Spread the love

 

 

 

– नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर

 

मानव जन्म से श्रेष्ठ नहीं

श्रेष्ठ गुण कर्म से होत।।

जाति पांति का ईश्वर नहीं

जगतपति पालक ईश्वर अल्लाह

सब एक ।।

मानव स्वार्थ बस बांटत भगवान

लड़त, रहत, करत, रहत भेद विभेद।।

सबहि प्रभु की संतान भेद नहीं करता

मालिक ऊंच नीच वर्ण क्यो होय।।

घृणा द्वेष दंभ सब त्यागिये प्रभु का

हृदय निवास प्राणि सब एकदिखै नहीं

अंतर बैर भाव।।

गुण की पूजा कीजिये चाहे हो प्राणि

सर्प शृगाल गुणहीन मत पूजिये जैसे

बाबुल ताड़।।

ना जन्मे अभिमान उर अंतर करुणा

क्षमा सेवा प्रभु चाह की राह।।

चींटी और हाथी दोनों ही गुणवान

जहां काम चींटी के हाथी आवे ना

काम।।

करम सिरफ अधिकार में फल

पे बस नाही प्रभु ध्यान कर करम

मार्ग जीवन सिंद्धान्त।।

छोटा बढ़ा नहीं जनम से कोई

कर्म बस प्राणि छोटा बड़ा कहलात।।

मन मे प्रभु का बास निर्मल

मन मे बसत प्रभु निर्वाध।।

गंगा, जमुना, सरस्वती, गोदावरी

मन मे ही वास मन मन्दिर में

काशी, मथुरा, द्वारका, स्वर्ग, नरक

बास।।

करम, करत, चलत, फल राखो

विश्वास करम फल निश्चय मिले

सब्र करो प्रभु साथ।।

कर्म धर्म है कर्मफल जीवन

पुरस्कार स्वर्ग नरक निर्धारण

नहीं जनम के साथ ।।

काल करम का लेखा जोखा

जन्म जीवन हिसाब स्वर्ग नरक

का न्याय।।

आलस मोह माया सकल व्याधि

कर मूल व्यापे जिनके अन्तर्मन

जीवन मे बोए शूल।।

संत शिरोमणि रवि दास कहत

जीवन के मूल निर्विकार निश्चल

कर्म धर्म प्रभु प्रेम प्रति के पुष्प।।

 

नोट : महान संत रविदास जी के

जीवन एव भक्ति सिंद्धान्त पर रचित

 

  • गोरखपुर उत्तर प्रदेश

Leave a Reply

Your email address will not be published.