Spread the love

– वैभव दुबे

 

ढूंढ रही है वो चंद्र कमल नयन बिखेरे

खोए अपने प्यारे प्रियतम को साझं सवेरे

सब ओर लिया पूछ न मिला कुछ

मूर्झाई प्यारी की मनोहारी मधुर मनमोहक सूरत

झरे विरह के द्रवित अश्रु, सुखा माधुरी का मधुर मुख

ज्यों हुई संध्या केसरी गुलाल सी

त्यों आई विंध्या मुह फुलाए लाल सी

बैठी कमल तालाब के पत्थर पर था जो

चाँदनी से लीपा, पावन पवन से पोंछा

केसरी तिलक किया हुआ

अमृत रस पिया हुआ

जब देखा अपना ही प्रतिबिंब नील नवल कमल जल में

तब देखा अपने ही प्रियतम को उसी आकृति जल में

प्रेमी ने प्रेमी को देखा! अब क्या ही देखना था!!

उसने पिय हर्ष के घुँट, हृदय हुआ आनंदित

“तुम थे मुझमे बसे मैं न जान सकी

मैं ही हूँ अभागन जो न पहचान सकी”

किया आलिंगन स्वयं का

गाए गीत स्वयं के, स्वनृत्य पर

देख सभी चकित, होगी चकित पीढ़ि अवगामी

ज्यो ज्यों सुनेगी प्रेम की अमर अनोखी कहानी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.

satta king gali