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 – विद्या शंकर विद्यार्थी
गीत
रूप के तोहरा जे ना समझल कबो
धार में पातर बह के त देखले रहीत
बुल बुला के हरदम निरिखले बा ऊ
प्यार में पातर बह के त देखले रहीत
दीप कीट में गहन प्रीत बाटे जेतना
जीवन मरन के जइसे सवाले नइखे
जीत लिहलस मउत के भरोसा कके
जिनिगी में कतहीं ऊंँच खाले नइखे
आँख में आँख डाल त देखले रहीत
धार में पातर बह के त देखले रहीत।
काम के आँख अउरी बतावेला भाव
डूब जाला भँवर में बीचे जाके नाव
तोहरा सोचे के का अब आँसू के बा
लेके अलगे टघार अब किनारे लागऽ
रूप के लव तूँ अब जरावऽ अइसन
जे बासना में बा डुबल से जरे पहिले
चाह में चाह बन के त देखले रहीत
धार में पातर बह के त देखले रहीत।

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