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–  नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’

आज कालेज का वार्षिकोत्सव था। कालेज दुल्हन की तरह सजाया हुआ था। कालेज के सभी छात्र – छात्राएं अपने – अपने पैरेंटस के साथ वहां उपस्थित थे।

सभी प्रोफेसरों और छात्र – छात्राओं को एक और खुशी थी। इसी कालेज में पढ़़ने वाला एक छात्र मुरारी आज इसी कालेज में अंग्रेजी का प्रोफेसर डाक्टर मुरारी बन कर आने वाला था। सब से ज्यादा खुश प्रिंसिपल डाक्टर ओम थे। रह – रह कर मुरारी का भोला चेहरा उन्हें याद आ रहा था।

जब कोई शिष्य अपने गुरू के समकक्ष पहुंच जाता है, तो गुरू का सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है। यही हाल डाक्टर ओम का था।

कालेज के बड़े हाल में डाक्टर मुरारी का स्वागत करने के लिए सभी खड़े थे।

डाक्टर मुरारी जैसे ही कालेज में आए, पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।

डाक्टर ओम उसे फूलों की माला पहनाते, इससे पहले उस ने लपक कर उन के पैर छू लिए। खुशी से गदगद डाक्टर ओम ने मुरारी को गले से लगा लिया। दोनों की आंखों से आंसू झरझर बहने लगे।

गुरू शिष्य का एक दूसरे के लिए ऐसा प्रेम देख कर एक बार फिर सभी ने तालियां बजाईं।

“मुरारी, आज मैं बहुत खुश हूँ । तुम ने अपना प्रॉमिस पूरा किया।” डाक्टर ओम ने कहा।

“सर, यह तो आप के दिए गए मंत्र और आशीर्वाद के कारण संभव हुआ है, जो आज मैं अपने इस जीवन पथ पर खड़ा हूं। आप के इन पैरों से ही मुझे प्रेरणा मिली थी, नहीं तो अपने शरारती सहपाठियों के कारण उस दिन मैं कालेज छोड़ ही देता।’’  कहते हुए मुरारी ने एक बार फिर डाक्टर ओम के पैरों को छुआ और उसे अपना अतीत याद आने लगा।

वह कालेज छोड़ने का आवेदन पत्र लिख कर उसे देने अपने प्रिंसिपल डाक्टर ओम के केबिन में गया था।

“सर, यह मेरा कालेज छोड़ने का आवेदन पत्र है, मैं कालेज छोड़ रहा हूं।” उस ने कहा।

“तुम कालेज क्यों छोड़ रहे हो?” प्रिंसिपल सर ने पूछा।

“लड़के मेरा मजाक उड़ाते हैं।”

“अच्छा, इसे कल दे देना। अभी कालेज की मीटिंग होने वाली है।” प्रिंसिपल सर फाइल समेटते हुए बोले।

“जी सर।” कह कर मुरारी बाहर चला गया।

बाहर निकलते ही उस की कक्षा के 3 – 4 शरारती लड़कों ने उसे घेर लिया। सब ने हंसते हुए पूछा, “क्यों बे उल्टे हाथ, सर को अपना कालेज छोड़ने का आवेदन पत्र दे दिया?”

मुरारी खून का घूंट पी कर रह गया। वह आंखों में आंसू लिए वहां से भागा।

मुरारी अपने गांव से अपनी मौसी के पास शहर में पढ़ने आया था।

मौसी ने 2 – 3 माह पहले ही शहर के जाने – माने जैन कालेज में उस का इंटर में दाखिला करवाया था।

गांव का सीधा – सादा मुरारी पहले दिन ही रैगिंग के नाम पर कालेज के बदमाश लड़कों के हत्थे चढ़ गया था। कक्षा में जब वह अपना सिर नीचे झुका कर बांए हाथसे कलम गड़ागड़ाकर धीरे – धीरे लिखता तो सारे लड़के उस पर ठठा कर हंसते थे।

उस का दायां हाथ पोलियो ग्रस्त था। बायां हाथ भी कुछ टेढ़ा था। वह पूरी बांह की शर्ट पहन कर कालेज आता, तो वे लड़के उसकी कलाई के पास वाले बटन खोल आस्तीन ऊपर सरका देते और उस की पेड़ की डाल जैसी सूखी बांह को पकड़ कर खूब हिला – हिला कर कहते, ‘हाथ जोड़ सबको सलाम कर प्यारे…’

दिन ब दिन शरारती लड़कों की शरारतें मुरारी पर भारी पड़ती जा रही थी। उसमें हीन भावना कूट – कूट कर भरी हुई थी, जिससे वह मनही मन रोता रहता। उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह उन लड़कों से भिड़े।

अगले दिन मुरारी प्रिंसिपल सर को स्कूल छोड़ने का आवेदन पत्र देने उन के केबिन में गया। अभी वह दरवाजे पर ही था कि उन को पहिया कुर्सी पर बैठे हुए देखा। उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई।

“अरे, मुरारी, बाहर क्यों खड़े हो ? आओ अंदर आओ। तुम अपनी लीविंग एप्लिकेशन देने आए हो ना ?” प्रिंसिपल सर की नजर उस पर पड़ी।

