– डॉ.मनोरमा गौतम
ऑटो आकर गली के मोड़ पर रुकती है ज्योति ऑटो से उतरकर पैदल ही घर की तरफ जाने लगती है | गुलाबी रंग की सिल्क की प्लेन साड़ी के साथ काले रंग की स्लीवलेस ब्लाउज ज्योति पर खूब फबती है। स्टेफ कटिंग खुले बालों पर काला गोगल लगाए हांथ में मनी प्लांट का पॉट लिए मंद – मंद मुस्कान के साथ ज्योति जल्दी – जल्दी आ रही होती है। गली की गेट के पास पहुंचने पर वो देखती है कि तीन महिलाएं उसकी ओर इशारा करते हुए बोलती हैं, “बड़े शान से चली आ रही हैं महारानी, चेहरे पे जरा भी शर्म नही, बांझ कही की! दस साल हो गए शादी को एक औलाद नही पैदा कर पाई लेकिन रंग – ढंग में कोई कमी नही | इसके बदले कोई और औरत होती तो डूब मरती अब तक | बेचारा दीपक भी क्या करे इसकी नौकरी तथा पैसों का लालच होगा न, नहीं तो अब तक इसको छोड़कर दूसरा ब्याह न कर लिया होता |”
ज्योति उनकी बातों को सुनकर भी अनसुना करते हुए चुपचाप निकल जाती है | ऐसा नहीं है कि ज्योति को उनकी बातों से ठेस नही लगती | बहुत चुभती है उसे लोगों की बातें, उनके ताने, उनका उसे घूरना, उसको लेकर तरह – तरह की बातें बनाना, उनके द्वारा उसे बांझ कहे जाना | शुरू – शुरू में तो वो लोगों को जवाब भी दे देती थी | लेकिन धीरे – धीरे उसके लिए ये रोज की घटना बनती जा रही थी | अब ज्योति ने भी सोंच लिया था कि किसको – किसको और कब तक वो जवाब देगी | शायद उसके नसीब में ये सब सुनना ही लिखा है | इसलिए अब वो चुपचाप खून के घूंट पी कर रह जाती है लेकिन किसी से कुछ नहीं कहती है | यहाँ तक कि दीपक से भी कोई शिकवे – शिकायत नही करती |
आज ज्योति बहुत खुश है और खुश भी क्यूँ न होए आज स्कूल में उसे बेस्ट टीचर का अवार्ड जो मिला है | सम्मान के तौर पर मनी प्लांट का पौधा, एक शाल तथा 21000 रू. की राशि मिली है | आज वह अपनी ख़ुशी रोके नही रोक पा रही है और जल्दी – जल्दी घर आकर अपनी ये ख़ुशी दीपक के साथ बांटना चाहती है |
….ज्योति एक पढ़ी – लिखी सुलझी हुई महिला है | वह सरकारी स्कूल में टीचर है | स्कूल में वो पी. जी. टी. की पद पर सोशोलोजी पढ़ाती है | इतनी पढ़ी – लिखी तथा अच्छी नौकरी करते हुए भी वह बहुत सादगी से जीवन जीती है | उसमें कोई घमंड या दिखावा नही | मीठी वाणी, स्नेहिल हृदय, बड़ों का आदर- सम्मान ये सब उसके स्वाभाविक गुण हैं | दीपक से उसकी शादी महज इत्तेफाक ही था |
….होता ये है कि ज्योति अपने माता – पिता के साथ अपनी मौसेरी बहिन राधिका की शादी में गई होती है, वहीं पर दीपक बारातियों की तरफ से आया होता है दरअसल दीपक दूल्हे राजा का अच्छा दोस्त होता है | वही पे शादी में रश्मों – रिवाज के दौरान दीपक ने ज्योति को देखा था और दूल्हे के खास मित्र होने के नाते थोड़ी बहुत हंसी – ठीठोली भी हो गई थी क्योंकि ज्योति दुल्हन की बहिन तथा दूल्हे की शाली जो थी |
