– नरेंद्र कौर छाबड़ा
नवरात्रि के दिन चल रहे थे कल अष्टमी थी और परंपरा के अनुसार इस दिन कन्याओं का पूजन कर उन्हें खाना खिलाकर उपहार दिए जाते हैं। लता ने मोहल्ले में कन्याओं की खोज की तो 6 कन्याऐं ही मिली। उसे 11 कन्याओं का पूजन करना था अब क्या करे? तभी काम वाली महरी काम के लिए आई तो लता ने उसे अपनी समस्या बताते हुए कहा वह अपने मोहल्ले से 5 लड़कियों को लेकर आए। महरी ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा उसकी खुद की दो लड़कियां हैं ,तीन लड़कियां पड़ोस से ले आएगी।
अगले दिन महरी पांच लड़कियों को लेकर समय पर पहुंच गई। सभी लड़कियां साफ-सुथरे फ्रॉक पहने, कटे बालों में आकर्षक लग रही थीं। लता का मन खुश हो गया पूरे विधि विधान से उसने 11 कन्याओं की पूजा की। उन्हें भोजन कराया फिर छोटे-छोटे उपहार देकर विदा कर ही रही थी कि उसकी सहेली रमा का फोन आया। उसे भी चार पांच कन्याओं की जरूरत थी। लता ने फौरन महरी से उसके घर कन्याओं सहित जाने के लिए कहा। सोचा इन गरीबों का भला हो जाएगा।
रमा के घर कन्या पूजन के बाद जब कन्याओं को भोजन परोसा गया तो वे एक दूसरे का मुंह देखने लगीं क्योंकि लता के घर से भरपेट भोजन करके आई थीं । रमा ने उनकी समस्या समझते हुए खाना पॉलिथीन की थैली में पैक कर दिया ।जब वह उनके लिए उपहार लेने अंदर कमरे में गई तो बच्चियों की बातों की ओर उसका ध्यान गया–” मैं यह खाना मां को दे दूंगा …” दूसरी आवाज–” मैं तो दीदी को दूंगा वह मुझे बहुत प्यार करती है”।
रमा भौंचक्की रह गई। दौड़ती हुई सी कमरे में आई और महरी को डांटते हुए बोली–” क्यों री, लड़कियों की जगह लड़कों को लेकर आ गई? इतना बड़ा धोखा करते शर्म नहीं आई ? हमारे सिर पर तो पाप चढ़ा दिया । तुझे भी उतना ही पाप लगेगा…” महरी बड़ी सहजता से बोली –” बीबी जी, आप जैसे लोग ही तो कन्या भ्रूण हत्या करवा कर लड़कियों की संख्या कम करवा रहे हैं तब आपको पाप नहीं लगता? केवल साल में 1 दिन पूजा के लिए आपको लड़की चाहिए। कहां से लाएं लड़की? मैंने तो सिर्फ लड़कों को फ्रॉक पहना कर छोटा सा झूठ बोला था पर आप जैसे लोग तो कन्याओं की जन्म से पहले हत्या करके भी अपराध बोध महसूस नहीं करते। अब आप ही फैसला कर लीजिए किसका पाप बड़ा है मेरा या आप जैसे लोगों का?”
बहुत ही सुंदर लघुकथा, बधाई
हार्दिक आभार सेवासदन प्रसाद जी
कहानी एक सच को बयां करती है।
हार्दिक आभार अंबालिका जी
हार्दिक आभार सेवासदन प्रसाद जी