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 – महेन्द्र “अटकलपच्चू” ललितपुर

कुंडलियां

मास्टर बोलें बच्चों से पूरा करियो काम
साल भर समय पर पूरा भरियो दाम
पूरा भरियो दाम पढ़ाई का नाम न लेना
अच्छे नंबर चाहिए तो ट्यूशन आ जाना
कह अटकल स्कूल तुम रोज जाना
कुर्सी पर सोते मास्टर न किसी को बताना।
सुबह सवेरे जाग कर शुरू करो सब काम
सुख में जीवन होएगा होगा जग में नाम
होगा जग में नाम करें सब जयकारा
एक बार मिलता जीवन न मिले दुबारा
कह अटकल प्रेम दया का जीवन जीना
बेटा बेटी कह सकें चौंड़ा करके सीना।
कौआ जैसी टांसती घरवारी हे! राम
डाल बिस्तरा सोवती कुछ न करती काम
कुछ न करती काम रोज सुनाती गाली
खाना मांगो तो सर पे देती थाली
कह अटकल ऐसी घरवारी से बच के रहियो
सुबह शाम उसकी इच्छा पूरी करियो।
एक काम कराने को लगाओ चक्कर सौ
करना होगा तब करेंगे सिकोडो नाक भौं
सिकोडो नाक भौं काम होवेगा पक्का
चपरासी बोले अफसर लेगा सौ का पत्ता
कह अटकल भैया नाम न लेना रिश्वत का
हाल यही है हर आफिस हर अफसर का।
अफसर करे न नौकरी नौकर करता काम
काम करने से पहले सबसे लेता दाम
सबसे लेता दाम, हजार लगाओ चक्कर
खाली कर के जेब फिर फिर जाओ दफ्तर
कह अटकल भैया सरकारी दफ्तर का रोना
विनती सीताराम से ऐसे अफसर से बचाना।

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