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पुस्तक : शाख़ के पत्ते  ( काव्य संग्रह )

लेखिका : मनवीन कौर

समीक्षक : प्रतिभा देशपांडे

मूल्य : 200 रुपए

वरिष्ठ लेखिका मानवीन कौर द्वारा रचित “शाख  के  पत्ते” ये  कविताओं की  वो  डाली  है  जिसके  पत्ते  हरे  रंग के तो हैं , लेकिन  इसके  अलावा  इंद्रधनुष के  रंग  की  कई   छटाएँ भी   खिल  रही  है! इस  काव्यसंग्रह मे  कविताओं के बहुत  सारे  पत्ते  है!  विविध  भावरंग से  ,विविध  रस  से, विविध  उद्देश्य  से  ” शाख  के  पत्ते  ” काव्य डाली  पर झूलते  नजर  आते  है! बडी  विलोभनीय  शब्दों की   अदाकारी  से मन   अचंभित  होता  है!  सपने  और  वास्तविकता  का  अनोखा  संगम  देखकर  मन  मोहित  होता  है! मोहक  कल्पना  विलास  कभी  सपनों की   पंखुरिया  लगाकर  आसमान  को  छू कर  आता  है! कभी  वास्तव  जिंदगी  के  दर्पण  का  दर्शन  होता  है! कभी  वज्रप्रहार  का दृष्य  दृष्यमान  होता  है! कभी  मुस्कुराहट  की  अमर बेल  नजर  आती  है! कवयित्री  के  उच्च  कोटि  के  संकल्प देखकर  आदर से  हमारा  मस्तक  झुक  जाता  है! नारी  के  सम्मान  के  लिए  कवयित्री  की  व्याकुलता  देखकर ऑंखे  भर  आती  है! एक  एक  अश्रु  बिंदू  हमे  कहता ” तुझे  कसम  है  ,तुझे  झांसी  की  रानी  बनना  है! अन्याय  के  राक्षस  का  वध  करना  है! प्रखर  शब्दों से   मन मे क्रांति ज्वाला  प्रज्वलित  होती है! मातृभाषा  को  भूल  जाना  ये  कृतघ्नता  मनसे  निकल  जाती है! जिंदगी  के  कडवे  सच  हमे  अंतर्मुख  करते  है!”  प्राणवायु  ” कविता  ऑंखो में   अंजन  डालती है! छोटी सी   ” नन्ही  सोन चिरैया , नन्ही सी   बालिका  सिखाती  है ” हारना  नही,!” ” एक  टुकडा  धूप  ” ह्रदय स्पर्शी  अनुभव  !”  नन्हा श्रमजीवि  कविता का   एक  एक  शब्द  ह्रदय को  घायल  कर  देता  है! ” तेरी  यादों  मे ” कविता में  भावभावनाओं के   खूबसूरत झोंके  है! निसर्ग  का  रहस्य  देखकर  हम  चिंतन  करने  लगते  है! खुशियोंका  मतलब  समझ में  आता है! मन में   ख़ुशियाँ नाचने  लगती  है!

कविताओंकी  कुछ  पंक्तियाँ मेरे  मन में   घर  कर  गयी! रसिक  जन हो  आपके  मन  को  भी  ये  पंक्तियाँ  छू कर  ,ह्रदय मे  प्रवेश करेगी!

विज्ञान  की  तरक्की पर  इतराते  रहे! वृक्ष  काटते  रहे! ” ये  प्रखर  शब्दों से  हम  जागृत  हो  जाते  है! ” तारे  मै  तोड लूँगी !” वाह ! कितना  मीठा  सौंदर्य  है! ” बादल  को  बना  सीढ़ी ” कितना  रम्य  कल्पना  विलास! ” नदी  बहन ” कितना  प्यारा  शब्द! मन  को  छू  गया! ” “मुस्कुराहटों की  चलो  अमरबेल  लगाते  है! ” कितना  प्यारा  आह्वान  कवयित्री ने   किया  है! अब  ये  पंक्तियाँ  देखिए, ” कबतक  दुःशासन  ,रावण  जन्म  लेते  रहेंगे ” ये  पंक्तियाँ  पढकर  लगता  है, हे,राम  ,हे  कृष्णा  फिर  जन्म लेना  इस  धरती की  ओर ! ” कितने  प्रेरणादायी  विचार! ” नारी  अब  तुझे  झाँसी  की  रानी  बनना  है! ” कितना  क्रांतिकारी  विचार! अब  ये  पंक्तियाँ  देखिए ” स्मित पर  शंका, रोने पर शंका,चलने पर  शंका, ना  जी हंसने को , ना जी  रोने को, बस  बेवसी में   घुट घुट कर  मरने को !”

ऐसे वास्तववादी चित्रण से ह्रदय में हलचल मचती है! ह्रदय विदीर्ण, घायल हो जाता है!
सब कविताओं में भावसौंदर्य नदी की तरह बहता दिखाई देता है! शब्दसौंदर्य झरनेकी तरह मन को आनंद देता है! रस सौंदर्य खुशबु की तरह हमारे मन में समा जाता है!
सब रसिक जन हो, मेरी आपसे दिल से प्रार्थना है, हर व्यक्ति ने यह ” शाख के पत्ते ” ये काव्य संग्रह दिल से पढने का संकल्प करना चाहिए! क्योंकि क्रांति का बिजांकुर है ये काव्यसंग्रह! समाज में क्रांति लाने की शक्ति है ,इस काव्यसंग्रह में! तभी समाज में परिवर्तन आयेगा! समाज में परिवर्तन से देशमें परिवर्तन आयेगा! और फिर ” डाल डाल पर सोने की चिडिया करेगी बसेरा! होगा नया सवेरा!
मनवीन जी के मधुर व्यक्तित्व को सलाम!! आदरणीय मनवीन जी को ” “शाख के पत्ते ” काव्यसंग्रह के लिए शुभकामनाओं की सुवर्ण पुष्पांजलि अर्पण करती हूँ !

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