– गीता गुप्ता ‘मन’
मानव मानव का शत्रु बना।
सम्बन्धों में मतभेद ठना।
स्वार्थो ने ऐसा दिया बना ।
अब साधु रहा क्या कोई संत?
कैसा है ये नवयुग बसन्त?
दिखते न विटप धरती पर हैं,
ये पुष्प कैद गमलों -घर हैं,
बस हवा कर रही सर-सर हैं।
फैला विकास है दिग्दिगंत?
कैसा है ये नवयुग बसन्त?
नवकोंपल वृक्षों ने धारे।
प्रमुदित होते पक्षी सारे।
कोकिल मधुकर नित गुंजारे।
पर उठी समस्या फिर ज्वलंत?
कैसा है ये नवयुग बसन्त।
– उन्नाव,उत्तरप्रदेश