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  • माला वर्मा

मिसेज सहाय आज जरा जल्दी ही सोकर उठ गई थी। अलसायी आँखों से खिड़की से नीचे झांका। जी धक्क से रह गया। ये क्या! गाड़ी पोर्टिको में पड़ी है, गैराज खुला है और मेन गेट में ताला नदारद है! इस तरह का दृश्य तो सुबह-सुबह नहीं दिखना चाहिए। तो क्या पति कहीं बाहर निकले थे जो मेन गेट खुला छोड़ दिया! लेकिन पति तो पलंग पर रजाई से मुंह ढांपे गहरी नींद में थे। वैसे भी उनकी सुबह जल्दी उठने की आदत नहीं। आउटहाउस में दईया का परिवार रहता है लेकिन वो सब भी रात भर जग पहरेदारी तो नहीं करेंगे।

मिसेज सहाय का माथा भन्ना गया था। ये कौन सा तरीका है मिस्टर का! इतनी लापरवाही! दो दिनों से लगातार मुहल्ले में चोरियां हो रही है। परसो रात उनकी दईया की साईकिल चोरी हो गई। उसके कुछ दिन पहले मोटर साईकिल गायब हुई थी। इतने करीब से चोर बेधड़क, बेखौफ सामान चोरी करके ले जा रहें हैं, पति को सब खबर है फिर भी इतनी ढिलाई, इतनी निश्चितंता! जब दो चक्के की सवारी, दो कदम से चोरी हो सकती है तो चार चक्का क्यों नहीं! अब महाशय सोकर उठे तो चाय के साथ इनकी खैर लेती हूँ। जैसे पूरे घर की सुरक्षा मेरे ही माथे है! इनका कुछ फर्ज नहीं बनता? घर को होटल समझ रखा है, खाया-पीया और लम्बे हो गये! साला… सुबह उठते मूड ऑफ हो गया। अब जब तक मन की भड़ास नहीं निकलती-चैन कहां!

रसोईघर में घुसी और चाय का पानी गैस पर चढ़ा दिया। मिसेज सहाय काम कर तो रही थी पर कुढ़न इतनी ज्यादा कि चाय में दुबारा चीनी पड़ गयी। मीठी चाय से दोनों पति-पत्नी को परहेज है पर अतिरिक्त चीनी निकले कैसे! तब तक मिस्टर सहाय बेडरूम से निकल ड्राईंग रूम में आके अपने मोबाईल दर्शन में बिजी हो गये और रोजाना की तरह गरमागरम चाय का इंतजार करने लगें।

मिसेज सहाय ने चाय का ट्रे झन्नाक से रखा और फट पड़ी, “ये क्या! रात गाड़ी गैराज में नहीं रखा! मेन गेट में ताला क्यों नहीं लगाया! गैराज खुला पड़ा है ऊपर से इतना तेज बल्ब रात भर जलता रहा! क्या तुम्हें पता नहीं कुछ फीट की दूरी से दईया के घर से कितनी वस्तुएं चोरी हो गई, फिर भी इतनी लापरवाही! लाखों की गाड़ी पलक झपकते गायब हो जाती, फिर चढ़ लेते चार चक्के की सवारी। पेट्रोल का दाम बढ़ता है तो दिल की धड़कन बढ़ जाती है, दुबारा गाड़ी खरीदनी पड़ी तो हार्ट फेल ही होगा। रिटायरमेंट के बाद क्या लोग सचमुच सठिया जाते हैं! चौबीस घंटे लैपटॉप व मोबाइल में मुंडी घुसाये रखोगे तो दिमाग की बत्ती ऐसे ही सदा फ्यूज रहेगी। अब स्वयं फैसला कर लो कि दिमाग खर्च करना है या उसे बंद ताले में रखोगे।”

सुबह-सुबह इतनी बातें अपने खिलाफ सुनकर मिस्टर सहाय भड़क गये, “गाड़ी चोरी तो नहीं हुई! सही सलामत है। साईकिल की चोरी आसान है, कोई चार चक्का कैसे उठा सकता है! गाड़ी की चाबी घर में थी। और तुम्हें सिर्फ मेरा दोष नजर आता है। दिनभर मेरी गलतियां ढूँढती रहती हो, कहीं से कुछ स्लिप हुआ नहीं कि बोलना शुरू। अब सुबह-सुबह मेरा दिमाग मत खराब करो, जाओ अपना काम देखो।”

