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– वैभव दुबे

मैंने जब संसार से परे
देखना चाहा प्यार से
तुम्हारी आंखों में
न जाने क्यों तुमने
आंखें मुंद ली ।

तुमने देखना चाहा प्यार से
बताता हैं, तुम करते नहीं प्रेम
जो करते अगर, तो कभी न
देखना पड़ता प्यार से
तुम्हारी दृष्टि ही होती प्यार कि
तुम भी होते प्यार से
इसलिए मैंने अपनी आंखें मुंद ली ।।

तू लड़ मरोड़ पकड़…

तू लड़ मरोड़ पकड़ झकझोर झकड महा महेश सा
तू त्याग रोग वियोग मोह कलह कलंक कलेष सा
जो तेरी अमीट आभा मे जले ज्योत प्रखर विशेष सा
हाँ! हाँ! देखेगा जगत तुझे ज्यों बालक अनिमेष सा

प्रफुल्ल प्राण प्रवाह में अब कैसे कहाँ संतोष हो
मस्तक अंग अग्नि वहिनियों में अंगार का कोष हो
हाँ ! थर थर कांपे कायर पापी जब जब तुझे रोष हो
हाँ कहाँ तुझे कोई भय जो तेरे पीछे खड़ा आशुतोष हो !

 

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