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“जीवन के इस प्रदूषित वन में कहीं खो गई हैं हमारे जीवन की प्रेम कहानियां ! “: सिद्धेश्वर

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” प्रेम तो एक पवित्र शक्ति है, जो सिर्फ देना जानती है, लेना नहीं। : नरेंद्र कौर छाबडा 

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मीडिया के प्रसार की गहनता में प्रेम विषय पर कहानीकारों की कलम धीमी पड़ गई है।“:रशीद गौरी

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“दबाव की ज़िन्दगी में जब प्रेम तिरोहित हो रहा है, तो प्रेम कहानियों की जगह भी नहीं बची है!“: प्रो.शरद नारायण खरे

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पटना:15/11/2021 ! “जीवन के इस प्रदूषित वन में कहीं खो गई हैं हमारे जीवन की प्रेम कहानियां !भौतिक सुखों के दिव्य स्वप्न में हम ऐसे खो गए हैं कि आदर्श और इंसानियत की बातें निरर्थक लगती हैं और स्वामी विवेकानंद, गौतम बुद्ध और  महावीर जी की बातें महज कोरा  उपदेश !  फिर भला यह दुनिया कैसे समझेगी प्रेम की बातें !  समकालीन साहित्य में कैसे लिखी जाएगीं  प्रेम की कहानियां ? ”

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के ” अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका ” के पेज पर  ऑनलाइन आयोजित ” हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन ” का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए !

अपनी डायरी पढ़ते हुए उन्होंने विस्तार से कहा कि “भागम -भाग वाली जिंदगी की इस रफ्तार के बीच  दो दिलों के बीच पनपा हुआ यह जोशीला प्रेम  कब, कहां और कैसे खो जाता है, गुम हो जाता है, पता ही नहीं चलता!शायद इसलिए जरूरी है कि हम समाज और जीवन से घोर निराशा, अवसाद, तनाव, हिंसा, आतंक, अनैतिकता, बेईमानी और  पाप को कम करने के लिए ” प्रेम ” को सबसे आगे रखें ! प्रेम को जिंदा रखें !प्रेम को ही जीवन का आधार बनाएं ! प्रेम को ठीक से समझ लें l  हम समझ लें कि “प्रेम” और पाप विपरीत होता है !इसलिए प्रेम और पाप  एक साथ नहीं रखा जा सकते !

कथा सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि डॉ. शरद नारायण खरे ( मध्यप्रदेश ) ने कहा कि -” यह सच है कि दबाव की ज़िन्दगी में जब प्रेम तिरोहित हो रहा है,तो प्रेम कहानियों की जगह भी नहीं बची हैl आज का समय दबाव,भागदौड़ व चुनौतियों का है। लोग मशीनी जीवन जी रहे हैं, रिश्ते-नाते बिखर रहे हैं, तो जब प्रेम व भावनाएं समाज से विलुप्त होंगी, तो ऐसे में स्वाभाविक रूप से प्रेम कहानियों का सृजन भी कम होगा। वास्तव में साहित्य में वही समाहित किया जाता है,जो समाज में घटित होता है। तनाव से परिपूर्ण आज के दौर में और भौतिक सामग्री के लिए संघर्ष करते लोगों ने तो जैसे प्रेम को अपने जीवन से अलग ही कर दिया है।ऐसे में कहानीकार भी प्रेम के कथ्य के स्थान पर यथार्थवाद, प्रयोगवाद, विसंगतियों व पतन को कहानियों में समेटना कहीं अधिक पसंद कर रहे हैं।”

समकालीन साहित्य समाज की सच्ची झांकी ही पेश करता है,और झांकी से अब प्रेम को लगभग अलविदा ही करता जा रहा है।

कथा सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कथाकार और चित्रकार रशीद गौरी( राजस्थान) ने कहा कि -“आज के संदर्भ में संयोजक  सिद्धेश्वर द्वारा उठाए गए सवाल “समकालीन साहित्य में कहां खो गई प्रेम कहानियां ? ”  एक जरूरी हस्तक्षेप है ! वास्तव में इस यक्ष प्रश्न का सहज रूप से उत्तर देना मुश्किल ही है। पहले प्रेम कहानियां खूब लिखी जाती थीं। वे प्रेम कहानियां युवा दिलों की धड़कनों को रोमांचित कर देती थीं!परंतु मीडिया के प्रसार की गहनता में प्रेम विषय पर कहानीकारों की कलम धीमी पड़ गई है। बदलते परिवेश में साहित्य की विधाओं ने भी करवट बदली है और इसी करवट का परिणाम हमारे सामने है। हमें निराश नहीं होना है। प्रेम और प्रेम – भावना शाश्वत है। अमर-अजर है ! l”

