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– महेन्द्र “अटकलपच्चू”

संस्मरण 

 एक महान व्यक्तित्व -रेव. किशोर मैथ्यूज

जीवन में किसी व्यक्ति या व्यक्तित्व का विशेष स्थान होता है। क्योंकि वो व्यक्तित्व हमारे जीवन में हमारा मार्गदर्शक होता है।।

नवम्बर 2009 में पहली बार मैंने ललितपुर की जमीं पर अपना पहला कदम रखा था। ललितपुर आने का मेरा उद्देश्य धर्म विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करना था, परंतु आर. ई. मिशन स्कूल ललितपुर में एक संविदा शिक्षक के रूप में मेरी नियुक्ति हुई।

मुझे आज भी वो दिन याद है जब उस महान व्यक्तित्व ने मेरा साक्षात्कार लिया था। अद्भुत परख थी उनकी नजर में। उन्होंने केवल दो ही प्रश्न पूछे थे मुझसे और मैने भी उनका उत्तर न में दिया था।

उनका पहला प्रश्न था कि क्या आपने कभी और कहीं पढ़ाया है?

मैने उत्तर दिया–”नहीं!”

दूसरा प्रश्न– क्या इस स्कूल में पढ़ा पाओगे? मेरा उत्तर वही था–”नही!” परंतु मैने उनसे कहा कि यदि आप सब सहयोग और मार्गदर्शन करे तो मैं पढ़ा लूंगा।

बस इसी बात पर मेरी नियुक्ति हो गई।

उस दिन से आज तक मैं उनके ही सानिध्य में, उनके ही मार्गदर्शन में आगे बढ़ रहा हूं।

अदभुत प्रतिभा के धनी है वो। जो गुण और प्रतिभाएं एक गुरु में और एक पिता में होनी चाहिए वो सब गुण और प्रतिभाएं उनमें कूट कूट कर भरी हैं।

दूसरों को क्षमा करना और उनकी गलती का अहसास कराना, ये उनका एक अदभुत गुण है।

ये उस समय की बात है जब मैं ललितपुर में एक किराए के मकान में रह रहा था। रहते रहते करीब दो या तीन वर्ष हो गए थे। एक दिन जब मैं अपनी ड्यूटी से घर आया तो मेरी पत्नी ने बताया कि हमारी मकान मालकिन चाहती है कि हम अब घर खाली कर दें क्योंकि वो बात बात पर बच्चों को डांटती है और आज तो उन्होंने बड़े बेटे को मार भी दिया।

मैंने कहा– ” हम दूसरा घर देखेंगे।”

जब मैंने ये सारी बातें उनको बतायी तो उन्होंने कहा– “चिंता मत करो हम प्रार्थना करेंगे। प्रभु प्रबंध करेगा। आप कहीं और घर देख लो। मैं भी किसी से बात करूंगा।”

मैं अपनी ड्यूटी के साथ – साथ दूसरे घर के बारे में भी सोचता रहता था। मैं सोचता था कि यहां मेरी ज्यादा जान पहचान है नहीं। और पता नहीं किसी से बात भी करूं तो कितना किराया मांगने लगे। मेरी तनख्वाह भी थोड़ी सी है। कुल मिलाकर मैं जिस घर में रह रहा था उस घर को छोड़ना नहीं चाहता था।

एक दिन उनका फोन आया। और उन्होंने कहा– ” मैंने एक व्यक्ति से बात की है आप जाकर घर देख लो और किराये की भी बात कर लेना।”

मैने कहा– “ठीक है मैं जाकर देख लूंगा।”

मैं उस घर को देखने गया। उस घर के मकान मालिक ने घर दिखाया और किराये की भी बात हुई।

मकान मालिक ने किराया एक हजार रूपए बताया और कहा कि इतने से कम नहीं ले पाऊंगा और साथ ही आपकी पत्नी को मेरे घर में खाना भी बनाना होगा।

मैने कुछ नहीं कहा। तब उसने पूछा कि कब शिफ्ट हो जाओगे?

मैने कहा–”आपको फोन करूंगा।” और मैं अपने घर आ गया।

एक सप्ताह तक मैने कोई फोन नही किया तो उस मकान मालिक का फोन आया। और मैने उससे झूठ बोल दिया कि –” हमारे सर आए थे और उन्होंने कहा है कि आप यहीं रहो। वहां मत जाओ हम और कहीं घर देख लेंगे।” इतना कहकर मैंने फोन काट दिया।

मैं नहीं जानता था कि बाद में उस मकान मालिक ने सर को फोन किया होगा।

एक दिन शाम के समय कैंपस में भोजन कक्ष में कोई कार्यक्रम था उसमे मैं भी शामिल हुआ। जब कार्यक्रम समाप्त हो गया तब उन्होंने मुस्कुराकर शांत भाव से मुझसे कहा– ” मेरा नाम लेकर आप किसी से कुछ भी कहते रहते हो।”

मैने पूछा– ” सर, मैने किससे क्या कहा?”