तभी से दीपक का दिल ज्योति पर आ गया था | शादी सम्पन्न होने के बाद ज्योति वापिस अपने घर चली जाती है | लेकिन दीपक का मन तो ज्योति के पास ही रह जाता है | कुछ समय बाद दीपक ज्योति की मौसेरी बहिन राधिका से अपना रिश्ता ज्योति के लिए भिजवाता है | दीपक अच्छे परिवार से होता है | उसके पिता सरकारी नौकरी से रिटायर्ड होते हैं | दिल्ली में उनका अपना घर होता है | दीपक उनकी इकलौती संतान होता है | दीपक अच्छा पढ़ा – लिखा और समझदार लड़का है | वो भारत सरकार के आयकर विभाग में ऑफिसर के पद पर कार्यरत होता है | अच्छी बात तो ये है कि उसकी जॉब भी दिल्ली में ही होती है | और उससे भी अच्छी बात शादी को लेकर दीपक या उसके माता – पिता की कोई डिमांड भी नही होती है | वो लोग पूरी तरह दहेज़ के खिलाफ होते हैं | बस वो जल्द से जल्द अपने इकलौते बेटे की शादी कर देना चाहते हैं | इस रिश्ते से ज्योति की माँ बहुत खुश होती है | राधिका की पूरी बात सुन ज्योति की माँ उसके पिता से बोलती है – “देखो जी, अच्छा घर – वर इतनी आसानी से नही मिलता , मेरी मानो तो उन लोगों को इसी रविवार घर पर बुला लो, अच्छे लड़के के लिए तो हजार लोग ताक में रहते हैं इससे पहले कि उन लोगो का मन बदले हमें उन लोगों से रिश्ते की बात कर लेनी चाहिए और फिर ज्योति भी तो 28 साल की हो रही है | अब और देर करना सही नही है | वैसे भी उसको पढ़ाने के चक्कर में हम पहले ही उसकी शादी को बहुत देर कर चुके हैं | खानदान तथा आस – पड़ोस में तो उससे छोटी सभी लड़कियों की शादी हो गई है | अब तो लोग भी बातें बनाते हैं कि जानबूझकर लड़की की शादी नही कर रहे हैं उसकी कमाई जो बटोरना चाहते हैं | पहले तो बहाना था कि अभी पढ़ा रहे हैं जब पढ़ लेगी तब शादी कर देंगे लेकिन अब तो ज्योति को नौकरी भी मिल गई है अब किस बात का इन्तजार | फिर ज्योति के बाद रिंकी और डिम्पी भी तो हैं, ज्योति की हो जाएगी तभी तो उनके लिए भी रिश्ता देख पाएंगे | अच्छे घर से रिश्ता जुड़ने का मतलब है कि बाकी रिश्ते करने में भी हमें आसानी हो जाएगी | फिर ज्योति के ससुराल वाले भी अच्छा रिश्ता ढूंढने में हमारी मदद कर देंगे | ”…..
कुछ सोंचकर ज्योति के पिता राधिका से बोलते हैं, “राधिका, बेटा देखो मेरी बात का बुरा मत मानना ज्योति तुम्हारी बहिन है मैं जानता हूँ कि तुम उसके लिए गलत रिश्ता नही बताओगी लेकिन मन में एक सवाल उठ रहा है ।”
“हां, बोलिए मौसा जी, क्या चल रहा है आपके दिमाग में ?”
