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– केशव शरण

ग़ज़लें

नज़ारा हो कभी निर्जन में मेरे
चले आओ अकेलेपन में मेरे
नदी तट सुर्ख़ सेमल खिल उठा है
उसी के फूल हैं दामन में मेरे
सुलग उट्ठा है मेरी कामना- सा
तना चंदन का भुजबंधन में मेरे
कुहुक कोयल की कोयल को मिली है
कमी क्या जाने आवाहन में मेरे
सरस रुत के मधुर दिन चल रहे हैं
मगर हर विघ्न रसरंजन में मेरे
ये मौसम सुखप्रदायक है सुखी को
सहायक कुछ न दुखमोचन में मेरे
गुज़रते जा रहे पल सर्व सुंदर
बिखरते प्रेम-संयोजन में मेरे
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दूर रहकर उसे दुखाना दिल
अब किसी चांद पर न लाना दिल
एकतरफ़ा नहीं चलेगा अब
दिल लुटाना मगर न पाना दिल
फ़न व फ़ितरत फ़रेबियों की है
प्यार की बात में फंसाना दिल
बख़्शना चोट नैन कोरों से
और मुस्कान से जलाना दिल
मिल ! इशारा मिला जहां उसको
नाच उठता रहा दिवाना दिल
हुस्न बेदर्द है न समझा था
अब गया जान अब न आना दिल
ज़िंदगी जाय तो किधर आख़िर
दो सिरों पर रहे ज़माना,दिल
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दिल बहुत बेक़रार रहता है
जब तलक इंतज़ार रहता है
बदमिज़ाजी असह्य साक़ी की
रिंद परहेज़गार रहता है
शह्र में भूलते-भटकते हम
किस गली कौन यार रहता है
फिर मिलन के लिए तड़प होती
लाख तकरार प्यार रहता है
एकदम से नशा उतरता क्या
कुछ न कुछ तो ख़ुमार रहता है
झाड़ते-पोंछते रहो हर दिन
तब न दिल में गुबार रहता है
ग़म बराबर तलाश में रहते
कौन कब ख़ुशगवार रहता ह
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मर नहीं जा रहा धड़कता दिल
प्यार के वास्ते तड़पता दिल
एक पर एक क्या नहीं बीता
कौन-सा ख़ौफ़ है लरजता दिल
कर तमन्ना किसी तरह की भी
और महसूसता विवशता दिल
हो घटित एक बार भी ऐसा
पा सका हो कभी सफलता दिल
उस तरह अब नहीं रही दुनिया
उस तरह अब नहीं मचलता दिल
इस गली बाद ही गली उसकी
हर क़दम पर मगर हिचकता दिल
याद आता नहीं मिला हो जब
एक आनंद से छलकता दिल
– वाराणसी
9415295137

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