मिसेज सहाय बिफर गई, “जो कुछ भी कहा क्या गलत था! लाखों की वस्तु अपनी ढिलाई से निकल जाने दोगे! कल गाड़ी बच गई तो इसका मतलब ये नहीं कि उसे खुले में छोड़ दो। गाड़ी ही चली गई तो घूमना-फिरना, बाजार-हाट कैसे होगा! रिक्शा ऑटो-टोटो में बैठोगे नहीं, इज्जत जाती है अपनी। टैक्सी वाले अनाप-शनाप पैसे मांगते हैं, ये सब तुम्हारा ही कथन है। गाड़ी रहेगी तो तुम्हारा ही फायदा है, मुझे क्या मैं तो घर में बैठी रहूंगी। घूमने का शौक तुम्हें ही है। स्साला… अच्छी बातें कहो तो वो भी कड़वा लगता है। ठीक है आज अभी से तुम्हें किसी बात के लिए एलर्ट व समझाना बुझाना बंद करती हूँ। जब तक कोई भारी धक्का नहीं लगेगा बुद्धि नहीं खुलेगी। कुछ कहूँ तो बेमतलब की बहसाबहसी शुरू कर देते हो। शांत मन से सोचना कि तुमने क्या किया और मैंने क्या कहा। बढ़िया होता चोर तुम्हारी कार उठा कर ले जाते, फिर देखती तुम्हारे चेहरे पर आते-जाते उन सभी सात रंगों को। पूरा घर संभालती हूँ अब ये भी मेरी ही ड्यूटी है कि गाड़ी गैरेज में गई या सड़क पर खड़ी है। चेत जाओ वरना एक दिन गाड़ी से हाथ धो बैठोगे।”

मिस्टर सहाय ने गलती की थी पर पुरुष दर्प के तहत इसे स्वीकार कैसे करें! रोजाना ठीक ही चल रहा था। कल रात मोबाइल में लगातार टन-टन की आवाज सुन वे तेजी से घर में घुसे और गेट, गैराज व गाड़ी सब खुला रह गया। मन ही मन, गलती हुई है, का विचार मन में आ रहा था किन्तु पत्नी के सामने झुक कैसे जाये! छोटा कैसे बने! आदतन फिर बड़बड़ाने लगे। नारी के सामने एक पुरुष झुक जाये! ये मर्द जाति की तौहीनी नहीं!

मिसेज सहाय इसके बाद कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। उनके जिम्मे अभी ढेरों काम थे। नाश्ता पानी, खाना पीना सब रेडी करना था। दिनभर लैपटॉप, मोबाइल पर व्यस्त रहने से एक स्त्री का काम नहीं चल सकता, किन्तु इसे एक पुरुष निभा ले जाते हैं और घर में है तो तीन टाइम खाना मिल ही जाएगा।

काम जैसा रोजाना होता है वैसे ही सुचारू रुप से चलता रहा क्योंकि आप लाख झगड़ लें, दिल-दिमाग चाहे जितना अशांत रहे उससे पेट की कोई रिश्तेदारी नहीं। समय पर भूख लग ही आती है। किन्तु यहाँ भी दोरंगी नीति होती है। औरतें गुस्से में खाना पीना छोड़ देती हैं, उन्हें भूख नहीं लगती किन्तु अधिकतर मर्दों को उस झगड़े वाली स्थिति में भी कड़ाके की भूख लगती है। सहाय जी उसी केटेगरी में आते हैं। उन्हें वक्त पर खाना चाहिए चाहे झगड़ा छोटा-मोटा हो या गंभीर। और ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ था, जब-तब कुछ न कुछ लगा ही रहता हैं। हाँ, सहाय जी चाहे जितनी गलती करें। कभी स्वीकारा नहीं, तो आज क्यों मान लें! जैसे कल नार्मल थे, अभी भी पूरा सामान्य थे।

किन्तु मिसेज सहाय के दिमाग पर वही बात, वही घटनाक्रम छाया रहा। चोरी की वारदातें निरन्तर अपने गली-मुहल्ले में बढ़ रही है। कहां तो वे रात में खिड़कियाँ, दरवाजे बंद करना नहीं भूलती और इधर सहाय जी से इतनी भारी चूक!

