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सिद्धेश्वर की कविता समाज के मुखौटे को उतारने में पूर्णतः सफल है l” : नेहा नूपुर
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सिद्धेश्वर कविता और कला जगत के अप्रतिम हस्ताक्षर हैं ! “: अपूर्व कुमार
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पटना ! 16/09/2022 ! ” हिंदी हमारी राष्ट्र की फुलवारी है,हिंदी ही कश्मीर है,कन्याकुमारी है, कुंठित मन की खोल दो खिड़कियां,हिंदी में ही मान सम्मान हमारी है l”/ इस जीवन में हारता कौन है?, जीवित रहते जो रहता मौन है! / जिंदगी तू मौत से घबराती क्यों है जीने के पहले तु मर जाती क्यों हो? / भींगना है अगर तो सावन से कर लो दोस्ती, सूखे फूल की तरह मुरझाना अच्छा नहीं!/ कितना जालिम है यह सावन प्यारे, इश्क-ए -अश्कों को दरिया बनाता है!महलों पर जा टपकता है, मोती की तरह, झोपड़ी को तबाही का निशाना बनाता है l”/ उजड़ा हुआ गांव है,गांव में रोने वाला भी है!,आंसू है या बरसात का पानी,समझने वाला कोई नहीं!/ शहर में रहकर देहात की बात करते हो,/ और दिखावे के लिए फुटपाथ की बात करते हो?/ यदि तुम लाश को ही इतिहास कहते हो, तो फिर क्यों कहते हो कि इतिहास जिंदा है?/ कोई आदमखोर इतिहास बनने के पहले, तुम्हारे लहू को चाट जाएगा यहां से वहां तक!/ इतिहास का रंग बदलने लगा है,और बदलने लगी है,महापुरुषों की तस्वीरें!/ माथे पर लगाकर चंदन आदर्शों से बलात्कार करते हैं, और जुड़ जाते हैं,नपुंसक व्यवस्थाओं की नपुंसक उपलब्धियों के साथ!/ रुपया पैसा शोषक के हाथों की रखैल है, जिसने बिगाड़ दिया है इंसानों का चरित्र, और शोषकों की बदचलनी बेमानी को लिख दिया है इंसानियत के बही खाते में!”/ शब्दों का पुल बांधते हो तुम, मेरे सलाम पर !/ मंजिल तो थी मगर रास्ता न था,जिंदगी को मुझसे कोई वास्ता न था! जीने की दुआएं किनसे मांगती मैं ?, मेरे लिए तो कोई भी खुदा न था! ” — जैसी 3 दर्जन से अधिक कविताओं के विविध रंगों में अपनी कविताओं का पाठ किया चर्चित कवि-कथाकार – चित्रकार सिद्धेश्वर ने ! मौका था, नेहा नुपूर टीम की ओर से ” सन क्लारा ” फेसबुक के पेज पर, ऑनलाइन एकल काव्य एवं आलेख पाठ का, जिसे तीन सौ से अधिक लोगों ने देखा और सराहा l
गोष्ठी की मुख्य संयोजिका नेहा नूपुर ने कहा कि – ” सिद्धेश्वर की कविता समाज के मुखौटे को उतारने में पूर्णतः सफल है l” जबकि अपूर्व कुमार ने कहा कि – अपने एकल पाठ में सिद्धेश्वर जी ने कविता के विविध रंग उकरे हैं l सिद्धेश्वर कविता और कला जगत के अप्रतिम हस्ताक्षर हैं ! ” जबकि कुमार श्रेय ने कहा कि सिद्धेश्वर की कविताओं में संवेदनाओं की गहराई है!”
अपने एकल काव्य पाठ के आरंभ में, हिंदी दिवस के संदर्भ में विस्तार से चर्चा करते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि – दृढ़ संकल्प और व्यवहारिक रूप से हिंदी को अपनाए बिना, हिंदी को राजभाषा बनाना मुमकिन नहीं है l यह दुर्भाग्य है कि हिंदी को जब भी राष्ट्रभाषा बनाने की बात पर सत्ताधारी लोग तैयार होते हैं, तब अपने ही देश के कई प्रांत के लोग अपने अपने क्षेत्र के भाषाई झंडे को लेकर,हिंदी को राजभाषा बनाने की विरोध करने लगते हैं l यही कारण है कि देश आजादी का अमृत महोत्सव मनाने तक अपनी राष्ट्रभाषा की तलाश नहीं कर सकी है l निश्चित तौर पर राष्ट्रभाषा हिंदी का विरोध करने वाले लोग राष्ट्र विरोधी हैं l हिंदी को व्यवहारिक तौर पर अपनाए बिना, हिंदी को शिक्षा नौकरी या व्यवसाय का माध्यम बनाए बिना, हिंदी को अंग्रेजी की कुर्सी पर नहीं बैठा सकते l न ही हमारी जनता अंग्रेजी की तरह हिंदी को सम्मान दे सकती है l आज भी अधिकांश जनता और हिंदी दिवस मनाने वाले लोग, अपने बच्चों द्वारा मां, पिताजी,बहन,भाई,सुप्रभात,शुभ रात्रि, कहने के बजाए मदर, फादर, सिस्टर, ब्रदर, गुड मॉर्निंग, गुड नाइट आदि जैसी अंग्रेजी बात व्यवहार करना ज्यादा सम्मानजनक समझते हैं, ताकि उनके बच्चे हिंदी के बजाय अंग्रेजी फराटे दार बोल सके और अंग्रेजी शिक्षा दीक्षा के कारण वे बेहतर नौकरी या व्यवसाय कर सकें l इसलिए हिंदी दिवस मनाने के बजाय हम सालों भर हिंदी व्यवहारिक तौर अपनाने की बात करें, हिंदी को व्यवसाय और नौकरी से जोड़ने की बातें करें, और तब जाकर हिंदी को राजभाषा बनाने की बात करें l
इस संगोष्ठी में ऑनलाइन अपने विचार रखने वालों में प्रमुख है – विश्वमोहन कुमार, दुर्गेश मोहन, ऋचा वर्मा, अखिलेश राव,रागिनी वर्मा,कुमार सरे, संतोष मालवीय, अभियुक्ति श्रीवास्तव, गरिमा बंधु, संदीप सरस संजय कुमार संजय,अशोक सिन्हा , राज प्रिया रानी आदि !
**** प्रस्तुति : ऋचा वर्मा ( सचिव) /भारतीय युवा साहित्यकार परिषद/ पटना मोबाइल नो 923476 0365

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