Spread the love

 

– डॉ. मीना कुमारी परिहार

 

अरूण दयाल जी काफी दिनों से परेशान  चल रहे थे। एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए बेटी की शादी करना गंगा नहाने के समान है। ऐसे में बिटिया के लिए बहुत रिश्ते आ रहे थे , लेकिन पैसे पर बात अटक जाती थी…।

किसी तरह से एक रिश्ता पक्का हुआ। छोटा भाई जो 12 वर्ष का था दौड़ता हुआ आया और अपने पापा से बोला, “पापा…पापा, दीदी के होनेवाले सास और ससुर कल ही आ रहे हैं अभी जीजा जी ने फोन पर बताया है…।”

“ठीक है बेटा, मैं तैयारी में लग जाता हूं..।” पिता अरूण दयाल जी पहले से ही काफी परेशान और उदास बैठे थे धीमी आवाज में बोले, “हां, बेटा, उन्होंने मुझे बताया था कि वो दहेज की बात करने आ रहे हैं और बोले कि दहेज के बारे में आप से जरूरी बात करनी है…।

“क्या कहूं, बड़ी मुश्किल से यह अच्छा लड़का मिला था… अगर उनकी दहेज की मांग इतना  ज्यादा हो कि मैं पूरी नहीं कर पाया तो..?” कहते-कहते उनकी आंखें डबडबा गईं।

घर के सभी सदस्यों के मन और चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं।  लड़की भी काफी उदास हो गई थी।

खैर, अगले ही दिन समधी-समधन जी  आए। उनकी खूब आवभगत की गयी। स्वागत में कोई कसर अरूण दयाल जी नहीं छोड़ा।

कुछ देर बैठने के बाद होनेवाले दुल्हे के पिता ने लड़की के पिता से कहा, “अरूण दयाल जी, अब काम की बात हो जाए… हमारे और आपके दरमियां….।”

अरूण दयाल जी के दिल की धड़कन बढ़ गई थी। बोले, “हां… हां, समधी जी, जो आप हुकूम करें… सिर आंखों पर…”

लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी खिसकाई अरूण ‌दयाल जी की कुर्सी के नजदीक ।

फिर धीरे से कहा, “मैं कल ही बारात लेकर आ रहा हूं बहुत ही शुभ मुहुर्त है और मुझे आपकी बेटी के सिवाय दहेज के नाम पर कुछ नहीं चाहिए। मुझे तो मेरे घर के लिए लक्ष्मी स्वरूपा बहू चाहिए।”

अब तो अरूण दयाल जी की आंखों में खुशी के आंसू छलक उठे थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

satta king gali