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माला वर्मा
रोजाना दोपहर को रोटी बनाते हुए एक रोटी मैं घर के सामने छत पर डाल देती हूँ। रोटी फेंकती नहीं कि एक कौवा उड़ता हुआ आता है। रोटी पर चोंच मारने के पहले वह लगातार कांव-कांव शुरू कर देता है। उसकी बोली सुन कुछ और कौवे जुट आते हैं। पलक झपकते बंटवारा हुआ और एक रोटी खत्म हो गई। कौवों ने थोड़ी देर खुटुर-पुटुर किया और उड़ जाते हैं।
मैं जिस कौवे को रोटी देती हूँ उसकी एक टांग टूटी है और जब से उसे छत पर अकेले बैठा देखा है, मोहवश रोटी देना शुरू कर दिया। किन्तु उस कौवे की इस आदत पर हैरान हूँ कि जब उसे रोटी देती हूँ वो चुपचाप पूरी क्यों नहीं निगल जाता, दूसरों को बुलाने कि क्या जरूरत! मैं तो यही सोच कर रोटी देती हूँ कि अपंग है सिर्फ इसका ही पेट भरता, लेकिन नहीं। रोटी छत पर टपकी नहीं कि कांव-कांव शुरु। सच्ची निरा बेवकूफ है।
लेकिन कुछ दिनों के बाद गहराई से सोचा तो लगा सिर्फ यही एक अपंग कौआ पगलेट नहीं है। सब के सब कौवे पगलेट है। हर कौआ भोजन देखकर आवाज लगाते हैं और मिल बांटकर खाते हैं।
महसूस किया- इस पागलपनी में भी कितनी एकता, कितनी बुद्धिमता है। इसका प्रांजल अर्थ यही निकलता है कभी कोई कौवा भूखा नहीं रहेगा। सोचिए इस अपंग कौवे का क्या होता!!
– हाजीनगर, उत्तर 24 परगना
पश्चिम बंगाल, 743135
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