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कौशलेश पांडे की कलाकृतियों में भाव भंगिमा से लेकर रेखाओं – रंगों का संतुलित संयोजन है!: सिद्धेश्वर
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अंशिका भदौरिया कत्थक नृत्य शैली की कुशल नृत्यांगना है!: दिनेश सोलंकी
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🔷पटना : 05/09/2022 ! बिहार के गिने-चुने कलाकारों में एक चर्चित नाम है कौशलेश पांडे का, जिनकी कलाकृतियों में भाव भंगिमा से लेकर रंगों का संतुलित संयोजन आमजन को आकर्षित करने में पूर्णत: सक्षम है l कौशलेश पांडे की कलाकृतियां को देखकर लगा कि वह प्रकृति और जीवन के अप्रतिम कलाकार हैं कौशलेश, जिन्हें देश ही नहीं विदेशों में भी भरपूर सम्मान मिला है l
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका के पेज पर ” हेलो फेसबुक संगीत चित्रकला प्रदर्शनी ” का संचालन करते हुए, संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया! ” हिंदी के विकास में हिंदी फिल्मों के योगदान ” विषय पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि – ” हिंदी सिर्फ हमारे देश की संस्कृति ही नहीं बल्कि बाजारवाद का एक प्रमुख हिस्सा भी है! क्योंकि देश की विभिन्न भाषाओं और बोलियों के बीच हिंदी ही देश के अधिकांश क्षेत्रों में सर्वाधिक बोली और समझे जाने वाली भाषा के रूप में देखी जा रही है l इसलिए भी आपसी भाषाओं की लड़ाई नहीं बल्कि एक राष्ट्र भाषा को शीघ्र मान्यता देने की बात होनी चाहिए l ”
कार्यक्रम के प्रथम सत्र के मुख्य अतिथि चर्चित युवा नृत्यांगना अंशिका भदौरिया (नोएडा ) ने कहा कि – हमारी हिंदी भाषा संस्कृति के साथ-साथ हमारी संगीत परंपरा से भी गहरा लगाव रखती है l संगीत को आत्मा से जोड़ने का शाब्दिक माध्यम हिंदी भाषा है l अंशिका भदौरिया ने पौने एक घंटे तक अपने ग्रुप के साथ नृत्य की अनोखी प्रस्तुति दी l उनके ग्रुप नृत्य में शामिल अन्य सह कलाकारों में कोमल मिश्रा,शिवानी सिंह,श्रुति संगम, और मुस्कान साहू ने भी संगीत पर नृत्य की अद्भुत प्रस्तुति दी l
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में बिहार के लब्ध प्रतिष्ठित कलाकार कौशलेश पांडे की 70 से अधिक कलाकृतियों की एकल प्रदर्शनी ऑनलाइन प्रस्तुत की गई! कलाकार कौशलेश पांडे ने कहा कि — “सिद्धेश्वर के रेखाचित्रों से मुझे भी बहुत कुछ सीखने का अवसर आठवें दशक से ही मिलता रहा है l उनके मंच से जुड़कर मैं भी गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं l बिहार में ढेर सारे अच्छे काम हो रहे हैं, लेकिन यहां पर अच्छे कलाकारों के लिए कोई संभावना नजर नहीं आती l मैं अपनी कलाकृति के संदर्भ में बस इतना ही कहना चाहूंगा कि — मानव पहले रंगों के संपर्क में आया,फिर वह बोलना सीखा l रंगों में वह सम्मोहन होता है,जिसके प्रति कोई भी इंसान स्वत: खिंचा चला जाता है!”


