– समीर उपाध्याय ‘ललित’
प्रेम हूं मैं।
एक खूबसूरत एहसास हूं मैं।
मेरी अनुभूति अपने आप में अद्वितीय और बेजोड़ है।
एक शाश्वत भाव हूं मैं।
कल भी था, आज भी हूं और कल भी रहूंगा।
जीवन के साथ जन्मा हूं,
लेकिन मृत्यु के बाद भी मरूंगा नहीं,
क्योंकि चिरंतन हूं मैं।
प्रेम हूं मैं।
बदले में कुछ भी पाने की अपेक्षा नहीं।
सिर्फ़ देने के लिए आया हूं,
क्योंकि ‘समर्पण’ का पर्याय हूं मैं।
प्रेम हूं मैं।
सुख और संतोष देने की खातिर
सबकुछ निछावर करने के लिए आया हूं,
क्योंकि ‘त्याग’ का पर्याय हूं मैं।
प्रेम हूं मैं।
जीवन में भावना की
कभी समाप्त ना होनेवाली नदी बनकर आया हूं,
क्योंकि ‘बहाव’ का पर्याय हूं मैं।
प्रेम हूं मैं।
असीमित आकाश में
ऊंची उड़ान भराने के लिए आया हूं,
क्योंकि ‘असीम’ का पर्याय हूं मैं।
प्रेम हूं मैं।
अंधेरी निशा में
एक नन्हा-सा दीपक जलाने के लिए आया हूं,
क्योंकि ‘प्रकाश’ का पर्याय हूं मैं।
प्रेम हूं मैं।
जीवन बगिया में
एक छोटा-सा फूल खिलाने के लिए आया हूं,
क्योंकि ‘परिमल’ का पर्याय हूं मैं।
प्रेम हूं मैं।
नीरस जीवन में
जीने की आशा जगान के लिए आया हूं,
क्योंकि ‘चाहत’ का पर्याय हूं मैं।
प्रेम हूं मैं।
दरवाजे पर दस्तक देकर
सकारात्मकता फैलाने के लिए आया हूं,
क्योंकि ‘ऊर्जा’ का पर्याय हूं मैं।
प्रेम हूं मैं।
ना उम्मीद होने पर
परम तत्व का आभास कराने के लिए आया हूं,
क्योंकि ‘ईश्वर’ का पर्याय हूं मैं।
प्रेम हूं मैं।
दिव्य अनुभूति हूं मैं।
हर धर्म का सार हूं मैं।
जीवन का आधार हूं मैं।
प्रेम हूं मैं।
ज़िंदगी की तस्वीर ही कुछ बदल गई
तुम्हारे किरदार को किन अल्फाजों में बयां करूं?
किन अल्फ़ाज़ों में तुम्हें नवाजूं?
मेरा शब्दकोश ही हो गया खाली-खाली।