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पाठकों के हृदय में नश्तर की तरह उतर जाती     

      है, जीवंत कविता !”:सिद्धेश्वर  

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   ” आज के यथार्थवादी कविता पर बाजारवाद हावी है !”: समीर परिमल

 

कविता समाज में कोई क्रांति लाए या न लाए, कविता इंसान को इंसान बनाए या न बनाए, लेकिन कविता यदि सचमुच कविता है तो वह समाज में क्रांति लाने की जमीन जरूर तैयार करती है l  क्रांति की मशाल में जल रही ज्वाला का काम करती है l कविता इंसान को इंसान बनने की तमीज सिखलाती है l”

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में फेसबुक के “अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका” के पेज पर  आयोजित” हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन” का संचालन करते हुए उपरोक्त उद्गार,  संस्था के अध्यक्ष सिद्धेश्वर ने व्यक्त किया l

”  कविता : कल और आज “विषय का प्रवर्तन करते हुए उन्होंने कहा कि -” समकालीन कविता के नाम पर लिखी जा रही अधिकांश ऐसी कविताएं जो रस, माधुर्य, लयात्मकता और काव्यात्मकता आदि से बहुत दूर हो गई हैं तथा कविता के ढांचे को दरकिनार कर लिखी जा रही हैं,  वह आम  पाठकों से बहुत दूर हैं l  यहां तक कि सपाटबयानी के नाम पर या तो बौद्धिक  विचार को ही कई  वाक्यों में तोड़कर कविताएं लिखी जा रही हैं या फिर कविता के नाम पर ऐसे बिंब प्रस्तुत किए जा रहे हैं जो पाठकों को पहेली के सिवा और कुछ नहीं लगते l यानी, आज की अधिकांश कविताओं में होती है अनबुझ पहेली,  अकल्पनीय यथार्थ l फिर तो ऐसी कविताओं की हृदय तक पहुंचने की बात बहुत दूर की है l”

कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि समीर परिमल ने कहा कि -“कल की अपेक्षा आज की कविता यथार्थवादी होती चली गई है l  साथ ही बाजारवाद भी हावी है l सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक मुद्दे कविता में प्रमुखता से उभर कर आ रहे हैं एवं प्रतिरोध का स्वर भी सुनाई पड़ता है l  छायावाद के बाद छंद का बंधन तो टूट गया था और छंद मुक्त कविता हिंदी कविता की मुख्यधारा बन गई थी l  किंतु छंदबद्ध कविता का प्रभाव कभी कम नहीं हुआ और न होगा l ”

आगामी गणतंत्र दिवस और आज नेता सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर कुछ समय संबंधित कविताएं भी प्रस्तुत की गईं ! साथ ही साथ सिद्धेश्वर ने  एक वीडियो के माध्यम से कल और आज के कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, दुष्यंत कुमार, गोपालदास नीरज,  सर्वेश्वर दयाल सक्सेना,  ज्ञानेंद्रपति, आलोक धनवा, अनामिका आदि की कविताओं को भी प्रस्तुत किया l   अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में चंडीगढ़ से संतोष गर्ग ने कहा कि -“आज के कवि सम्मेलन की कविताओं को सुन पढ़कर कल और आज की कविताओं से रूबरू होने का मौका मिला जिसके लिए संयोजक सिद्धेश्वर जी बधाई के पात्र हैं। इनके योगदान को आने वाली पीढ़ी कदापि नहीं भूल पाएगी !

डॉ. बी. एल. प्रवीण ( डुमरावं ) ने विषय को गंभीरता से लेते हुए कहा -“आजकल लिखी और छापी जा रही अधिकांश कविताओं में न अनुशासन है, ना ही कोई कसौटी l  उन्हें खारिज कर देने में ही कविता की भलाई है l  आजकल सपाटबयानी शब्द की परिभाषा गढ़ी जा रही है l यहीं से कविता के साथ छल शुरू हो जाता है l ”

अपूर्व कुमार ( वैशाली) ने विस्तार से कहा कि -“कल भी अच्छे पद्य का सृजन हुआ l आज भी अच्छे पद्य  का सृजन हो रहा है l कल भी अच्छे पद्य का सृजन होगा l वास्तविकता यह है कि आज संख्यात्मक दृष्टिकोण से कल की अपेक्षा ज्यादा ही अच्छे काव्य का सृजन  हो रहा है l  परंतु आज की झूठी वाहवाही एवं पैरवी से प्रमोशन और छपास वाले दौर में यह शिखंडी पद्य के नीचे दब जा रही है l  यह बात अलग है कि जैसे सूर्य बादल की ओट में ज्यादा देर तक दब नहीं सकताl  वैसे ही विशुद्ध कविताओं को दबाया नहीं जा सकता l”

इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन के दूसरे सत्र में गीता चौबे गूंज (रांची ) ने -” देशी अथवा हो परदेशी, सबको गले लगाते हैं ! शत्रु शरण में आए वे भी शरणागत कहलाते हैं !”/ मिंटू झा (बेगूसराय ) ने -“इस माटी की शान लिखूं, वीरों का बलिदान लिखूं /लिखने को जब कलम उठे, बस भारत गौरव गान लिखूं l”/ आरती कुमारी (मुजफ्फरपुर )ने “चकते  पर रोटी बेलती,  स्त्री की चूड़ियों की खनक, होती है सारे वाद्य यंत्रों से मधुर !”./ रमेश कँवल  ने -“ठुकराओगे तो सोच लो पछताओगे बेशक ! पत्थर हूँ, शिवालो में मुझे पाओगे बेशक!”/.मधुरेश नारायण ने- “बच्चों की मुस्कान करती है संजीवनी का काम !, भगवान को मिलता उपहार बिना दाम !”

