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अशोक आनन 

 

नवगीत

सन्नाटे का स्वेटर –

बुन रही है दोपहर ।

धूप की –

कचहरी में ।

कर्फ्यू लगा –

दुपहरी में ।

छांव की अर्जियां ले –

पेड़ खड़े तर – बतर ।

प्यास ने –

मार दीं चिरैया ।

पानी का –

ठीक नहीं रवैया ।

कुओं से रोज़ होत है –

पानी की खटर – पटर ।

नदियों की –

उंगली छोड़ पानी ।

हो गया  –

गर्मी में आसमानी ।

जल महल भी अब हुआ  –

गर्मियों में खंडहर ।

आंधियां आंखों में –

धूल झोंकतीं ।

धूप रूमाल से –

पसीना पोंछती ।

सांझ भी अब आईं .

 

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