हैरानी से राधिका ने पूछा।
( कॉपीराइट कलाकृति – सिद्धेश्वर )
“बेटा, जब लड़का और परिवार इतना अच्छा है तो अभी तक लड़के की शादी क्यूँ नही हुई जबकि लड़का अच्छे पद पर नौकरी करता है | फिर बिना हमसे मिले – जुले उन लोगों ने ज्योति के लिए रिश्ता भिजवा दिया |”
अपने मौसा जी के चेहरे की शिकन को देख उनकी चिंता को भांपते हुए राधिका ने कहा, “मौसा जी, मैं आपकी चिंता समझती हूँ मगर मैं आपको एक बात बता देना चाहती हूँ कि दीपक ने ज्योति तथा आप लोगों को देखा है, मेरी शादी में । वो भी आया था दरअसल मौसा जी, दीपक इनका अच्छा दोस्त है और उसके घर वालों ने मेरी शादी की एलबम में ज्योति की फोटू भी देखी है ज्योति उन लोगों को बहुत पसंद है | सच बात तो ये है मौसा जी कि दीपक ने ज्योति को मेरी शादी में ही पसंद कर लिया था और तब से ही वो रिश्ते की बात करने के लिए बोल रहा था बस मैं ही समय नही निकाल पा रही थी आप लोगों से मिलने के लिए |”
राधिका की बात सुन ज्योति के पिता एक लम्बी सांस लेते हुए हल्की मुस्कान के साथ बोले, “ठीक है बेटा, पर पहले हम जाएंगे उनके घर। भाई लड़की की जिंदगी का सवाल है, एक बार जाकर उन लोगों से भी मिल ले और घर भी देख लेंगे | और वैसे भी हमारे यहाँ रिश्ते की बात करने पहले लड़की वाले ही जाते हैं | उसके बाद फिर बुला लेंगे उन लोगों को |”
“जी मौसा जी! राधिका अपने मौसा की हां में हां मिलाते हुए बोली ।
“तो फिर मैं उन लोगों से बोल देती हूँ कि आप लोग आ रहे हैं उनके घर मिलने के लिए |”
उसके बाद राधिका ज्योति की ओर कनखियों से ईशारे करती हुई बोलती है क्यूँ ज्योति सही कहा न मैंने ?
रविवार को ज्योति के पिता, उसकी माँ और उसकी छोटी बहिन डिम्पी, राधिका और उसके पति के साथ दीपक के घर जाते हैं | वो लोग दीपक तथा उसके परिवार वालों से मिलकर बहुत खुश होते हैं | बातचीत तथा हंसी ठहाकों में वक्त का पता ही नही चलता कि किस तरह सुबह से शाम हो जाती है।
अगले रविवार उन लोगों को अपने घर आने का आग्रह कर वो लोग वापिस अपने घर आ जाते हैं | ज्योति की माँ तो अभी से ही लग जाती है उनके स्वागत – सत्कार की तैयारियों में | वो घर की पूरी साफ – सफाई करती है, घर के लिए नए पर्दे लाती है, नये क्रोकरी सेट लाती है | माँ को इतना सब कुछ करते देख ज्योति माँ से बोलती है, “माँ, सब कुछ तो है अपने घर में तो आपको इतना परेशान होने की क्या जरूरत वैसे भी अपना घर इतना भी बुरा नही है।”
तब माँ उसको प्यारी सी डांट लगाती हुई बोली, “चुपकर पगली मैं देखकर आ रही हूँ उन लोगों का घर, बड़े लोग हैं वो और फिर पहली बार आ रहे हैं हमारे घर, मैं नही चाहती कि हमारी तरफ से कोई कमी रह जाए |’’
अगले रविवार दीपक तथा उसके माता – पिता ज्योति के घर आते हैं। दोनों परिवार आपस में घुल – मिल जाते हैं, ज्योति तो उन्हें पहले से ही पसंद रहती है वो लोग उसी दिन उसके हाथ में शगुन रख जाते हैं | शादी की तारीख तीन महीने के बाद की निकलती है | दोनों परिवार तैयारियों में लग जाते हैं इस बीच पता ही नही चलता कब शादी का दिन आ जाता है | धूमधाम से शादी सम्पन्न हो जाती है | उनका वैवाहिक जीवन बहुत खुशहाल होता है। दोनों एक – दूसरे को बहुत अच्छे से समझते हैं और एक – दूसरे का सम्मान भी करते हैं | उनका घर तथा जीवन सुख – सुविधाओं तथा वैभव से परिपूर्ण होता है | सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा होता है उनके जीवन में | बस कमी होती है तो एक औलाद की |
