– अलका मित्तल
ग़ज़ल
निगाहों में अब कोई जँचता नहीं है
ज़माने में कोई भी तुमसा नहीं है
मिला दर्द दुनिया से हमको हमेशा
ख़ुशी से तो अब अपना रिश्ता नहीं है
अभी से ये दिल क्यूँ मचलता है मेरा
बहारों का मौसम तो आया नहीं है
मुहब्बत है कितनी हमीं जानते हैं
मगर दिल तुम्हारा ये समझा नहीं है
मिलेंगे यकीनन ये वादा है तुमसे
किया था जो वादा वो बदला नहीं है
छुपाये हरिक राज़ इसमें हैं *अलका*
मिरा दिल समंदर है दरिया नहीं है