“शास्त्रीय संगीत एक परंपरा है, संस्कृति है और
साधना है!”: आस्था दीपाली
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
” लयबद्ध गीतों में शास्त्रीय संगीत की धुन के साथ शब्दों का गजब करिश्मा देखने को मिलता है!”: सिद्धेश्वर
—————————————————————
पटना : 10/11/2021! ” शास्त्रीय संगीत ध्वनि प्रधान होता है, शब्द प्रधान नहीं! शास्त्रीय संगीत में ध्वनि के उतार-चढ़ाव का महत्व अधिक होता है, शब्द और अर्थ का नहीं है! लेकिन पुरानी फिल्मों में नौशाद,खय्याम, चित्रगुप्त आदि कई संगीतकारों द्वारा लयबद्ध हजारों गीतों में शास्त्रीय संगीत की धुन के साथ-साथ शब्दों का गजब करिश्मा देखने को मिलता है! ऐसे गीत और संगीत आज की पीढ़ी के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं जैसे, ” ओ दुनिया के रखवाले”, “मन तड़पत हरी दर्शन को आज”, ‘मधुबन में राधिका नाचे रे ” , ” लागा चुनरी में दाग” जैसे हजारों पुरानी फिल्मी गीतों में शब्दों की करिश्माई और जादुई धुन का सामंजस्य देखने को मिलता है! हमारे जीवन में संगीत तो पत्ते, नदी,हवा, बादल, यहां तक कि दिल की धड़कनों में भी बसता हैl”
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के ” अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका ” के पेज पर ऑनलाइन आयोजित ” हेलो फेसबुक संगीत सम्मेलन ” का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किये !
इस ऑनलाइन संगीत सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए युवा कवयित्री और गायिका आस्था दीपाली ( मुजफ्फरपुर ) ने कहा कि -” संगीत हमारे चारों ओर है। संगीत के तीन स्तंभ हैं – गायन, वादन, नृत्य। तीनों एक दूसरे के पूरक हैं। हिंदुस्तानी संगीत पद्धति दो प्रकार की है – उत्तरी और दक्षिणी। उत्तरी में शास्त्रीय संगीत एवं दक्षिणी में कर्नाटक संगीत। संगीत पूर्णतया ध्वनि पर आधारित है। शास्त्रीय संगीत मुख्यतः राग पर आधारित है। विभिन्न रागों में विभिन्न थाट एवं जाति होती है। आज के समय में भी शास्त्रीय संगीत का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह एक परंपरा है, संस्कृति है और साधना है। बिना अ, आ, इ, ई सीखे हम शब्द बनाना नहीं सीखते ! ठीक उसी प्रकार स्वर और लयकारी को जाने बिना हम संगीत से नहीं जुड़ सकते। संगीत में शास्त्रीयता रीढ़ की हड्डी है। ”
इस संगीत सम्मेलन के मुख्य अतिथि थे बेतिया संगीत घराने के सत्यम मिश्रा !” आज के संदर्भ में शास्त्रीय संगीत की प्रासंगिकता ” विषय पर चर्चा में भाग लेते हुए युवा लेखिका राज प्रिया रानी ने कहा कि -” भारतीय शास्त्रीय संगीत पौराणिक और प्रगतिशील धाराओं का स्वरूप है,जिसमें स्वर और ताल का अनुशासित प्रयोग होता है और यही शास्त्रीय संगीत का आधार भी है l भारतीय शास्त्रीय संगीत संपूर्ण विश्व में बेहद जटिल और संगीत में संपूर्णता का मिश्रण है l संगीत की चर्चा सामवेद में भाव पूर्ण ढंग से मिलती है ! क्योंकि माना जाता है इस संगीत की उत्पत्ति ही वेदों से हुई ! हम सभी जानते हैं संगीत की दो पद्धतियां हैं – हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक ! हालांकि गायन बहुत जटिल है, फिर भी यह सब लोगों के प्रदर्शन को वरीयता देता है ! भारतीय शास्त्रीय संगीत का भारतीय विरासत और संस्कृति से अटूट संबंध है l वर्तमान में शास्त्रीय गायन को क्लासिकल म्यूजिक कहते हैं। इस गायकी में ध्वनि प्रधान होती है, शब्द प्रधान नहीं l शास्त्रीय संगीत का सबसे महत्वपूर्ण गुण यह है कि यह संगीत मस्तिष्क को अधिक सक्रिय तथा स्फूर्त बनाता है l शास्त्रीय संगीत सकारात्मकता की उर्जा से परिपूर्ण एवं मस्तिष्क की क्षमता शक्ति को बढ़ाने में सबसे कामयाब होता है l”
इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए अपूर्व कुमार ( वैशाली ) ने कहा कि-” सृजनात्मक भावाभिव्यक्ति होने के कारण शास्त्रीय संगीत का महत्व कभी कम नहीं होगा।जाने – माने संगीतकार नौशाद इसलिए भुलाए नहीं भूलते कि उन्होंने फिल्मों में शास्त्रीय संगीत को आबाद रखा।संगीत रत्नाकर के अनुसार,”गीतम,वाद्यम,नृत्यम त्रयम् संगीतमुच्यते।” अर्थात गायन वादन एवं नृत्य तीनों कलाओं का समावेश ही संगीत कहलाता है। सनातन परंपरा में ऐसी धारणा है कि ब्रह्मा ने नारद मुनि को संगीत वरदान में दिया था।संगीत भारतीय संस्कृति की आत्मा है। वैदिक काल में आध्यात्मिक संगीत को मार्गी तथा लोक संगीत को देशी कहा जाता था।कालांतर में आध्यात्मिक संगीत ही शास्त्रीय संगीत के रूप में जाना जाने लगा।यदि हम शास्त्रीय संगीत को समुचित सम्मान नहीं देते हैं तो हम एक अमूल्य निधि को आने वाले समय में खो बैठेंगे !संगीतों का सरताज है शास्त्रीय संगीत। शास्त्रीय संगीत तबतक प्रासंगिक है जब तक यह प्रकृति है।”
ऐसे सार्थक आयोजन लगातार किए जाने के लिए संयोजक सिद्धेश्वर को बधाई देते हुए राज प्रिया रानी ने कहा कि -” सर्वप्रथम सिद्धेश्वर सर को नमन करती हूं कि उनके द्वारा हर बार इस तरह की साहित्यिक परिचर्चा के लिए ऐसे सारगर्भित विषय का चयन किया जाता रहा है, जो हम सब के लिए चुनौतीपूर्ण और दिलचस्प तो होता ही है, खासकर हमारी जीजीविषा और बौद्धिक क्षमता को गति देने में अद्भुत शक्ति प्रदान करता है। प्रत्येक सप्ताह नियमित रूप से इस प्रकार का साहित्यिक योगदान हम नए पुराने साहित्यकार और कला प्रेमी कई सदियों तक याद रखेंगे।”
” मेरी पसंद: आप के संग ” तथा ” हेलो फेसबुक संगीत सम्मेलन “में इस परिचर्चा के अतिरिक्त देश भर के पुराने संगीत प्रेमियों ने छठ गीत, लोकगीत से लेकर फिल्मी गीतों तक को अपने स्वरों में बांधा और ढाई घंटे तक ऑनलाइन श्रोताओं का मनोरंजन और ज्ञानवर्धन किया l
आरती कुमारी(मुजफ्फरपुर) ने “ओ बरखा बहार आई !” मधुरेश नारायण ने – ” एहसान तेरा होगा मुझ पर, दिल कहता है तो कहने दे, मुझे तुमसे मोहब्बत हो गई !” गजानन पांडे ( हैदराबाद ) ने – ” तुम्हारे प्यार में हम बेकरार होके चले, शिकार करने को आए शिकार होके चले !” सत्यम मिश्रा (बेतिया )-” सुख के सब साथी, दु:ख में ना कोए !” अनुश्री ( भोपाल) ने -” तू ही तू हर जगह आजकल क्यों है ? रास्ते हर दफा सिर्फ तेरा पता पूछता क्यों है?” राकेश मिश्रा और रितु मिश्रा बनारस घराना ने -” ओ राधा, मुरलीधारी, बंसी बजा के सुना दो न !” डॉ शरद नारायण खरे (म. 0प्र. )ने -” ज्योत से ज्योत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो!” मुकेश कुमार ठाकुर ( म.प्र.) ने-” पुकारता चला हूं मैं, गली गली बहार की, बस एक छांह जुल्फ की, बस एक निगाह प्यार की !” तथा सिद्धेश्वर ने इसी गीत पर अभिनय भी प्रस्तुत किया l सुप्रसिद्ध लोक गायिका नीतू कुमारी नवगीत, सीमा रानी, खुशबू मिश्रा( बेतिया)और आस्था दीपाली ( मुजफ्फरपुर) ने छठ के गीत -” कांच ही बांस के बहंगिया,ए लचकत जाए!” गाकर पूरे संगीत सम्मेलन को उत्कृष्टता तक पहुंचाया !
इनके अतिरिक्त श्रीकांत गुप्त, घनश्याम कालजयी, सोहेल फारूकी, डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना, सेवा सदन प्रसाद, अंजूश्री, मीना कुमारी परिहार,ऋचा वर्मा, दुर्गेश मोहन आदि की भी भागीदारी रही !
o प्रस्तुति: राज प्रिया रानी एवं सिद्धेश्वर[][] oooo
{} उपाध्यक्ष: भारतीय युवा साहित्यकार परिषद }[मोबाइल 92347 60365 ]