ऐसा नही है कि ज्योति माँ ही नही बन सकती, बन सकती है वो माँ! कई बार वो गर्भवती हुई है लेकिन एक – दो महीने में ही उसका गर्भपात हो जाता है | पता नही ऐसा क्या होता है कि समय से पहले ही उसका गर्भ गिर जाता है | समय रेत की तरह हाथ से फिसला जा रहा था | धीरे – धीरे शादी को दस साल बीत जाते हैं लेकिन औलाद के सुख से उनका जीवन वंचित ही रहता है | ज्योति भी 28 की उम्र से 38 की हो जाती है | इस बीच उसकी दोनों छोटी बहिनों की भी शादी हो जाती हैं उनके बच्चें भी हो जाते हैं, बस ज्योति का गोद खाली का खाली ही रहता है | दीपक भी अपने माता – पिता की इकलौती संतान रहता है | उसके माता – पिता को भी रात – दिन यही चिंता खाए जाती है कि पता नही वो दीपक की औलाद को देख भी पाएंगे कि नही | दीपक के बाद उनके वंश – बेलि को बढ़ाने वाला कोई होगा भी कि नही ? क्या उनका बेटा बेऔलाद ही रह जाएगा ? क्या उनकी पीढ़ी यही खत्म हो जाएगी | हालांकि वो लोग ज्योति से तो कुछ नही कहते थे लेकिन ज्योति उनके मन की पीड़ा को महसूस करती थी | ज्योति ने कई बार दीपक से कहा भी कि वो दूसरी शादी कर ले लेकिन दीपक उसकी इस बात से बहुत नाराज होता, वो उसकी इस बात पर झल्लाकर बोलता, ‘‘क्या इसका एक यही इलाज है ? ये नही हो सकता कि हम कोई बच्चा गोद ले ले ! हम दुनिया के पहले पति – पत्नी तो नही है जो माँ – बाप नही बन सकते, हमारे जैसे और भी हैं इस दुनिया में और फिर किसी अनाथ बच्चे को गोंद लेने में क्या बुराई है हमारे इस फैसले से किसी अनाथ बच्चे को माँ – बाप मिल जाएंगे और हमें भी हमारा बच्चा मिल जाएगा |’’
दीपक ज्योति के मर्म को अच्छी तरह से समझता था वो जानता था कि ज्योति बार – बार अपने बच्चे को जन्म से पहले ही खो देती है, बार – बार उसके अरमान टूटते हैं, वो एक ऐसी गहरी पीड़ा से गुजर रही है जिसका कोई ओर – छोर नही | ऊपर से मैं उसे दूसरी शादी की चोट नही दे सकता | बच्चा गोंद लेने के नाम पर दीपक के माता – पिता हो – हल्ला करते – ‘अरे ये क्या अनर्थ कर रहा है रे तू अब अनाथ बच्चा गोद लेगा, न जाने किसका खून होगा वो, न जाने किस जाति – धर्म का होगा… नही नही अपने जीते जी तो ऐसा नही होने देंगे हम |’’
सभी अपनी – अपनी घुटन में जीए जा रहे थे | ज्योति तो फिर भी रो लेती थी लेकिन दीपक तो भीतर ही भीतर टूट रहा था | इन सबके बावजूद भी चेहरे पर मुस्कान लिए वो घर की स्थिति को सामान्य रखने की कोशिश करता |….ज्योति के स्कूल की गर्मियों की छुट्टी पड़ती है, दीपक थोडा हवा – पानी बदलने के मकसद से कहीं घूमने की योजना बनाता है, वो भी अपने ऑफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले लेता है और ज्योति को लेकर कश्मीर जाता है | कश्मीर से लौटने के बाद ज्योति की तबियत बिगड़ने लगती है, मितली आना , सिर भारी रहना, चक्कर आना, भूख न लगना | ज्योति को महसूस होता है कि शायद वो प्रेगनेंट है। वो किसी को कुछ नही बताती और प्रेगनेंसी किट लेकर अपनी प्रेगनेंसी चेक करती है जब उसे कन्फर्म हो जाता है कि वो प्रेगनेंट है तब दीपक को बताती है। प्रेगनेंसी की बात उनके लिए कोई नई नही थी ऐसा कई बार हो चुका था ज्योति के साथ | दीपक इस बार और चिंतित हो जाता है , वो बार – बार ज्योति के अरमानो को टूटते नही देख सकता | वो तय कर लेता है इस