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– शैलजा सिंह

गीत

समय रे धीरे धीरे चल।

समय रे धीरे धीरे चल।।

टेढ़ी मेढ़ी राहें हैं

ना इठला औ ना मचल।।

छूटी उंगली बापू की

गोदी अम्मा की छूट गई।

जिन पगडंडी दौड़े थे हम

अब तो वो भी रूठ गई।

चिड़ियों का था वहीं बसेरा

दुवरा पर था पेड़ घनेरा

छूट गए वो आंगन द्वारे

जहां बारे दिया सांझ सकारे

इन्द्रधनुष थे सपनों के

हम घिरे ही रहते अपनों के

फूलों की तरह हंसना था

तितली की तरह ही उड़ना था

मन मर्ज़ी के मालिक

अपनी दुनिया मुड़ना था।

खुशियों के थे दिन अपने

बारिश में ख़ूब नहाना था।

काग़ज़ की नाव बना कर

पानी में तैराना था।

ज़िद करना तुटलाना

मनवाना बातों को

ले जाए कहां दिल

उन मीठी यादों को।

यादों की नदियां बहती

मन में होती हलचल

समय रे धीरे धीरे चल

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