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– सिद्धेश्वर

 

दर्जनों लड़कियों को देखकर छांट देने के बाद, जब दिनेश को माधवी भा गई, तब माधुरी के बाबूजी ने दिनेश को साफ-साफ कह सुनाया –

” बेटे ! मेरी बेटी तुम्हें पसंद आई, उसे ही दहेज समझो l दहेज के तौर पर पांच-सात लाख रुपये और हजारों रुपए के सामान नहीं दे पाऊंगा मैं !”

“आप भी कैसी बातें करते हैं ? मैं लेखक-पत्रकार हूं । मैं दहेज के खिलाफ शुरू से ही आवाज उठाता आया हूं l  आप अपनी इच्छा से जो कुछ भी देंगे, मुझे स्वीकार होगा ।”

“वाह बेटा वाह !  धन्य है तुम्हारे संस्कार ! तुम्हारे जैसे आदर्श विचार वाले लड़के आज के कलयुग में मिलते ही कहां है ? तो… मैं शादी पक्की समझूं  ? ”

” क्यों नहीं ? किंतु आप तो जानते ही हैं कि मेरे पिताजी मेरी शादी में एक पैसा भी खर्च नहीं कर सकते ! और मेरी शादी भी धूमधाम से करना चाहते हैं l अब बैंड बाजे, झारबती, रिश्ते-पार्टी यानि  सब मिलाकर दो-तीन लाख रुपये तो खर्च हो ही जाएंगे न ? ”

“लेकिन मैं इतने पैसे कहां से लाऊंगा ? फिर आदर्श विवाह तो कोर्ट या मंदिर में भी किया जा सकता है बेटा ! पार्टी देने की बात है, तो उतना भार संभाल लूंगा मैं l

थोड़ा रुक कर दिनेश आगे बोला –

“फिर आपके पास पैसे तो होंगे ही न ? आपने क्या यह सोचकर पैसे जमा नहीं किए हैं कि कोई मुफ्त में आपकी बेटी से शादी कर लेगा !”

“नहीं बेटा, ऐसी बात नहीं है ! अगर दहेज देना ही पड़े, तो लड़की के बाप को, अपना मकान जमीन भी गिरवी रखनी पड़ती है l आपकी इतनी ही जिद है तो मैं अपने बेटे के सामने हाथ पसार कर किसी प्रकार एक लाख रुपये नगद और बाराती के खाने पीने का इंतजाम कर लूंगा l इससे अधिक पैसे का इंतजाम नहीं होगा मुझसे ! ”

” माफ कीजिएगा मैं अपने लिए दहेज की मोटी रकम नहीं ले रहा तो कम से कम आपको इतना तो करना ही पड़ेगा… और हां ! आपकी बेटी के गले में सिर्फ मंगलसूत्र नहीं होना चाहिये l मंगलसूत्र के रूप में सोने का हार होना चाहिए, वह भी वजनदार और असली सोने का…!”

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