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पुस्तक – वीथियों के बीच

(हिन्दी ग़ज़ल)

शायर – अभिषेक कुमार सिंह

वर्ष -2022

मूल्य -250

पृष्ठ -128

प्रकाशक-लिटिल वर्ड  पब्लिकेशन नई दिल्ली

समीक्षक- डॉ.जियाउर रहमान जाफरी

 

अभिषेक कुमार सिंह हिंदी गजल के नए और संजीदा शायर हैं, लेकिन उनकी रचना पढ़ते हुए हमेशा  गजल की पुख़्तगी का एहसास होता है. उनके शेर हमें कौतूहल और विस्मय  पैदा करते हैं, और दिल इस ऊर्जावान शायर  का मुरीद बन जाता है. वीथियों के बीच इनका पहला ग़ज़ल संकलन है. इससे पहले पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा वह हिंदी ग़ज़ल को समृद्ध करते रहे हैं. इन दिनों जो हिंदी में ग़ज़ल लिखी जा रही है, उस भाषागत मतभेद से अलग उनकी भाषा में हिंदीपन का  वह मिठास है जो दुष्यंत के शब्दों में हिंदी को हिंदी और उर्दू को उर्दू दिखलाई पड़ती है.

उनके पास अपना हासिल किया हुआ  अनुभव है और उन्होंने दुनियादारी देखी है. भेल  में अभियंता की नौकरी करते हुए भी अपने अंदर की शायरी और संवेदनशीलता  को जिंदा रखा है,  इसलिए वह कह पाते हैं कि –

जरूरत खत्म होने पर यह सहसा  टूट जाता है

बंधा जो स्वार्थ से होता है रिश्ता टूट जाता है.

उनकी यही अदा बालस्वरूप राही को पसंद आती है, और वह कहते हैं कि उनकी शायरी में कठिन वर्तमान का बयान है.

सबसे बड़ी बात यह है कि अपनी शायरी  में सत्ता साहूकार, शासक, और प्रभुत्ववर्ग को आड़े हाथ लेने के बावजूद उनका लहजा सख्त नहीं होता. असल में वह गरजने और बसने वाले शायर नहीं हैं. वह सिर्फ आईना दिखा कर भी अपना काम खत्म नहीं कर लेते, और न ही  सिर्फ भयावह  स्थिति उत्पन्न करने के पैरोकार हैं. उनका मकसद लोगों को गुमराह करना या डराना भी नहीं है. उनकी स्थापना और कोशिश बस इतनी है कि आज के जो हालात हैं वह बदलने चाहिए. संकलन  में उनके कई शेर इस सवाल को उठाते हैं. एक-दो  ऐसे ही शेर देखे जा सकते हैं-

सत्ता लोलुप ख्वाहिश का एक हिस्सा है

हर चर्चा अब साजिश का एक हिस्सा है

फिर अगली ही ग़ज़ल  में ऐसी   साजिश करने वालों से भी वह हमारा परिचय कराते हैं-

कोई तो बात है सत्ता की कुर्सियों में यहां

जो इस पे बैठ गया संविधान भूल गया

हिंदी ग़ज़ल में कई शब्द और कई स्थितियां ऐसी हैं  जो सिर्फ उनके शेर में जगह पाती  हैं. उन्होंने सीजफायर से लेकर ट्रैफिक और फ्यूज बल्ब जैसे अंग्रेजी के शब्दों का भी हिन्दी में खूबसूरती से प्रयोग किया है. वह भी इस तरह से  कि ये ग़ज़ल  की तासीर बन गई है.

फ्यूज उनके हो रहे हैं बल्ब सारे

इससे बेहतर तो मेरे टूटे दिए थे

कहना न होगा कि हिंदी गजल जिस दिन गिनती के पंद्रह -बीस  शायरों से आगे बढ़कर ग़ज़ल का नया मूल्यांकन करेगी,अभिषेक कुमार सिंह अपनी इस कृति के साथ सरे फहरिस्त होंगे.

  • स्नातकोत्तर हिंदी विभाग

मिर्जा गालिब कॉलेज गया,  बिहार

823001

9934847941, 6205254255

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