बार किसी भी तरह की कोई लापरवाही नही करनी है. वो बहुत से डॉक्टरों से सलाह लेता है और सलाह लेने के बाद वो दिल्ली की सबसे बड़ी गईनाक्लोजिस्ट डॉ. बत्रा से ज्योति का पूरा ट्रीटमेंट करवाता है और उन्ही की निगरानी में ज्योति की पूरी देख – रेख होती है | इस बार वो हर बार से अधिक सचेत रहता है। कहा जाता है न दूध का जला छाछ भी फूंक – फूंककर पीता है बस ऐसा ही कुछ होता है उसके साथ भी | धीरे – धीरे आठ महीने बीत जाते हैं | इस बार ज्योति स्कूल से पूरे नौ महीने की छुट्टी पहले से ही ले लेती है | दीपक भी बहुत कम ऑफिस जाता है ज्यादातर घर पर ही रहता है ताकि ज्योति का ख़याल रख सके |
पर एक दिन अचानक ज्योति के स्कूल से प्रिंसिपल का फोन आता है, “हेलो मिसिज ज्योति, कल आपको स्कूल आना पड़ेगा कुछ जरुरी डोकोमेंट्स पर आपके सिग्नेचर चाहिए बस थोड़ी देर के लिए फिर आप जल्दी चली जाना यदि जरुरी नही होता तो मैं आपको ऐसे समय में कभी नही बुलाती |’’
…..अगली सुबह दीपक अपनी कार से ज्योति को लेकर स्कूल जाता है | कुछ एकाध घंटे में ज्योति फ्री हो जाती है दीपक उसे वापिस घर ला रहा होता है तभी अचानक रास्ते में ज्योति को तेज दर्द उठता है और साथ में ब्लड भी आने लगता है…. ज्योति की हालत देख दीपक भी परेशान हो जाता है और रास्ते से ही डॉक्टर बत्रा को फोन कर ज्योति की स्थिति के बारे में बताता है । डॉक्टर बत्रा उसे तुरंत हॉस्पिटल लाने के लिए बोलती हैं | डॉक्टर बत्रा पहले से ही ऑपरेशन की तैयारी करके रखती है वहां पहुचते ही ज्योति को तुरंत ओ.पी.डी. में ले जाया जाता है | लगभग एक घंटे में ऑपरेशन कर दिया जाता है |…बच्चे को गोद में लेकर डॉक्टर बत्रा काफी देर तक उसको देखती ही रहती हैं | उसके बाद बेहोश पड़ी ज्योति को भी बहुत ध्यान से देखती हैं और भावविभोर हो उसके सिर पर हांथ फेरते हुए बोलती हैं – ‘ ईश्वर तुम्हें सहनशक्ति दे ’
….फिर बच्चे को साफ कर कपड़े में लपेटकर ज्योति के बगल में रखी पालने में लिटा देती हैं | वहां से निकलकर डॉक्टर बत्रा अपने केबिन में जाती हैं और नर्स से दीपक को बुलाने के लिए बोलती हैं | डॉक्टर का बुलावा सुन दीपक मारे ख़ुशी के जल्दी – जल्दी कदम बढाता हुआ उनकी केबिन की तरफ जाता है | केबिन में प्रवेश करते ही वो डॉक्टर बत्रा से हंसते हुए पूछता है, “क्या हुआ है डॉक्टर साहब, बेबी गर्ल या बेबी बॉय, मेरा बच्चा कैसा है और ज्योति कैसी है ? क्या मैं मिल सकता हूँ उन लोगों से ?”
उसके चेहरे की ख़ुशी देख डॉक्टर बत्रा सोंच में पड़ जाती हैं । वो समझ नही पाती हैं कि ये बात कैसे बताए दीपक को, ये सब सुन उस पर क्या बीतेगी, पता नही वो बर्दास्त भी कर पाएगा कि नही |
कुछ देर सोंचकर वो बोलती हैं, “देखो, दीपक, घबराने की कोई बात नही माँ और बच्चा दोनों ठीक हैं। अभी ज्योति बेहोश है जब वो होश में आ जाएगी तब हम उसे नॉर्मल वार्ड में शिफ्ट कर देंगे तब आप मिल पाएंगे उनसे और रही बच्चे की बात तो वो भी ठीक है अभी नर्सरी में रखा गया है । अभी कुछ दिन बच्चे को यहीं रखना होगा वैसे चिंता की कोई बात नही अक्सर बच्चों को जन्म के बाद थोड़ी पीलिया की शिकायत हो जाती है बस दो – चार दिन में वो बिल्कुल ठीक हो जाएगा |”
डॉक्टर बत्रा की बात सुनने के बाद दीपक बोलता है, “डॉक्टर साहब, आपने तो ये बताया ही नही बेटी हुई है कि बेटा | क्या मैं बच्चे को देख सकता हूं ?”
