-गौरीशंकर वैश्य विनम्र
शक्ति और शिव का मिलन, छवि शिवलिंग अनूप।
खोजा ब्रह्मा विष्णु ने, मिला न आदि स्वरूप।
बारह ज्योतिर्लिंग की, महिमा अपरंपार।
नमः शिवाय मंत्र को, जपिए बारंबार।
आत्म शिवत्व जगाइए, पाओ जग से मुक्ति।
तन, मन, धन निर्मल करो, सहज सरल है युक्ति।
शिवोहम को जान लें, करिए शिव का ध्यान।
पूर्ण करें सद्कामना, कर्म भक्ति सद्ज्ञान।
मुझको शिष्य बनाइए, हे शिव दयानिधान ।
विधिवत पूजा – पाठ का, लेश न ज्ञात विधान ।
मेरा शिव करवा रहा, मुझसे सारे कर्म।
बिन माँगे सब कुछ मिला, समझ न पाया मर्म।
निराकार शिव ज्योति सम, शिवलिंग पुण्य प्रतीक।
ज्ञान न ध्यान स्वरूप का, मुझको करो अभीक।
पुण्य महाशिवरात्रि को, जपें त्रयंबक नाम ।
अवढरदानी हो मुदित, दे देंगे निज धाम।
शिव का नेत्र तृतीय है, बौद्धिक नव आयाम।
भौतिकता में डूबकर, व्यर्थ कर्म व्यायाम।
शिव की करें प्रतीक्षा, नंदी – सा हो मग्न ।
आशिष पाने के लिए, ध्यान न करना भग्न।
दिवस महाशिवरात्रि का, देता ज्ञान अमोल।
प्रकृति – पुरुष के मेल को, देखो आँखें खोल ।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी, है शिवरात्रि सुयोग।
शिव पूजा से मिल सके, फल अभीष्ट का योग।
नमः शिवाय जाप से, शिव जी रहें प्रसन्न।
ज्ञान, बुद्धि, बल, यश मिले, पूर्ण रहे धन – अन्न।
शिव से बातें कीजिए, शिव की सुनिए बात।
आँख – कान को खोलिए, जागरूक हों तात।
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