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–  डॉ. राशि सिन्हा

उसने कहा प्रेम है तुमसे
मैंने कहा भरोसे को प्रेम का पर्याय कर दो

उसने कहा अंगीकार कर‌ लो मुझे
मैंने कहा प्रेम और विश्वास में
लिपटा आलिंगन दो

उसने कहा बस…मेरी बन जाओ..

मैंने कहा मेरी मांग मे
भावनाओं के आत्मिक प्रेम
सदा तुम मेरे साथ खड़े हो
ऐसे निश्चिंत भावों का स्नेहिल रंग

मेरी देह को
आजीवन आत्मसम्मान के
गहनों का श्रृंगार
मेरी आत्म चेतना मे
अस्तित्व बोध की सजीवता का
अनमोल मंगलसूत्र दे दो…..
………….
मुद्दत हो गये

फिर …उसने कुछ भी न कहा…..

-नवादा, बिहार

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