. श्रीकांत ( झांसी ) ने -“मंदिर में जाने वालों क्या कभी सुना है?, मंदिर क्या कहता है  या सिर्फ व्यथा है ?”/ कौशल किशोर ने -” समय बदलता गया, आदमी बदलते गएl, छोड़कर कुछ निशानों को आगे बढ़ते गए !”/ सुधाकर मिश्र सरस (इंदौर )ने -“फिर से गर्म खून वाली वो जवानी चाहिए l  भर दे ज्वाला इन रगों में, वो रवानी चाहिए l”/ स्वराक्षी स्वरा ( पूर्णिया) ने -“जीवन के झंझावातों से हर रोज ही लड़ना होगा l   अमृत के हो या विष के आंसू, नयनों को पीना होगा !”/  अभिमत नारायण कौशिक ने -” जुगुनू तारे फ़ैल नभ में  विचर रहे l  जैसे दीप संसद आपस में ही कुछ कह रहे l”/ रामनारायण यादव (सुपौल)ने -”  पुरस्कार और सम्मान के जाल में उलझ गया है आज भारत !”

सुषमा सिंह (जबलपुर)ने -“आजादी की अलख जगाकर जय हिंद का उद्घोष किया, जन गण मन का मान बढ़ा, अपना सब कुछ वार किया !”/  प्रियंका त्रिवेदी ( बक्सर ) ने -”  तीन रंगों का है अपना तिरंगा, हमें इस पर अभिमान  रहता हैl  ऊंच नीच वेश भूषा धर्म जाति से बड़ा अपना संविधान रहता हैll “/ प्रियंका श्रीवास्तव शुभ्र ने-“यह महासमर की बेला है, व्याधियों ने चहुँ ओर  घेरा है !”/ रचना कुमारी ने-”  शरद ऋतु की गुनगुनी धूप, आ बैठी हूँ  अकेली ही चुप !”/ पुष्प रंजन.( अररिया ) ने-”  बाल कन्या जब होती है विदा, तेरी आन कहां रह जाती है?, पगड़ी वालों तनिक बता दो, तुझे शर्म क्यों नहीं आती है ?”/ कालजई घनश्याम (नई दिल्ली) ने-“जब से किसी हसीन को दिल में बिठा लिया !, हमने वो कांच अपने ही दिल में चुभा लिया !”

शमां कौसर शमां ने-“तुम्हें ढूंढ लेंगी ये नजरें हमारी, कहां तक चलोगे निगाहें बचाकर !,  खुदाई का दावा तो  करते सभी हैं, दिखा तो दो एक तिनका बनाकर !”/.डॉ मेहता नरेंद्र सिंह ने-“जंगल सुखी था, अरण्य संस्कृती उपजी थी वहां!”

संतोष गर्ग (चंडीगढ़ ) ने. -“यह जीवन एक कहानी है !,कुछ आग और कुछ पानी है !,नहीं धोखा यह कुर्बानी है ! जो न समझो नादानी है !!”/  मीना कुमारी परिहार ने -“वतन की खुशबू है मुझे प्यारी, है जो पहचान दिलाती है हमें !”/ जो मुझे संस्कार में रचती बसती हर दुख सुनकर भी खुश होती रहती है !”/ आराधना प्रसाद ने –“अजीब शाम का मंजर दिखाई देता है !,  जब आफताब जमीं पर दिखाई देता है !!”

कुंवर वीर सिंह मार्तंड (कोलकाता ) ने -“मेहनत वाले हाथों से जब, मेहंदी वाले हाथ मिले !, महक उठे जीवन की बगिया एक नया आकाश मिले!!”/ राज कांता राज ने -“भागमभाग भरी जिंदगी में, हम आगे हम आगे !, छोड़कर एक दूसरे को दूर भागे दूर भागे !”/ राज प्रिया रानी ने-“सर्द हवा की आक्रामकता सर चढ़कर बोल रही है ! सड़कों पर रेंगती भीड़ अजनबियों को जोड़ रही है l”  जैसी एक से बढ़कर एक समकालीन गीत, गजल और कविताओं का पाठ कर,  ऑनलाइन कवि सम्मलेन को यादगार बना दिया l

दो दर्जन से अधिक नए पुराने कवियों की कविताओं के साथ संतोष मालवीय, दुर्गेश मोहन,  डॉ सुनील कुमार पाठक,  अनिल चिंतित, सुधाकर मिश्र, अनुभव राज, शशिकांत श्रीवास्तव, संजय रॉय, संतोष मालवीय, हरेंद्र सिंह, पाठक रचना की भी सक्रिय भागीदारी रही l

प्रस्तुति : राज प्रिया रानी [उपाध्यक्ष] एवं सिद्धेश्वर [अध्यक्ष ] : भारतीय युवा साहित्यकार परिषद / पटना /मोबाइल न :92347 60365

 

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