दीपक की बात सुन डॉक्टर बत्रा झट से बोलती हैं, “क्यूं नहीं, अब तुम खुद ही चलकर देख लो अपने बच्चे को | लेकिन दीपक इससे पहले तुम्हें मैं कुछ बता देना चाहती हूं। मुझे नही पता कि मेरी ये बात सुनकर तुम कैसा रिएक्ट करोगे पर यह तुम्हारे जीवन की कड़वी सच्चाई है जिसे तुम्हें स्वीकारना ही होगा, लेकिन पहले तुम अपना मन पक्का कर लो |”
डॉक्टर की बात सुन दीपक थोडा घबरा जाता है और फिर हिम्मत करते हुए बोलता है, “साफ – साफ बोलिए डॉक्टर साहब आप क्या कहना चाहती हैं ? जो भी बात है आप मुझे खुलकर बताईये।” अब तक दीपक पसीने – पसीने हो चुका था।
डॉक्टर बत्रा उसे अपने साथ नर्सरी के उस वार्ड में ले जाती हैं जहाँ पर वो बच्चा रखा गया था। बच्चे के झूले के पास पहुचते ही डॉक्टर बत्रा बच्चे को उठाकर दीपक की गोद में दे देती हैं । दीपक बच्चे को गोद में लिए पिता होने का सुख महसूस भी नही कर पाया था कि तभी डॉक्टर बत्रा ने बच्चे के ऊपर से कपड़े को हटा दिया और कहा देखो दीपक यही सच मैं तुम्हें बताना चाहती थी |”
….उस समय दीपक की स्थिति ऐसी हो जाती है काटो तो खून नही, वह बर्फ की तरह जम जाता है, उसका शरीर सुन्न पड़ जाता है, वो निष्प्राण सा खड़ा एकटक उस बच्चे को देखे जाता है | डॉक्टर बत्रा के कई बार बुलाए जाने पर वो अचेतन अवस्था से बाहर आता है | पर कुछ पल के लिए उसे कुछ समझ नही आता, उसे ऐसा लगता है जैसे उसने कोई भयावह सपना देखा हो जिसका यथार्थ जीवन से कोई ताल्लुक नही है |
उसी समय डॉक्टर बत्रा ने दीपक से कहा, “देखो दीपक, मैं तुम्हारी मन स्थिति अच्छी तरह से समझ सकती हूँ लेकिन ये बात भी जान लो कि तुम दुनिया के पहले माँ – बाप नही हो जिनके घर इस तरह का बच्चा पैदा हुआ है | किन्नर कोई अमानुष नही होते वो भी हमारी तरह ही मनुष्य होते हैं, बस उनके गुप्तांग हम सामान्य मनुष्य जैसे नही होते, एक यही वजह है जो उन्हें हमसे अलग करती है और इसी एक वजह के कारण उन्हें सामान्य मनुष्य की तरह जीवन जीने को नही मिलता |
सुनो दीपक, आज विज्ञान ने तथा मेडिकल ने बहुत तरक्की कर ली है, आज कुछ भी असंभव नही, आज तो मनुष्य का प्रतिरूप रोबोट भी तैयार किया जाने लगा है, ये तो फिर भी मनुष्य है, अगर तुम चाहो तो इसका भी इलाज किया जा सकता है | सही समय आने पर हम इस बच्चे का ऑपरेशन करके इसे कोई भी एक रूप लड़का या लड़की का दे सकते हैं, बस तुम्हें थोड़ा इंतजार करना होगा क्योंकि जैसे – जैसे ये बच्चा बड़ा होगा इसकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं द्वारा पता चलेगा कि बच्चे के अंदर किसके गुण अधिक हैं लड़के के या फिर लड़की के | तब उसी आधार पर हम इसका ऑपरेशन कर इसे एक सामान्य स्त्री या पुरुष का रूप देंगे | अब सब तुम्हारे ऊपर है सोंच – समझकर डिसीजन लेना।”