नाश्ता, खाना बना टेबुल पर रख दिया गया, किन्तु पति-पत्नी के बीच बातचीत बंद रही। पति के दिल में अहम भाव जाग्रत था और इधर पत्नी गुस्से में आहत। पत्नी की गलती नहीं थी किन्तु पति एक बार भी ‘सॉरी’ बोलने को तैयार नहीं। आश्चर्य! ऐसा बहुत घरों में होता होगा तब भी पति-पत्नी का सम्बन्ध डटा रहता है। हम अपने बच्चों को ‘थैंक्यू’ ‘सॉरी’ बोलने के लिए सीखाते हैं पर यही बच्चे बड़े होकर भूल जाते है। अपनी गलती मान लेने का जज्बा कितनों के पास है!

खैर, शाम होते मिसेज सहाय इवनिंग वॉक के लिए निकल गई जैसा कि हर दिन होता था। एक खास जगह इनकी मित्र मंडली जुटती हैं। आधे घंटे पार्क में घूमना-टहलना और आधे घंटे की बतकूचन बेंच पर बैठे-बैठे होती। घर-परिवार से जुड़ी बातों की कहीं कमी नहीं। हर दिन कुछ न कुछ मसाला निकल ही आता है। छह-सात महिलाओं का ये ग्रुप बिलानागा घूमने निकलता है। कुछ घर की, कुछ जग की, कुछ हँसी-ठट्ठा, कुछ सुख-दुख की बातें शेयर करके अपने-अपने घर लौट जाती है। चौबीस घंटे में ये ‘एक घंटा’ उनका सबसे प्रिय समय होता है। मन का बोझ हल्का हुआ और वे प्रफुल्लित घर वापसी करती हैं। समस्या कुछ भी हो-निदान चुटकियों में होता है।

और…आज इस ग्रुप की सबसे चहेती, सबसे जिंदादिल, मस्तमौला व्यक्तित्व की स्वामिनी मिसेज सहाय का चेहरा उतरा हुआ था। घूमने का कार्य तो पहले सलटा लिया जाता है, उसमें कोताही नहीं होती चाहे किसी के मन पर मनों बोझ ही क्यों न हो। बेंच पर बैठ स्थिर होने के बाद सखियों ने मिसेज सहाय को चुपचाप देख कई सवाल कर डाले।

मिसेज सहाय मानो इसी का इंतजार कर रही थी, अतिरिक्त मिर्च मसाला लगा कर कल वाली घटना का ब्यौरा दिया। हरदम खुशमिजाज बुलबुल की तरह चहकने वाली मिसेज सहाय की आँखों में आँसू उमड़ आये और अंत में यह कहना नहीं भूली कि कार की चोरी हो जाती तो अच्छा था। मिस्टर सहाय का दिमाग ऐसे दुरुस्त नहीं होगा जब तक जोर का झटका न लगे। किसी चोर का अता-पता हो तो उसे खबर करो… कार के साथ कुछ इनाम भी दूँगी।

मिसेज सहाय की बात सुन कुछ महिलाओं ने अफसोस प्रकट किया, किसी को हँसी आई चोर वाली बात पर तो एक बिहारी सखी ने उसका हाथ थाम जवाब दिया, “अपने नईहर में कुछ लोग हैं जो वहां के लोकल मस्तान लोगों को जानते हैं। तुम कहो तो आरा-पटना से आठ-दस हट्टे-कट्ठे आदमी बुलवा देती हूँ। कोई एक रात फिक्सड करो। तुम्हारी चार चक्का वाली गाड़ी को ये दो पैरों वाले इंसान अपने सिर पर लादे रातों-रात कैसे ‘जय कन्हैया लाल की, मदन गोपाल की’ रट लगाते हुए झारखंड से बिहार की धरती पर पहुँचा देंगे और किसी को कानोंकान खबर नहीं होगी। मिस्टर सहाय को सोने दो रजाई ओढ़ के। तुम चाहो तो तुम्हें भी खबर न होंगी। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। चैन की नींद सोना…”

