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 -डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल

सेवानिवृत्त होने के बाद आज पहली बार अपने पुराने दफ्तर में जाना पड़ा। इसी दफ्तर में शासकीय सेवा के अंतिम 5 वर्ष गुजारे थे। इमारत पुत गई थी …पड़ोस में नया भवन और स्कूटर, साइकिल रखने का स्टेंड भी बन गया था। बाहर से वह दफ्तर पहचान में नहीं आ रहा था। एक वह समय था जब गाड़ी की सुविधा होने पर भी अधिकारी कई बार साइकिल से आता जाता था और आज वहां साइकिल नदारद थी। उसकी जगह खूब सारे स्कूटर, मोटरसाइकिल स्टैंड में खड़े थे। लोगों का जीवन स्तर अब कितना सुधर गया! यह सोचते हुए चारों ओर देखने लगा। चाय की दुकान अभी भी उस टूटे-फूटे टीन शेड वाले कमरे में थी। यद्यपि अब थोड़ी साफ सुथरी और सजी हुई नजर आ रही थी। मुझे देख कर चाय वाला गुलाब दौड़ा-दौड़ा मेरे पास आया और पांव छूते हुए बोला-“बाबूजी आप…! इतने वर्षों बाद आज अचानक… कैसे आना हुआ…? मैंने पता लगाया तो मालूम हुआ कि आप अहमदनगर जाकर बस गए हैं।”

” हां गुलाब! बेटे की वही नौकरी है इसलिए वही जाकर बसना पड़ा। ”

“बाबूजी… चाय कॉफी कुछ… इस दुकान की जगह आपने ही बड़े साहब से कहकर मुझे दिलवाई थी। ”

” अभी रहने दो भाई…! मैं जरा अपना काम निपटा लूं फिर..!”

ठीक है बाबूजी, आप चाय पी कर जरूर जाइएगा।” कहता हुआ वह फिर अपने काम में लग गया।

मैंने कार्यालय के अंदर प्रवेश किया । दस वर्षों में लगभग पूरा स्टाफ बदल गया था … नया फर्नीचर आ गया था … नई नई अलमारी आ गई थी… पंखे भी नये लगे थे … हर जगह साफ सुथरा माहौल देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा । मेरी कोने वाली टेबल, अब बीच में आ गई थी, क्योंकि दीवार को तोड़ दिया गया था । बड़ा बाबू अब खुली जगह पर बैठता था, ताकि सभी पर नियंत्रण रख सके, सभी के कार्य समय पर हो सकें। एक क्षण के लिए मैं भूल गया है कि ढेर सारे स्मरण पत्र भेजने के बाद भी मेरा कार्य नहीं हो पाया था।

बड़े बाबू अपनी टेबल पर नहीं थे । ज्ञात हुआ कि वे कहीं गए हुए हैं, लंच तक आ जाएंगे । मैंने कार्यालय के दो-तीन लोगों से अपने काम के विषय में बात की, पर उनके रुख से मैं भली-भांति समझ गया था कि बिना बड़े बाबू या बड़े साहब की सहमति के यहां पत्ता भी नहीं हिलता। मैंने सोचा कि बड़े अधिकारी से ही संबंधित विषय पर बात कर ली जाए…! तभी मुझे कार्यालय का पुराना नौकर दौलतराम दिख गया।

” अरे, बाबूजी आप…, आपको तो मैं पहचान ही नहीं पाया!”

कहता हुआ वह मेरे लिए कुर्सी ले आया उसी से मालूम हुआ कि साहब अंदर अपने कक्ष में हैं और वहां कुछ लोकल नेता बैठे हुए हैं । दौलतराम मेरे पास ही स्टूल पर बैठ गया और पुराने किस्सों को बताने लगा। मैं साहब के खाली होने का इंतजार कर रहा था। दौलतराम से मालूम हुआ कि कुछ दिनों पूर्व इन साहब को शासन ने उनके कुशल प्रशासन को देखते हुए उन्हें पुरस्कृत किया था। ऐसी क्या बात हो रही है अंदर… मुझे तो बार-बार ठहाकों की आवाज ही आ रही है! बैठे-बैठे ऊब होने लगी थी। एक जरा से कागज के लिए 300 किलोमीटर का सफर करके आना और अभी तक कुछ भी परिणाम नहीं निकल पाने से मन व्याकुल हो गया था।

एक वह समय था जब इसी दफ्तर में उनका राज चलता था और आज उफ… ! कागज मिले तो ट्रेजरी में जमा करवाऊं ताकि पेंशन बढ़ जाए।

कार्यालय में लंच हो गया था। तभी मैंने देखा कि वह अधिकारी नेताओं के साथ निकला और मेरी और बिना देखे बाहर चला गया । सभी गाड़ी में बैठ कर रवाना हो गए। बड़ा बाबू अभी तक नहीं आया था ।

दौलतराम अपनी थैली से लंच बॉक्स निकाल लाया और मुझसे खाने का पूछने लगा। मेरे मना करने पर वह खाना खाने चला गया।             मेरी ऊब बढ़ती ही जा रही थी। अफसर की गलती के कारण एक केस में ऐसा उलझा कि पेंशन में फर्क पड़ गया। अब जाकर केस का निपटारा हुआ था और वही कागज मुझे चाहिए था, ताकि मुझे पूरी पेंशन मिल सके। पहले वाले अफसर की गलती की सजा मैं भोग चुका था । इतनी ईमानदारी से नौकरी करने का ऐसा परिणाम देख कर मन दुख से भर गया। 10 वर्षों में जमाना कितना बदल गया ! शासन भी ऐसे अफसरों को पुरस्कार देती है! अब मुझसे कुर्सी पर बैठा नहीं जा रहा था । मैं उठने को हुआ कि दौलतराम आ गया।

“बाबूजी! 6 माह बाद मैं भी रिटायर हो रहा हूं। कितने सारे अफसरों को देखा पर इन जैसा अफसर नहीं देखा! यह तो सारा समय बड़े अफसरों और नेताओं की सेवा करने और रुपया बटोरने में ही लगा रहता है… साला नर पिशाच!”

