– अवधेश कुमार आशुतोष
बुला लिया अनंग को यहाँ वहाँ बहार ने
छिपे कहाँ सजन सुनो पिकी लगी पुकारने
कमान फूल का लिए अनंग है बसंत में
हरा भरा पहन लिया रसाल की कतार ने
द्विरेफ भी पराग की सुगंध से मलंग है
झुला दिया रसाल बौर पे उसे बयार ने
चुरा लिया सुहास ने सुकून चैन होश भी
कटार कोर नैन की लगी नशा उतारने
कली कली विहँस रही सँवर गयी दयार में
सुरंग से नहा दिया मदिर मदिर फुहार ने ।