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–   विनोद कुमार विक्की

होली के आगमन को लेकर जितना व्यग्र शोले का गब्बर रहता है, उतनी ही आकुलता वीरू को अपनी जोरू के रूप मे बसंती को पाने की

होती है ।  वीरू की असीम याचना पर उसका इकलौता मित्र जय एक बार फिर

से रिश्ता लेकर मौसी के घर पहुँचा।

“राम राम मौसी।” मौसी के चरणों में गुलाल रखकर जय ने अभिवादन किया।

“खुश रहो बबुआ, एंड हैप्पी होली।”  मौसी ने जय के मस्तक पर गुलाल का तिलक लगाते हुए औपचारिक जवाब दिया।

“अरे मौसी, अभी तक टिकी हुई हो ? लगता है दोनों वैक्सीन के अलावा बूस्टर डोज भी ले लिया है।” जय ने चकित होते हुए कहा।

“अरे हाँ बेटा, पहली बार सरकार ने आश्वासन के बाद कुछ मुफ्त में दिया, तो लगवाय लिए।” मौसी ने मुस्कुराते हुए कहा।

“चलो बढिया है। इसी तरह बनी रहो। मौसी, मैं अपने दोस्त वीरू के लिए तुम्हारी लड़की बसंती का हाथ मांगने आया हूँ।” जय ने एक बार

फिर मौसी के सामने प्रस्ताव रखा।

मौसी – “क्यों, वीरू क्या आईसोलेशन में है, जो खुद नहीं आया?”

जय – “दरअसल मौसी, काफी बिजी शिडयूल है उसका। मरने तक की

फुर्सत नहीं उसे, इसलिए उसके बदले में मैं चला आया।”

मौसी – “अरे, ऐसी क्या व्यस्तता? काहे किसी कंपनी समूह का मालिक है तुम्हारा वीरू?”

जय – “अरे, एक नहीं, पाँच – पाँच समूह का मालिक है मौसी।”

मौसी – “अरे वाह! किस प्रकार का काम होता है उसके मालिकाना समूह में?”

जय – “प्रोडक्शन। इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट सबकुछ होता है मौसी।”

मौसी – “तनी विस्तार से बताओ, बबुआ।”

जय – “दरअसल मौसी, ऐसा है कि हमारा वीरू चार साहित्यिक व्हाटसएप ग्रुप और एक पारिवारिक ग्रुप का मालिक(एडमिन) है। उसके समूह में कहानी, कविता, व्यंग्य के उत्पादन से लेकर विभिन्न व्हाटसएप समूह से गुड मार्निंग, गुड इवनिंग सहित मौलिक और फारवार्डेड विचारों का आयात-निर्यात होता रहता है।”

मौसी (खीजते हुए) – “मतबल, कोई जिम्मेदारी नहीं उठा रखी उसने?

जय – “अरे, बिल्कुल मौसी, जिम्मेदारी उठाने के लिए ही तो बेगम की चाह में गुलाम बादशाह के साथ तनाव में दिन गुजार रहा है बेचारा।”

मौसी (आश्चर्य से) – “हँय ! बेगम, गुलाम, बादशाह ! मतलब ताश और जुआ खेलता रहता है?”

जय – “छी: ! छी: ! ऐसा नहीं है मौसी, दरअसल बेगम यानी तुम्हारी बसंती की चाह में दिनभर गाना एप्प पर गुलाम अली की गजल और बादशाह का सांग सुनता रहता है।”

मौसी (मुँह से मास्क हटाते हुए) – “कहने का मतलब अपनी कोई पूछ- पहचान नहीं उसकी!”

जय – “कमाल करती हो मौसी, अम्बुजा सिमेंट से भी बड़ी पहचान है उसकी। और पूछ तो पूछो ही मत, शायद ही कोई ऐसा दिन हो, जो बड़े – बड़़े सम्मानित व्यक्ति वीरू का शुक्रिया धन्यवाद और आभार ना प्रकट करते हों!”

मौसी (बड़ा सा मुँह खोलकर) – “ऐसा क्या ?”

जय (जेब से मोबाइल निकालकर दिखाते हुए) – “विश्वास ना हो, तो खुद ही देख लो।”

मौसी (गर्दन उचकाकर मोबाइल देखते हुए) – “वीरू क्या समाजसेवी या वीवीआईपी है, जो बड़े – बड़े लोग आभार प्रकट करते हैं ?”

जय – “दरअसल मौसी, वो अपने प्रत्येक फेसबुक फ्रेंड की सभी पोस्ट पर बड़ी तन्मयता से बधाई और शुभकामना संदेश देता रहता है, तो रिप्लाई में वे सभी आत्मीय आभार प्रकट करते हुए वीरू को धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।”

मौसी (खिसियाते हुए) – “ओह ! तो निठल्ला कुछ करता – धरता नहीं।”

जय – “ऐसा मैंने कब कहा मौसी ? दरअसल वो एक अच्छा अभिनेता गायक और निर्देशक है।”

मौसी (उत्सुकता से) – “अरे वाह ! किस फिल्म में अभिनय और गायन किया है, जरा एक का नाम तो बताओ?”

जय – “एक हो तो बताऊं मौसी! वो तो मिनट – मिनट में वीडियो बना लेता है। और गायन में तो तानसेन फेल!”

मौसी( मुंह खोलते हुए) – “ऐसा क्या!”

जय- “खुदा कसम मौसी,  टिकटाक, मौज पर तो इतनी तेजी से वीडियो बना लेता है जितनी देर में मैगी भी तैयार नहीं होती।

और स्टारमेकर पर गाता ही रहता है। एक राज की बात बताऊं, पौने दो दर्जन तो फॉलोअर्स भी हैं उसके।”

जय के जवाबों को सुनकर मौसी भौंहे तान कर बोली – “चल जरा, तेरे वीरू से मुझे मिलना है!” परिस्थिति भांप जय धीरे से बुदबुदाया – “तो… मैं ये… रिश्ता पक्का

समझूँ मौसी ?”

मौसी उग्र रूप धारण कर बोली – “रिश्ता का तो पता नहीं बेटा, लेकिन होली है, तो सोचती हूँ तेरे व्यस्त दोस्त वीरू का जोगीरा सा रा रा रा कर ही दूँ!”

मौसी की मंशा जान जय चुपचाप वहाँ से खिसक लिया।

 

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