तभी दूर से अधिकारी को आते देख, वह सलाम करता हुआ स्टूल से उठ खड़ा हुआ।

” सुनो दौलत राम! जरा एक बार फिर साहब को मेरा हवाला दो…!”

अंदर जाकर साहब किसी से फोन पर बातें करने लगे। 20 मिनट तक उनकी बातें करने की आवाजें आती रही। इस बीच दौलतराम बार-बार पर्दे की आड़ से अंदर देख लेता। बात समाप्त हुई, दौलत राम अंदर गया। थोड़ी देर बाद बाहर आकर उसने मुझे अंदर जाने को कहा।

“दौलत राम ने मुझे बताया कि आप यहां हेड क्लर्क थे। बताइए कैसे आना हुआ?”

“सर! मुझे एक कागज की कॉपी चाहिए जो शासन ने यहां भेजी है। दरअसल, मेरे समय के अधिकारी पर उस समय शासन ने इंक्वायरी बिठाई थी, क्योंकि मैं हेड क्लर्क था,  इसलिए मुझे भी सजा भोगनी पड़ी । अब वह केस खत्म हो चुका है इसलिए मैं उस आर्डर की कापी चाहता हूं, ताकि मुझे पूरी पेंशन मिल सके । उसी को लेने मैं अहमदनगर से यहां आया हूं।” मैं एक सांस में यह सब बोल गया।

“आप एक काम कीजिए रमेश बाबू से मिल लीजिए।”

“जी… वह 11:00 बजे के निकले हैं अभी तक नहीं आए, इसलिए मैं…।”

“…तो आप इंतजार कीजिए। ऑफिस का सारा काम वही देखता है । आप जरा से काम के लिए मेरे पास क्यों आए?”

“सर! डेढ़ वर्ष में 12 रजिस्ट्री कर चुका हूं । यह देखिए मेरे पास उसकी रसीदें हैं… काम नहीं हुआ, इसलिए तो आपसे मिलने आया!”

“…. तो आप इतनी ऊंची आवाज में क्यों बात कर रहे हैं? जाइए, अब जब हेड क्लर्क आएगा तो आपका काम हो जाएगा। मुझे और भी काम निपटाने हैं।” कहते हुए साहब ने टेबल पर पड़ी फाइल को खोल लिया। इतना अपमान हो गया था कि कुर्सी से खड़े होते ही नहीं बन रहा था… जैसे तैसे खुद को संभाला और उनके कक्ष से बाहर निकला। पूरी घटना मैंने दौलत राम को बताई। वह बोला “बाबूजी! यह अफसर तो नर पिशाच है। जनता के काम नहीं करता। बस नेताओं और बड़े अधिकारियों के तलवे चाटता रहता है। बिना मोटी रकम लिए यह किसी का काम नहीं करता। आपके बाद यहां वर्मा जी आए थे। दिल का दौरा पड़ने के कारण चल बसे। उनकी विधवा पत्नी से इसने खूब चक्कर लगवाए। इसी कुर्सी पर घंटों बिठाया। उनसे जब दस हजार रुपए ले लिए, तब कागजों पर इसने हस्ताक्षर किए।… पर आप चिंता ना करें, 4:00 बजे यह चला जाएगा ,फिर मैं आपका काम करा दूंगा।”

मैंने घड़ी देखी 3:00 बज चुके थे पर अभी तक काम नहीं हो पाया था। बड़े बाबू का भी कोई अता-पता नहीं था। सेवानिवृत्ति के बाद अपने ही कार्यालय में अपनी ऐसी दुर्गति देखकर आंखें भर आईं। 4:00 बजे के पहले ही अफसर अपने कक्ष से बाहर निकला। दौलतराम उनके पीछे-पीछे फाइल लेकर उन्हें गाड़ी तक छोड़ने गया। मुझे इंतजार करते-करते करीब आधा घंटा हो गया था, पर दौलतराम का कहीं कुछ पता नहीं था। साहब के जाते ही बाबुओं की फाइलें भी टेबल से उठने लगी थीं। पड़ोस के कमरों से भी जोर जोर से बातें करने की आवाजें आने लगीं। लगभग 5:00 बजे दौलतराम दौड़ता दौड़ता मेरे पास आया और उसने वह कागज मुझे थमा दिया।

“बाबूजी… माफ कीजिएगा देरी हो गई। बड़े बाबू जी को ढूंढने बाजार तक जाना पड़ा। आते ही आपका कागज निकलवाया। वह नए भवन के पांच नंबर कमरे में बैठे हैं। आप तो जानते ही हैं कि अब जमाना बदल गया है… कार्यालय में छोटे-छोटे नर पिशाच भी तो हैं… आप पांच सो उन्हें दे दीजिएगा।” दौलत राम की बात सुन, उसे धन्यवाद दे कर मैं बड़े बाबू जी से मिलने गया। अपनी पूरी नौकरी में मैंने रिश्वत नहीं ली थी, पर अपने ही कार्यालय में आज….! बड़े बाबू जी को पांच सौ रूपए देते समय मेरे हाथ जोर से कांप उठे थे।

– निवास-390, सुदामा नगर, ए सेक्टर, अन्नपूर्णा मार्ग, इंदौर 452009, मध्य प्रदेश,

मोबाइल नं.09977547030

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