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पटना: 18/01/2022! ” कितने लोग तो शारीरिक रूप से बीमार होकर, मानसिक रूप से भी बीमार हो जाते हैं l किंतु मधुदीप जी ऐसे लोगों में थे, जो बीमार होकर भी, अपनी मृत्यु के कुछ दिन पहले तक अपने अस्पताल कक्ष को ही अध्ययन कक्ष बनाए हुए थे l उनकी ऐसी जीवटता देखकर तो यही कहा जा सकता है कि किसी लघुकथाकार की नहीं, बल्कि कर्म योगी का महाप्रयाण हुआ है l लघुकथा आकाश का एक और ध्रुवतारा हमारी आंखों से ओझल हो गया है l ”

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, गूगल मीट पर, ऑनलाइन “हेलो फेसबुक लघुकथा सम्मेलन का संचालन करते हुए संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किये l

यह लघुकथा सम्मेलन लघुकथा आकाश के ध्रुवतारा दिवंगत मधुदीप जी को समर्पित था l  मधुदीप जी को श्रद्धांजलि देते हुए वरिष्ठ लघकथाकार  डॉ.  योगेंद्रनाथ शुक्ल  इंदौर )  ने कहा कि -” मधुदीप जी के महाप्रयाण से लघुकथा के आकाश में जो रिक्तता आ गई है, वह अपूरणीय है। पड़ाव और पड़ताल के विभिन्न खंडों का प्रकाशन कर उन्होंने एक इतिहास रच दिया है। वे हमारी स्मृतियों में एक कर्मठ लघुकथा साधक के रूप में सदैव मौजूद रहेंगे। उनकी स्मृति में उन्होंने “कुर्सी “लघुकथा का पाठ किया।”

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ लघुकथा लेखिका नरेंद्र कौर छाबड़ा ( महाराष्ट्र ) ने कहा कि -” लघुकथा के पुरोधा तथा उसके लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले महान लेखक श्री मधुदीप जी के निधन से साहित्य क्षेत्र को अपूरणीय क्षति हुई है ।उन्होंने एक कर्म योगी की तरह अपना पूरा जीवन लघुकथा को समर्पित कर दिया ।अपने बीमारी के आखिरी दिनों में भी उन्होंने अस्पताल में अपना अध्ययन जारी रखा ।उनकी स्मृति में सिद्धेश्वर जी ने आज लघुकथा संगोष्ठी तथा मधुदीप जी के संस्मरण पर आधारित कार्यक्रम आयोजित कर उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि देकर एक नेक कार्य किया है। ”

” आंखों से ओझल हो गया लघुकथा आकाश का एक ध्रुवतारा मधुदीप !” : सिद्धेश्वर

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   ” मधुदीप के महाप्रयाण से लघुकथा के आकाश में रिक्तता आ गई !”: डॉ  योगेंद्र नाथ शुक्ल

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  ” लघुकथा के क्षेत्र में मधुदीप जी लंबी रेखा खींच गए हैं !”:  योगराज प्रभाकर

 

विशिष्ट अतिथि”लघुकथा कलश ” के संपादक योगराज प्रभाकर ( पंजाब) ने कहा कि – ”  लघुकथा के नक्षत्र मधुदीप जी के दिवंगत हो जाने से अपूरणीय क्षति हुई है l  लघुकथा के क्षेत्र में मधुदीप जी  इतनी लंबी रेखा खींच गए हैं कि उसे हम लोग बढ़ा नहीं सकते l  उनकी स्मृति में उन्होंने मधुदीप की लघुकथा “हां मैं जीना चाहता हूं !”की मार्मिक प्रस्तुति दी !

विशिष्ट अतिथि विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा कि -” वज्रपात हो गया! मधुदीप गुप्ता नहीं रहे!  लघुकथा जगत में शोक की लहर फैल गयी है। हाहाकार मच गया है। हालांकि लघुकथा विधा के लिए जुनून की हद तक जाकर किए अपने कार्य के लिए मधुदीप सदैव याद रखे जाएंगे।”

.   मधुदीप के व्यक्तित्व कृतित्व पर विस्तार प्रकाश डालते हुए अपूर्व कुमार ( वैशाली )ने कहा कि-”

उनके व्यक्तित्व की एक अद्भुत विशेषता यह थी कि वे एक सच्चे कर्मयोगी थे। साहित्यिक साधना व्यक्तिगत जीवन एवं सामाजिक जीवन में बखूबी सामंजस्य उन्होंने स्थापित कर रखा था।विगत कुछ माह से  गंभीर अस्वस्थता के बावजूद वे अनवरत साहित्यिक साधना में अंत-अंत तक लगे रहे।

इसके अतिरिक्त भी इस लघुकथा सम्मेलन में शामिल लघुकथाकारों ने अपनी लघुकथा का पाठ करते हुए मधुदीप जी के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित किया l  निर्मल कुमार डे (जमशेदपुर )ने “कशमकश”/ योगराज प्रभाकर( पंजाब ) ने “सुबह का भूला”/ सुषमा सिंह ( जबलपुर ) ने “पितर देउ”/ सुधाकर मिश्र सरस(इंदौर ) ने “अपने”/  संतोष सुपेकर ( उज्जैन) ने “ठंड की वह रात”/ चेतना भाटी (इंदौर) ने “सुनामी सड़क”/ वंदना भंसाली ( नागपुर )ने ” बेटी “/ रेनू झा ( रांची )”अंतहीन सुख”/ विभा रानी श्रीवास्तव ने “ना भूतो ना भविष्यति”/ शीर्षक लघुकथा का पाठ किया ! इनके अतिरिक्त नरेंद्र कौर  छाबड़ा (महाराष्ट्र ), डॉ योगेंद्र नाथ शुक्ल ( इंदौर ),  भगवती प्रसाद द्विवेदी,  सिद्धेश्वर,राज प्रिया रानी, मीना कुमारी परिहार, रेणु  झा,  अंजू लता सिंह (दिल्ली ),  निहाल चंद्र शिवहर ( झांसी )  आदि की लघुकथाएं भी काफी सराही गईं l  लघुकथा पाठ के अंत में लघुकथाओं पर समीक्षात्मक, आलोचनात्मक बहस ने इस लघुकथा सम्मेलन को अभूतपूर्व और यादगार बना दिया l  लघुकथा सम्मलेन का समापन अपूर्ण कुमार के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन से हुआ l

प्रस्तुति : राज प्रिया रानी ( उपाध्यक्ष )/ एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष ) :भारतीय युवा साहित्यकार परिषद ( पटना )/मोबाइल 92347 60365

( साहित्यप्रीत की तरफ से आदरणीय मधुदीप जी को सादर नमन! )

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