उसके बाद तो ऐसा ठहाका गूंजा कि पार्क में घूमते हुए अन्य लोग ठिठक गये। अकस्मात ये हँसी का दौरा! महिलाओं ने लॉफिंग क्लब तो नहीं खोल दिया! ऐसी हँसी तो इस पार्क में पहली बार सुनी गई थी।

मिसेज सहाय घर लौट रही थी। दिल-दिमाग फूल की तरह हल्का हुआ था। सोच रही थी कि रात के खाने में क्या बनाऊँ। आलू का भूजिया और पूड़ी छान लिया जाए। उन्हें तो भाता ही है पति को भी बहुत पसंद है या फिर क्लब चलकर ऐग चिकेन रोल या फिर लटपटिया भूना मीट व लच्छा पराठा! उसके पहले चिकन सूप लिया जा सकता है। ऐसा कितनी बार हुआ है कि खाना बनाने का मूड नहीं या कुछ अलग हट के खाने का मन हुआ तो चल कर क्लब में खा लेते हैं। वहाँ हर दिन स्वादिष्ट आइटम बनते हैं।

लेकिन आज मिसेज सहाय कैसे कुछ बोले! पति के साथ तो सुबह से कट्टी है। सिर्फ एक बार पत्नी का मन रखने के लिए ही ‘सॉरी’ बोल दिया होता तो सुबह ही बात खत्म हो जाती। ठीक है, मैं ही क्यों झुकने लगी वो भी खाने के नाम पर! दईया को बोल देती हूँ रोटी, आलू का चोखा बनाकर रख देगी। पूड़ी भुजिया गया भाड़ में, फालतू का बहसाबहसी और तर माल खायेंगे! न खुद अच्छा खाऊँगी न खाने दूंगी।

घर लौटीं तो शाम के साढ़े छह बज गये थे। जानबुझ कर पार्क में थोड़ी देर बैठी रह गई थी। पति सोफे पर बैठे टी.वी. देख रहे थे और चेहरा सुथनी की तरह लटका हुआ था, जबकि मिसेज सहाय नॉर्मल थी। दईया चाय बनाकर टेबुल पर रख गई तथा खाना क्या बनेगा पूछने लगी।

मिसेज सहाय रोटी-चोखा की बात उठाती तब तक मिस्टर सहाय कह उठे, “खाना बनाने की जरूरत नहीं, हम क्लब जाकर कुछ खा लेंगे,”

दईया को तो जैसै मुँहमांगा मिल गया। चटपट कप-प्लेट धोकर घर से तीर की तरह निकल गई।

मैंने आवाज में तल्खी घोलते हुए कहा, “मुझे क्लब नहीं जाना, न पकवान खाने हैं। तुम्हें जाना है तो जाओ, इस बात के लिए जबरदस्ती मत करना। मेरा मूड ठीक नहीं… सुबह से झंझट पसार रखा है और अभी चोन्हा रहे हो!”

मिस्टर सहाय ने आवाज में अतिरिक्त प्रेम घोलते हुए कहा, “क्लब जाने की जरूरत नहीं। मैंने क्लब से ऑर्डर करके खाना घर ही मंगवा लिया है जो आठ बजे तक पहुंच जायेगा। आज क्लब में तुम्हारा फेवरिट आइटम बना है – लटपटिया सूखा मीट व लच्छा पराठा। स्टार्टर  में चिकेन सूप तथा मीठा में गाजर का हलवा। ये कॉम्बीनेशन तो तुम्हें हमेशा पसंद आता है…”

मिसेज सहाय की बोलती बंद, लेकिन एक बात मन में खटकती रही – “बंदे ने दिनभर में सिर्फ एक बार ‘सॉरी’ बोला होता तो ये खाने का प्रपोजल मिस्टर सहाय नहीं मिसेज सहाय ने खुशी-खुशी रखा होता…पर नहीं तो नहीं, जिद्दी द ग्रेट…”

  • हाजीनगर, उत्तर 24 परगना

पश्चिम बंगाल, 743135

मोबाइल : 9874115883

ई-मेल : [email protected]

( पत्रिका  वनिता जनवरी 2022  मे इस कहानी को प्रथम पुरस्कार मिला है ।  साहित्यप्रीत  की तरफ से माला जी को हार्दिक बधाई !)

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