– सुरेन्द्र कौर बग्गा
चार वर्ष की दो जुड़वा बेटियां के मध्यमवर्गीय पिता सुनील ,एक दुकान पर साधारण सी नौकरी कर रहे थे। बड़ी मुश्किल से चार सदस्यों के परिवार का खर्च चलता।
कोरोना की दूसरी लहर में पूरा देश लॉक-डाउन होने के कारण सुनील की नौकरी भी जा चुकी थी । कुछ थोड़ा-बहुत जमा पैसा दो वक्त का खाना जुटाने में ही खर्च हो गया था।
दुर्भाग्य से सुनील, कोरोना की चपेट में आ गए। उनकी पत्नी पूनम उन्हें सरकारी हॉस्पिटल में ले गई, लेकिन वहां
जगह खाली नहीं थी, गार्ड ने उसे हॉस्पिटल में अंदर तक नहीं घुसने दिया। बेचारी पूनम की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा था ।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करें ? अगर पति को कुछ हो गया तो दो छोटी-छोटी बेटियों के साथ वह अकेले कैसे जी पाएगी ? वह रोने लगी तभी रिक्शे वाले ने उसे पास ही के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में चलने के लिए कहा।
अब वह प्राइवेट हॉस्पिटल के काउंटर पर खडी थी। काउंटर क्लर्क ने बताया कि पहले पचास हजार रूपये एडवांस जमा करें तभी उसके पति को वहां भर्ती किया जा सकेगा। वह कर्मचारी के सामने गिड़गिड़ा रही थी तभी वहीं से कुछ दूरी पर खड़े हॉस्पिटल के डॉक्टर मालिक ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया और अपने ऑफिस में ले गए ।
वह डॉक्टर से अपने पति की जान की भीख मांग रही थी, तभी डॉक्टर साहब बोले, “तुम्हारे पति का इलाज एक शर्त पर हो सकता है !”
पूनम ने हड़बडाते हुए पूछा, “जल्दी बताइए डॉक्टर साहब, वह शर्त क्या है ?”
डॉक्टर साहब ने कहा, “पति के इलाज के बदले में तुम्हें अपनी कोख ‘किराए’ पर देनी होगी।” यह सुनते ही पूनम जैसे आसमान से जमीन पर गिर पड़ी । बदहवास सी वह डॉक्टर साहब का मुंह ताक रही थी।
डॉक्टर साहब ने उसे बताया कि उनके एक उद्योगपति मित्र को कोई संतान नहीं है। उनके मित्र और उनकी पत्नी के बच्चे को जन्म देने के लिए तुम्हें अपनी कोख-किराए पर देनी होगी। इस काम को करने वाली को ‘सरोगेट मदर’ कहा जाता है। तुम्हारी दवाइयों, खानपान और अन्य सारी व्यवस्थाएं उनके मित्र द्वारा ही की जाएंगी। बच्चे को जन्म देने के बाद उनका बच्चा तुम्हें, उन्हें सौंप देना होगा बदले में वह तुम्हारे पति के इलाज का पूरा खर्च भी उठाएंगे और हो सकता है ठीक होने के बाद वह तुम्हारे पति को अपने यहां नौकरी पर भी रख ले । तुम्हारे इस कार्य से एक निसंतान दंपति के घर किलकारियां गूंज उठेगी और तुम्हारे पति को जीवन दान भी मिल जाएगा।
अब पूनम सोच रही थी कि क्या डॉक्टर साहब की बात मानना उचित होगा ? उसे लगा शायद ऐसा करके वह दो परिवारों को खुशियां दे सकती है । पहला तो अपने पति का जीवन बचाकर, दूसरा किसी और के सूने घर – आंगन को बच्चे की मधुर किलकारियों से भर देने की खुशी। शायद किसी अंजान के जीवन की रिक्तता को आनंद से परिपूर्ण करने का माध्यम बनने का, ईश्वर ने उसे मौका दिया है।
उसने अपने आंसू पोंछे और साहसिक निर्णय लेते हुए सामने रखे “सहमति- पत्र” पर हस्ताक्षर कर दिये।
- 343,विष्णुपुरी एने.
इंदौर
मो.9165176399
मरता क्या न करता।