दीपक ने डॉक्टर बत्रा की कितनी बात सुनी समझी होगी वो तो वही जनता होगा, उस समय दीपक के भीतर कई ज्वालामुखी एक साथ फूट रहे थे, दीपक के तो जैसे पैर तले की जमीन ही खिसक गई थी, वो सही से खड़ा भी नही हो पा रहा था, बार – बार लड़खड़ाए जा रहा था | उसकी स्थिति देख डॉक्टर बत्रा ने उसे पास ही रखी कुर्सी बैठा दिया और उसे पानी का गिलास देते हुए कहा – देखो दीपक तुम तो अभी से ही हिम्मत हार रहे हो अभी तो तुम्हें ज्योति को भी संभालना है और इस सच्चाई के साथ दुनिया का सामना भी करना है। फ़िलहाल अभी तुम्हें आराम की जरूरत है।”
लम्बी सांस लेते हुए डॉक्टर बत्रा ने कहा, “अभी तुम घर जाकर आराम करो और रही ज्योति की बात तो ऑपरेशन की वजह से अभी वो बेहोश है, उसकी देखभाल के लिए नर्स है उसके पास जब वो होश में आ जाएगी आपको इन्फॉर्म कर दिया जाएगा |”
सारी बातों से अनजान दीपक की माँ जब दीपक को अकेले आते देखती हैं तो उससे पूछती है, “अरे दीपक, तुम अकेले ज्योति कहाँ है ? तुम ज्योति को स्कूल में क्यूँ छोड़ आए साथ लाना चाहिए था न, तुम्हें पता है न उसका पूरा टाइम चल रहा है। तुम्हें उसे अकेले नही छोड़ना चाहिए था। अगर टाइम लग रहा था तो तुम वहीं रुक जाते जब ज्योति फ्री हो जाती तो उसको साथ में लेकर आते । इतनी बड़ी लापरवाही तुमने कैसे कर दी ?”
दीपक माँ की बातों का कोई उत्तर न दे बस चुपचाप अपने कमरे में चला जाता है..।
वह कोशिश करता है कि कुछ पल सो ले ताकि उसका सिर कुछ हल्का हो जाए, लेकिन चैन कहा था उसे, फिर उठकर वो कमरे से बाहर आता है और हडबडाई सी आवाज में माँ से पूछता है, – मम्मी पापा कहाँ है ?”
उसके हाव – भाव को देख उसकी माँ भाप जाती है कि जरुर वो किसी बात को लेकर परेशान है । क्या पता उस बारे में अपने पिता से बात करे… वो उससे कुछ न पूछ बस इतना बता देती है कि पड़ोस वाले सिन्हा अंकल से मिलने गए हैं।”
माँ की बात सुन दीपक फट से घर से बाहर निकल जाता है और सिन्हा अंकल के घर से अपने पापा को लेकर घर से थोड़ी सी दूर स्थित पार्क में ले जाता है और वहां पर उनसे सारा वाक्या बता देता है। लोहे की बैंच पर पिता की बगल में बैठा दीपक सिर झुकाए अपने आंसुओं को छुपाने की अनथक प्रयास करता पर उसका गला उसका साथ नही दे पा रही थी। उसका भरा गला और उसकी कांपती सी आवाज उसका सारा दर्द बयां कर रही थी |
उसके पिता ने धैर्यपूर्वक उसकी पूरी बात सुनी फिर उसके बाद बेटे के कांधे पर हाथ रखते हुए एक हल्की मुस्कान के साथ कहा, “मुबारक हो मेरे बेटे, तू बाप बन गया और मैं दादा | पिता की ये बात सुन दीपक खुद को रोक नही पाता है और पिता के सीने से लगकर छोटे बच्चे की तरह फफक – फफक कर रोने लगता है |
स्थिति को सम्भालते हुए उसके पिता ने उसकी पीठ को थपथपाते हुए कहा,
“आज जितना चाहे रो ले मेरे शेर लेकिन इसके बाद फिर कभी नही रोना |”
