ?

एक दिन समाचार पत्र के मुख्य पृष्ठ पर अदिति के पापा का रिश्वत लेते हुए पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने का समाचार फोटो सहित प्रकाशित हुआ। उस दिन रिया की क्लास में इसी समाचार को लेकर बातें हो रही थी। बच्चे आपस में बात कर रहे थे, “अदिति के पापा तो बहुत बुरे काम करते हैं, इसीलिए तो पुलिस उन्हें पकड़ कर ले गई है।” सभी बच्चे अदिति को चिढ़ा रहे थे। उसकी पक्की सहेली भी उसकी बैंच से उठकर दूसरी जगह जाकर बैठ गई थी।

अदिति को ऐसा लग रहा था मानो उसने कोई बड़ा अपराध कर दिया हो। हमेशा चहकने वाली आज गुमसुम सी अकेली उदास बैठी थी।

अदिति के बाल मन को इस घटना से बड़ा आघात पहुंचा था। वह अपने पापा का और खुद का अपमान सहन नहीं कर पा रही थी ।

दूसरे दिन समाचार पत्रों के मुख्य पृष्ठ की खबर थी कि रिश्वतखोर अफसर की 12 वर्षीय बेटी ने घर में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली ।

–  343 विष्णुपुरी एनेक्स, इंदौर

मो.9165176399

 

One thought on “बाल मन की व्यथा”
  1. बच्चे फूलों के समान, इसीलिये कहाते हैं।किसी भी प्रकार का आघात नहीं सह सकते।

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