कथा सम्मेलन के मुख्य वक्ता अपूर्व कुमार ने कहा कि -” आज के कहानीकार अपनी कहानियों में प्रेम को प्रश्रय नहीं दे रहे हैं। उनका यह कृत्य प्रेम का गला मरोड़ने जैसा है। पाठक के लिए भी मैं यह कहूंगा कि वे प्रेम कहानियों की उपेक्षा कर रहे हैं। यह प्रेम को प्राणविहीन करने जैसा कृत्य है।वर्त्तमान में कहानीकार और पाठक दोनों को प्रेम कहानियां नहीं भा रही हैं। इसका कारण यह है कि हमारे भीतर प्रेम का सोता सूख रहा है। कथा साहित्य में प्रेम के लिए यह बड़ा दुष्कर काल है।यह मानवता के लिए भी अच्छा संकेत नहीं है।”

कथा सम्मेलन का आरंभ मुख्य अतिथि ममता शर्मा  (रांची ) की कहानी ” प्रेम – श्रेम ” से हुआ !  वरिष्ठ कथाकार जयंत ने कहा कि ” ममता शर्मा की कहानी अचानक चुपचाप खत्म हो जाने के बावजूद पाठकों को विचार करने के लिए बहुत कुछ दे जाती है !

यह कहानी एक आदर्श प्रेम अर्थात प्लूटोनिक लव की कथा है। आदर्श प्रेम फिल्मी अथवा बुक स्टाइल में नहीं होता। बहुधा दोनों तरफ से प्रेम होने पर भी उसकी अभिव्यक्ति सामान्य रूप में नहीं हो पाती और वह सफलता के धरातल पर भी नहीं आ पाता। कहानी इसी तथ्य को सामने लाकर प्रस्तुत करती है।सच तो यह है कि प्रेम की अपनी सीमाएं हैं, परंतु भावनाएं सदैव से असीमित रही हैं !”

दूसरी तरफ ऋचा वर्मा ने कहा कि -” यह कहानी पुराने जमाने से चले आ रहे कथन कि ‘प्रेम जीवन में सिर्फ एक बार होता है ‘ को सिरे से खारिज करती हैं। प्रस्तुत कहानी बहुत ही सूक्ष्म तौर पर आधुनिक युग में प्रेम की बदलती परिभाषा को रेखांकित करती है। कहानी में प्रवाह है , रोचकता है, और निष्कर्ष पाठकों पर छोड़ दिया जाता है, और यही ममता शर्मा की कहानी की विशेषता भी है!”

कहानी की समीक्षा में भाग लेते हुए महाराष्ट्र की नरेंद्र कौर छाबड़ा ने कहा कि – ” प्रेम तो एक पवित्र शक्ति है, जो सिर्फ देना जानती है, लेना नहीं।आज तो हर जगह सौदा हो रहा है। वह प्यार है ही नहीं।ममता जी की कहानी दिलचस्प है।उम्र के अलग – अलग पड़ावों पर मानसिकता किस तरह बदलती है, ममता शर्मा नेअपनी इस कहानी में इसका बखूबी वर्णन किया है!

कहानी पर चर्चा के बाद नरेंद्र कौर छाबड़ा ने अपनी नई  कहानी “रूहानी प्रेम का रिश्ता “की सशक्त प्रस्तुति दी ! शारीरिक नहीं, बल्कि आत्मिक  प्रेम को  दर्शाया गया है इस कहानी में !

प्रस्तुति एवं कथानक की दृष्टि से रशीद गौरी  राजस्थान की कहानी ” मनमीत “श्रोताओं के  द्वारा काफी पसंद की गई ! गजब की कशिश और रवानगी  देखी गई !  इसके बाद वरिष्ठ कथा लेखिका पूनम कटरियार ने अपनी “अप्रूवल ” प्रेम कहानी का पाठ किया,  जिसके कई संवादों ने दर्शकों का दिल जीत लियाl

पूनम कटरियार की कहानी की समीक्षा करते हुए अपूर्व  कुमार ने कहा कि   -” कहानीकार पूनम कटरियार की कहानी “एप्रूवल” एक ऐसी सुखांत प्रेम कहानी है, जो समाज की एक ज्वलंत समस्या – विधवा विवाह का सहज समर्थन करती है। यह उन  कुंठित विचारधाराओं पर एक तमाचा है, जो सहज भाव से किसी युवा विधवा को एक दुल्हन के रूप में स्वीकारने‌ से हिचकते हैं। ”

बहुत दिनों के बाद ऐसे सार्थक कथा सम्मेलन का स्वागत करते हुए तीन सौ से अधिक दर्शकों और श्रोताओं ने इस कार्यक्रम में अपनी अभिरुचि दिखलाई ! इस संगोष्ठी में भाग लेने वाले रचनाकार थे शराफत अली खान, अनिरुद्ध दिवाकर झा,  विजयानंद विजय, गजानन पांडे,  संजय रॉय,  दुर्गेश मोहन, राज प्रिया रानी, संतोष मालवीय, राम नारायण यादव, डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना, जितेंद्र कुमार आदि !

 

प्रस्तुति: ऋचा वर्मा ( सचिव) एवं सिद्धेश्वर (अध्यक्ष,भारतीय युवा साहित्यकार परिषद,पटना )

मोबाइल :92347 60365

(Email:[email protected])

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