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  • प्रवीण आर्य

 

यह दिल की लगन है, कोई मज़ाक नहीं

यह इश्क़ की अगन है, कोई मज़ाक नहीं

चाहता हूँ तेरे नाम, यह जवानी कर दूँ

यह दुनिया बेमानी, इसे मानी कर दूँ

यह अहसास-ए-सुख़न है, कोई मज़ाक नहीं

चाँद छिप रहा है, बादलों के उस तरफ़

दिल मचल रहा है, दीवारों के उस तरफ़

यह जुदाई की चुभन है, कोई मज़ाक नहीं

राह सख्त है, शहर-ए-वफ़ा का

हर सिम्त सज़ा है, जुर्मे-ए-वफ़ा का

यह उल्फ़त की जलन है, कोई मज़ाक नहीं

 

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