“सर, आप और पहिया कुर्सी पर?” मुरारी ने पास जाकर पूछा।

“अरे, मेरी छोड़ो। अपनी लीविंग एप्लिकेशन दो।” उन्होंने हाथ आगे बढ़ा कर उस से एप्लिकेशन मांगी।

“नहीं सर, पहले मैं आप के बारे में जानना चाहता हूं। आप को व्हील चेयर पर देख कर मुझे बहुत दुख हो रहा है।’’ कहते हुए मुरारी के आंसू छलक पड़े।

“तुम एक हाथ से विकलांग हो और मैं अपने दोनों पैरों से।”

“क्या … दोनों पैरों से? यह कैसे हुआ, सर?” मुरारी चौंका।

“बचपन में ही यह हादसा हो गया था। अच्छा, मेरी बात छोड़ो। तुम अपनी लीविंग एप्लिकेशन दो। मैं उसे फाइल में लगा दूं।”

“मुझे माफ कर दीजिए सर, आप दोनों पैर खो कर भी आज इतने बड़े बन गए हैं और मैंने अपने एक हाथ से विकलांग होने पर लड़कों द्वारा मजाक उड़ाए जाने पर अपनी पढ़ाई छोड़ने का निर्णय ले लिया था। मुझे माफ कर दीजिए सर। माफ कर दीजिए।” कहते – कहते मुरारी ने अपना आवेदन पत्र फाड़ कर फेंक दिया। और सर के पैरों पर गिर कर फूट – फूट कर रोने लगा।

“मुरारी, जीवन संघर्ष का नाम है, जब तक जीना है तब तक संघर्ष करना ही है। जीवन में या अपने शरीर में कुछ कमी हो तो उसे से निराश होने के बजाए मजबूत इच्छा शक्ति के साथ कुछ काम करना बहुत बड़ी बात होती है। तुम्हारा एक हाथ विकलांग है, तुम्हारा मन तो विकलांग नहीं है ? तुम पढ़ – लिख कर इतने बड़े बन जाओ कि लोग तुम्हारा मजाक उड़ाना छोड़ दें। हर कोई तुम पर गर्व करे।” प्रिंसिपल सर उसका सिर सहलाते हुए कह रह थे।

मुरारी को लगा सर की सारी बातें जैसे कोई मंत्र के समान है। जिस से उस के अंदर भरी हुई सारी हीन भावना जल कर राख हो रही है और एक अदभूत आत्मविश्वास का संचार हो रहा है।

वह अपने आंसू पोंछ कर बोला, “सर, अब मैं कभी अपने इस बीमार हाथ के कारण दुखी नहीं होऊंगा। आज मैं आप से प्रॉमिस करता हूं कि मैं पढ़- लिख कर आप की तरह ही बनूंगा।”

प्रिंसिपल सर ने खुशी से उसकी पीठ थपथपाई।

मुरारी सर के पैर छू कर कक्षा में चला गया। उस की आंखो में एक नई चमक थी।

कक्षा में शरारती लड़कों ने उसे छेड़ा,“क्यों बे उल्टे हाथ, तू क्लास में आ गया। तू कालेज छोड़ने वाला था न।”

“आप से किस ने कह दिया कि मैं कालेज छोड़ कर जा रहा हूं।” मुरारी अपने लिए उल्टे हाथ का संबोधन सुन कर भी मुस्कुरा कर बोला, “मै इसी कालेज में रह कर अपने आप को सब की नजरों मे ऊँचा उठाऊंगा।”

उसकी आत्म विश्वास से भरी बात सुन कर वे लड़के खुद एक दूसरे का मुंह ताकने लगे।

शरारती लड़के अपनी उल्टी – सीधी शरारतों से हमेशा मुरारी को नुकसान पहुंचाते। कालेज छोड़ने के लिए डराते-धमकाते। उल्टे हाथ, लुल्हा, बायाँ हाथ वैगरह – वैगरह नामों से सब उसे चिढ़ाते, पर वह सब कुछ बरदाश्त कर सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ही डटा था।

उन लड़कों को उस दिन धक्का लगा जब मुरारी सब को पछाड़ कर इंटर में टॉप कर गया। और वे धूल चाटते रह गए। फिर तो मुरारी दोगुने उत्साह के साथ स्नात्तक और स्नात्तकोत्तर में भी टॉप कर गया।

प्रिंसिपल सर के साथ कालेज के सभी प्रोफेसर भी उस की इस कामयाबी पर बहुत खुश हुए।

मुरारी अंग्रेजी से पी. एच. डी. करने दूसरे शहर चला गया। वहां से वह हर सप्ताह फोन पर अपने प्रिंसिपल सर को अपनी उपलब्धियां बताता और वह खुशी से फुले न समाते।

“डाक्टर मुरारी, स्टेज पर चलिए ।” एक प्रोफेसर डाक्टर ओम की पहिया कुर्सी का हैंडिल पकड़े बोला तो मुरारी की तंद्रा टूटी।

डाक्टर मुरारी प्रिंसिपल सर का हाथ थामे स्टेज की तरफ चल पड़े।

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