पूरे कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए, इंदौर के साप्ताहिक अखबार ” प्रिय पाठक ” के संपादक,वरिष्ठ पत्रकार, सिने अभिनेता एवं गायक दिनेश सोलंकी ने कहा कि –” सिद्धेश्वर जी अपने इस मंच के माध्यम से कई नए पुराने लोगों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दे रहे हैं, जो श्रम साध्य एवं अभिनंदनीय कार्य है l आज हिन्दी,साहित्य और संगीत के संदर्भ में मैं कहना चाहूंगा कि आज बहुत से साहित्य के कार्यक्रम होते हैं जहां हिंदी को सर्वोच्च रूप से बताया जाता है लेकिन ऐसे कार्यक्रम कितने होते हैं और इनमें आता कौन है? वही लोग आते हैं जिन्हें हिंदी साहित्य, हिंदी भाषी होने का गर्व होता है। लेकिन साहित्य प्रेम की बात आम जनता में नजर नहीं आती है। आम जनता को बोलचाल की भाषा में अपनी क्षेत्रीय भाषाओं को ही ज्यादा तवज्जो देती है। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि हिंदी फिल्मों के कारण देश में आज हमारी हिंदी की पहचान बनी हुई है। आप पुरानी फिल्मों को उठाकर देख लीजिए जो ना सिर्फ हिंदी को सर्वश्रेष्ठ बनाती थी बल्कि पारिवारिक संस्कारों को भी सामाजिक फिल्मों के माध्यम से दिखाया जाता था। आज भले ही हिंदी का स्वरूप फिल्मों में ही बिगड़ चुका हो लेकिन फिर भी हिंदी आज फिल्मों के बल पर ही जिंदा है और हमें इसे कभी मिटने नहीं देना है l ”
चित्रकला प्रदर्शनी एवं संगीत के संदर्भ में अपूर्व कुमार (वैशाली ) ने कहा कि -“भारत से बाहर अन्य भाषा-भाषी भी हिंदी गीतों को गुनगुनाते नजर आते हैं। पूरे हिंदुस्तान में आज यदि हिंदी संपर्क की भाषा है, तो इसमें हिंदी फिल्मी गीतों का उल्लेखनीय योगदान है। जापान के हिंदीकर्मी निजुकामी, जिन्होंने 1951 से 1980 तक के महत्वपूर्ण हिंदी गानों का अनुवाद किया है, हिंदी फिल्मी गीतों के जरिए जापानियों को हिंदी का ज्ञान दे रहे हैं। दूसरी तरफ आज चित्रकला प्रदर्शनी में कौशलेश पांडे की कलाकृति में रंगो और रेखाओं की बारिकी देखने को मिला, जो अद्भुत है l
जबकि ऋचा वर्मा ने कहा कि –


“बॉलीवुड की फिल्मों के दर्शकों का अंदाजा लगाना ठीक वैसा ही है जैसे आसमान के तारों का गिनना‌। भले ही हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की राह में इसी देश के दूसरे भाषा भाषी रोड़े अटकाएं, परंतु हर भाषा के बड़े से बड़े सितारे का सबसे बड़ा सपना होता है बॉलीवुड फिल्म में काम करना और हिंदी गानों पर अभिनय कर पूरी दुनिया में मशहूर हो जाना। हिंदी फिल्मों की दीवानी सारी दुनिया है l”
संगीत सम्मेलन में दिनेश सोलंकी ने -बरसात के मौसम में तन्हाई के आलम में…..(फ़िल्म नाजायज़)/ मधुरेश नारायण ने – तेरी याद में दिल से भुलाने चला हूं!/ सत्येंद्र संगीत ने तीसरी कसम फिल्म का एक गीत सुनाया- लाली लाली होठवा “/ प्रदीप यादव ने राधे कृष्ण के भजन को प्रस्तुत किया! स्मृद्धि गुप्ता ( वाराणसी) सुगम संगीत पर एक लोकप्रिय भजन प्रस्तुत कर मंत्रमुग्ध कर दिया, तो दूसरी तरफ राज पिया रानी ने ” जिंदगी प्यार का गीत है ” आपके सिद्धेश्वर ने – छेड़ो ना मेरी जुल्फे सब लोग क्या कहेंगें!” गाने पर जबरदस्त जीवंत अभिनय किया lमुरारी मधुकर ने कहा कि–” पुराने गीत संगीत शांति और सुकून प्रदान करते हैं l मेरी नजर में हिंदी की आत्मा है फिल्मी गीतसंगीत!”/मीना कुमारी परिहार ने – मोरी छम छम बाजे पाजे पायलिया! आराधना प्रसाद ने – कहां गई निंदिया चुराके चोरी चोरी रेशम की डोरी!”/ डॉ शरद नारायण खरे – ” आज उनसे पहली मुलाकात होगी फिर होगा क्या क्या पता क्या खबर!
इनके अतिरिक्त दुर्गेश मोहन, पुष्प रंजन, बीना गुप्ता, संजय श्रीवास्तव,चंद्रकला भारतीय, पूनम शर्मा,अशोक कुमार, विजय कुमारी मौर्य, संतोष मालवीय,सपना शर्मा, नवनीत चौधरी विदेह,चाहत शर्मा, अंजना पचौरी, पुष्पा शर्मा, नीरज सिंह, नीलम. डॉ सुनील कुमार उपाध्याय आदि की भी दमदार उपस्थिति रही l

प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव ) एवं सिद्धेश्वर ( अध्यक्ष )/ भारतीय युवा साहित्यकार परिषद (मोबाइल :9234760365 )

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