– डॉ.मेहता नगेन्द्र
एक दिन सुबह, पड़ोसी के साथ चाय चल रही
थी। इसी बीच एक कबाड़ी गेट पर रुककर पूछा-
‘हुजूर, रद्दी अखबार है?’ पड़ोसी ने झट से कहा-
‘हां, हां, अन्दर आओ, सीढ़ी के नीचे रखे अखबार
को निकाल लाओ।’
कबाड़ी ने अखबार निकाल कर बरामदा पर
फैला दिया। तौलने के लिए बंडल बनाने लगा। ध्यान
अखबार पर चला गया। देखा कि सभी अखबार के
ऊपर-नीचे, दायें-बायें मार्जिन और विज्ञापन के सादे
स्थान पर कुछ न कुछ लिखा हुआ है। जिज्ञासावश
पड़ोसी से पूछ बैठा- ‘ऐसा किसने किया? पूरा
अखबार स्याही से रंगा हुआ है।’
जबाव में उसने कहा -‘यह मेरी कारगुज़ारी है। आप
तो जानते हो कि, मैं लिखने-पढ़ने वाला हूं। लेखन का रफ़ काम प्रायः अखबार पर ही करता हूं। साथ ही कुदरत का सेवक और पर्यावरणविद् हूं। ऐसा करके एक खर्च पर तीन बचत करता हूं। पहला काम कागज़ की बचत यानी वृक्ष की बचत, दूसरा वृक्ष की बचत से हरियाली के आच्छादन को सुरक्षित रखना और तीसरा काम अवशिष्ट का पुनर्उपयोग (रिसाइकिल)।’
इस पर मैंने उठकर पड़ोसी को गले लगाते हुए कहा- ‘मान गया श्रीमान ! कुदरत के साथ-साथ पर्यावरण-संरक्षण का यह कार्य हम सभी के लिए एक मिसाल है।’