ऐसा नही है कि ये बात सुन दीपक के पिता को आघात नही पहुंचता लेकिन वो हिम्मतकर बेटे को समझाते हुए कहते हैं कि – सुन मेरे बच्चे कुछ बाते हैं जिस पर लोगों का जोर नही चलता और फिर नियति को कोई बदल सका है क्या ? जब जो जिस तरह से होना है वो तो होकर ही रहेगा फिर हमारे रोने दुःख मानाने से क्या फायदा | खुद को सम्भालों और ये बताओ अब तुमने आगे क्या सोंचा है | पिता की बात सुन दीपक गुस्से में बोलता है सोंचना क्या ? ऐसे बच्चे को पालकर समाज में अपना तमाशा थोड़ी न बनाना है | मैंने तो सोंच लिया है इससे पहले ज्योति होश में आए मैं उस बच्चे को उनके ( किन्नर ) समुदाय के हवाले कर देता हूँ और ज्योति को बता दूंगा कि बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ था | ज्योति का मरे हुए बच्चे के लिए रोना तो मैं बर्दास्त कर लूंगा लेकिन वो एक किन्नर की माँ कहलाए मैं ये बर्दास्त नही कर पाऊंगा, मैं क्या ज्योति खुद ये सब नही बर्दास्त कर पाएगी | समाज में हमारा रहना मुश्किल हो जाएगा | क्या मुंह लेकर जाउंगा ऑफिस और फिर ज्योति अपने स्कूल में क्या बताएगी ? वैसे भी लोग उसको कम ताने मारते हैं क्या ? किन्नर की माँ कहलाने से ज्यादा अच्छा होगा कि वो बांझ कहलाए | बांझ का दर्द किन्नर की माँ कहलाने के दर्द से कम ही होगा |”
दीपक के पिता पढ़े – लिखे समझदार व्यक्ति हैं, वो ज़माने के साथ चलने में विश्वास रखते हैं, वो भी दीपक को वही बात समझाते हैं जो कि डॉक्टर बत्रा ने कहा था कि बच्चे का ऑपरेशन करवाकर उसका जेंडर चेंज करवा देंगे |
दीपक बीच में ही पिता की बात काटते हुए कहता है – इस बीच किसी को पता चल गया तो फिर क्या करेंगे हम और फिर अभी क्या बताएंगे लोगों को कि क्या हुआ है ? क्या लोग बच्चे को देखने नही आएंगे, आखिर कब तक और किस तरह से छुपा पाएंगे इसकी असलियत, और मान भी लो कि एक परसेंट हम इसकी असलियत किसी तरह छुपा भी ले लेकिन क्या गारंटी है कि बड़े होते ही इस बच्चे के रंग – ढंग किन्नर वाले नही होंगे, तब हम कैसे छुपा पाएगे समाज से ? क्या हम समाज में खड़े होने लायक रह जाएंगे ? उसके पिता ने उसे समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन उनका सारा प्रयास असफल सिद्ध हुआ | इस समय दीपक कुछ भी सुनना या समझना नही चाहता , उसे बस एक ही बात की धुन लगी हुई है कि मुझे इस बच्चे को नही पालना, मैं बेऔलाद कहलाना बर्दास्त कर लूंगा पर इस बच्चे को नही बर्दास्त कर पाऊंगा, मुझे नही चाहिए ये बच्चा….”
रात को रह – रह कर उसे एक ही दृश्य दिखाई देता । उसे ऐसा लगता जैसे सारा ब्रह्माण्ड उस पर अट्टाहास कर रहा है, लोग उसकी तरफ उंगली दिखाकर उसका मजाक उड़ा रहें हो और कह रहे हो – वो देखो वो जा रहा हिजड़े का बाप |…
रातों – रात दीपक हॉस्पिटल जाता है | और अगली सुबह जब वह ज्योति को लेकर घर आता है साथ में अपने मन पर ज्योति के अरमानों की हत्या का बोझ भी लाता है | सभी घटनाओं से अनभिज्ञ ज्योति दीपक के कांधे पर सिर रख अपनी औलाद की मौत के शोक में डूबी, बेसुध, बेतहाशा आंसू बहाए जा रही थी |
- नई दिल्ली