Spread the love

गोविन्द भारद्वाज

रोजाना की तरह पुरानी चुंगी पर मजदूरों की भीड़ जमा थी। एक साहब दो-चार मजदूरों को दिहाड़ी पर लेने आए थे। उन्होंने भीड़ देखकर अपनी गाड़ी साइड में लगा ली। गाड़ी के चारों तरफ़ मजदूर मंडराने लगे।
“बाबूजी… हमें ले चलिए..बाबूजी..हमें ले चलिए..।” का शोर गूंज रहा था। बगल वाली सीट पर  बैठी साहब की पत्नी ने पूछा, “इतने मजदूर आगे-पीछे घूम रहे हैं.. इनमें से ले क्यों नहीं लेते…काम में देरी हो रही है..।”
“आधे घंटे और रुक जा..फिर ले चलेंगे..तीन की दिहाड़ी पर चार मजदूर मिल जाएंगे..।” साहब ने हल्की सी मुस्कान छोड़ते हुए कहा। “तीन की दिहाड़ी में..चार..मैं कुछ समझी नहीं?” पत्नी ने पूछा।
साहब ने मूँछों पर ताव देते हुए कहा, “आधे घंटे बाद..जिनको काम मिलना होता है मिल जाएगा…वरना हताश होकर घर लौटने की तैयारी में लग जाएंगे…तब मैं चार सौ रूपये की दिहाड़ी लेने वाले मजदूरों की जगह तीन-तीन सौ में ले जाऊँगा…बेचारों के लिए घर लौटने से तो अच्छा है, तीन सौ रुपए में काम कर लें।”
उसी समय उनका मोबाइल फोन बज उठा, ”रामरतन जी…आप अगले महीने से कंपनी में मत आना… मालिक ने कहा है कि आप जितनी सैलेरी अकेले ले रहे हैं… उतनी ही सैलेरी में तीन इंजिनियर आने को तैयार हैं… वो भी आपसे ज्यादा अनुभवी…।” साहब कुछ कहते फोन कट चुका था।
–  पितृकृपा, 4/254, बी-ब्लॉक
हाउसिंग बोर्ड, पंचशील नगर, अजमेर-305004
राजस्थान
9461020491

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.

satta king gali