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रचनाओं को कालजयी बनने में वक़्त लगता है, लेकिन तत्सम्यक मनु रचित उपन्यास ‘द नियोजित शिक्षक’ वास्तिवकता के धरातल पर उतरकर इस तरह से लिखा गया है, जिसे पढ़कर ऐसा लगता है कि ‘कालजयी’ किताबों की कहानी भी इसी तरह की होती हैं।

उपन्यास का यह वाक्य, कितना सजीवता से लिखा गया है-

“वह मच्छरदानी को बेड के किनारे से ऊपर उठाता है, लेकिन कुछ मच्छर जो शायद ताक में थे, उस पर हमला कर ही देते हैं।”

बिल्कुल ऐसा ही होता है।
उपन्यास में एक जगह उल्लेख है-

“शिक्षा अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में नहीं पढ़ाते हैं, किन्तु सरकारी विद्यालयों में औचक निरीक्षण के नाम पर वे शिक्षकों को विद्यार्थी के समक्ष उलजुलूल प्रश्न कर और उत्तर न पा उन्हें बेइज्जत जरूर करते हैं।”

सही में, शिक्षकों के साथ ऐसा ही तो होता है।
एक जगह लिखा हुआ है-

“वैसे 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ मनाए जाने का सरकारी स्तर पर कोई प्रमाण नहीं है।”

इस वाक्य को पढ़ते हुए ऐसा लगता है कि उपन्यास को लिखने के क्रम में काफी शोध किया गया है।

उपन्यास के कई वाक्यांश हँसाते हैं, तो कई रोने पर मजबूर कर देती हैं। उपन्यास सरकारी तंत्रों पर व्यंग्य करते हुए, प्रेम कहानी को साथ लेते हुए, भारत के आदर्श शिक्षकों का दुःखान्त पक्ष पेश कर देते हैं।

सही में, रुपये के अभाव में शिक्षकों का जो हालात हैं, सरकार को इस पर ध्यान जरूर देने चाहिए।

  • समीक्षक : नंदन कुमार, दिल्ली]

 

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