उन्होंने कहा–” भूल भी जाते हो!”

उनकी बात सुनकर सोच में पड़ गया कि आखिर मैंने किससे क्या कहा होगा, क्योंकि उस समय मुझे सचमुच कुछ याद नहीं था। पर मुझे उनकी बात कचोटती रही। और कार्यक्रम के बाद मैं घर आ गया।

रात में नींद नहीं आ रही थी क्योंकि उनके शब्द बार बार मुझे झकझोर रहे थे। मैं सोच रहा था कि आखिर ऐसी क्या गलती हो गई मुझसे।

बहुत सोचने के बाद मुझे याद आया कि मैंने उनका नाम लेकर उस मकान मालिक से झूठ बोला था। और मैं अपनी ही नजरों में गिर गया। मुझे अहसास हुआ कि वास्तव में मैने बहुत बड़ी गलती की है।

आज भी जब उस घटना को याद करता हूं तो अपने आप में शर्मिंदा होता हूं।

देखिए! उन्होंने बड़ी ही आसानी से मुझे अपनी गलती का अहसास करा दिया और मुझे क्षमा भी कर दिया।

वे बड़े उदार हृदय भी हैं। यदि किसी को कुछ देना है तो बड़ी उदारता से देते हैं। पवित्र शास्त्र के वचन मती 6:3 व 2 कुरुंथियों 9:7 पर अक्षरश: खरे उतरते हैं।

एक दिन मैं उनके आफिस में बैठ कर उनके साथ कुछ काम कर रहा था कि मैंने देखा कि उनके के हाथ में एक नया मोबाइल फोन है।

( उस समय मेरे पास मोबाइल फोन नहीं था क्योंकि मेरा फोन खराब हो गया था और मेरी इतनी हैसियत नहीं थी कि मैं नया मोबाइल फोन खरीद सकूं।)

मैने यूं ही उनसे कह दिया कि यदि आपका पुराना मोबाइल फोन आप मुझे दे दें तो…!

इस बात पर उनने उस समय कोई जबाब नहीं दिया। इसके बाद फिर मैने उनसे इसके बारे में कभी कोई बात नही की।

परंतु एक दिन जब मैं किसी काम के सिलसिले में उनके पास गया तो वे कहने लगे कि मैं सोच रहा था कि अपना पुराना मोबाइल फोन आपको दे दूं। और चुपचाप उठकर अंदर गये और मोबाइल फोन लाकर मुझे दे दिया।

ये है उनकी उदारता!

छोटा हो बड़ा! हर किसी की बात को महत्त्व देना भी एक अद्भुत गुण है उनका।

मैने कई बार देखा है कि अपने अधीनस्थ सेवा करने वालो की बात बड़े ध्यान से सुनते हैं और उनकी बातों को ध्यान में भी रखते हैं।

यदि किसी से कोई गलती हो जाए तो उस गलती करने वाले को डांटने का विशेष गुण भी शामिल है उनके व्यक्तित्व में। इस तरह से डांटते है कि गलती करने वाले को अपनी गलती का अहसास भी हो जाता है और उसे बुरा भी नहीं लगता।

यदि हम उनसे कुछ सीखना चाहते है तो वे तब तक सिखाने को तैयार रहते है जब तक हम सीख न जाएं।

यदि एक काम को उनसे दस बार भी पूछो तो वे दसवीं बार भी उतने ही सहज भाव से समझाएंगे कि जितने सहज भाव से पहली बार समझाया था।

एक दिन मैं आफिस का कोई काम कर रहा था तो मुझे अहसास हुआ कि एक काम में गड़बड़ी हुई है जबकि वे उस काम को मुझे पांच छ: बार समझा चुके थे। अब मुझे डर लग रहा था कि निश्चित ही मुझे डांट पड़ेगी। फिर भी मैं हिम्मत करके उनके आफिस में गया और उन्हें बताया कि इस काम में गड़बड़ हो गई है। उन्होंने कहा– ” दिखाइए!”

मेरे मन में उथल पुथल चल रही थी। मैने उनको काम दिखाया। साथ ही मैं उनके चेहरे को भी देख रहा था और मन में ऐसा लग रहा था कि शायद अब डांटेंगे। परंतु उनके चेहरे पर सहज भाव बने रहे और मुझे एक बार फिर से बड़ी सहजता से उस काम को समझा दिया।

मैं अपने आप को बहुत ही गौरवान्वित महसूस करता हूं कि मुझे महान गुरु के चरणों में रहकर सीखने का अवसर मिल रहा है।

-ललितपुर ( उ. प्र.)

मो. +918858899720

One thought on “मेरे गुरु”
  1. Namrata mein hi badakpan hain.
    Aapke vichaaron ko padhkar aapke vyaktitva ki jhalak dikhaayee detii hain.

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