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आज मोबाइल पर रचनाएं खूब लिखी और पढ़ी जा रही है तो क्या प्रिंट मीडिया पर संकट छा गया है ? इसी विषय पर sahityaprit.com के साहित्य संपादक सिद्धेश्वर जी ने ऑनलाइन परिचर्चा करवाई, जिनमें प्रमुख साहित्यकारों के विचार यहाँ दिए जा रहे हैं। 

सिद्धेश्वर

साहित्य का सृजन भले पन्ने पर होता हो, किंतु पाठकों को पढ़ने के लिए, प्रिंट मीडिया ही चाहिए ! यानी प्रिंट मीडिया का विकल्प मोबाइल, साहित्य नहीं हो सकता l

अधिकांश साहित्यकार पन्नों पर ही साहित्य का सृजन भी करते हैं,  मोबाइल पर नहीं l मोबाइल या कंप्यूटर, लैपटॉप पर भी सीधे-सीधे बोलते हुए कुछ लोग साहित्य सृजन करते हैं । ऐसे कुछ लोग ही हैं जो बोलकर या सीधे-सीधे सोच विचार करते हुए कहानी,  कविता, आलेख या लघुकथा सृजन करने की क्षमता रखते हैं l

लेकिन ऐसा अपवाद ही होता है l अक्सर साहित्य सृजन का आधार कलम और कागज ही होता था, होता है और होता रहेगा l क्योंकि कागजों पर, सृजन का शब्द उतरते उतरते, कई बार काट छांट और शब्दों के हेर-फेर एवं अपेक्षित बदलाव की स्थिति से भी गुजरता है और तब जाकर साहित्य का उत्कृष्ट रूप सामने आता है l

वैसे साहित्य सृजन का मुख्य उद्देश्य सिर्फ शब्द बनकर कागजों पर उतर जाना नहीं होता l बल्कि जिस व्यक्ति और समाज के लिए साहित्य का सृजन होता है,  उन तक साहित्य को पहुंचाना भी साहित्यकार का उद्देश्य और कर्तव्य होता है l

कविता, लघुकथा, कहानी, उपन्यास या साहित्य की कोई भी विधा हस्तलिपि में भी सार्वजनिक हुई है,  समाजिक हुई है l  किंतु सीमित क्षेत्र में रहने के कारण बहुआयामी नहीं हो सकी है l साहित्य को पाठकों से जोड़ने के लिए तथा व्यापक स्तर पर पहुंचाने के लिए ही प्रिंट मीडिया सामने आई। यानी पत्र-पत्रिका या पुस्तकों में रचनाओं का प्रकाशन आरंभ हुआ l इन्हीं माध्यम से साहित्य का विस्तार हुआ और व्यापक स्तर पर साहित्य पठनीय बन सका l  प्रिंट मीडिया लंबी अवधि तक प्रभावकारी रही, बल्कि आज भी अत्यंत प्रभावकारी है !

हालांकि बढ़ती हुई तकनीक और बदलते हुए समय ने, पाठकों को मोबाइल और इंटरनेट से जोड़ने में सफलता प्राप्त की हुई हैl यानी प्रिंट मीडिया के आगे इंटरनेट मीडिया ने अपना पांव फैलाना शुरू कर दिया l स्थिति यह हो गई कि कविता,  कहानी, लघुकथा,  संगीत सबकुछ डिजिटल प्लेटफॉर्म का हिस्सा बनती चली गई l  यानी अधिकांश पाठक प्रिंट मीडिया के साथ-साथ,  कविता, कहानी, लघुकथा, लेख आदि मोबाइल, लैपटॉप के पेज पर,  फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि के माध्यम से पाठकों तक पहुंचने में कामयाब हो गए l

पाठकों का जो जुड़ाव पत्र -पत्रिकाओं या पुस्तकों से था,  धीरे-धीरे वही पाठकगण,  ई -अखबार, ई पत्रिका, ई पुस्तक की ओर बढ़ने लगे l  और आज हम देख रहे हैं कि प्रिंट मीडिया की अपेक्षा मोबाइल से पाठकगण अधिक जुड़ गए हैं l और चलते फिरते, उठते बैठते, ई पत्र -पत्रिकाएं, ई पुस्तकें पढ़ रहे हैं, पढ़ -पढ़कर, पढ़ते हुए प्रतिक्रिया भी दे रहे हैं l  ऐसे पाठकों में गंभीरता भले कम हो, किंतु साहित्य के माध्यम से जो संदेश आम पाठकों तक, आम लोगों तक साहित्यकार पहुंचाना एचाहता था,  वह बहुत बेहद तक सफल रहा है और साहित्य की पाठकीयता भी बढ़ी  है l

कुछ लोगों का मानना है कि इसका दुष्परिणाम भी हुआ है l यानी गंभीर साहित्य से पाठक कटते चले गए हैं या फिर गंभीर पाठक, गंभीर साहित्य से कटते चले गए हैं l  मोबाइल साहित्य से न तो लेखक संतुष्ट है, न तो प्रबुद्ध पाठक l ई -पत्र-पत्रिकाओं और ई – पुस्तकों, में छोटी-छोटी कविताएं, लघुकथाएं भले पढ़ ली जाती हों l लेकिन  लंबी-लंबी रचनाएं पढ़ने के लिए पाठक मोबाइल से दूर भाग रहा है l

कई पाठकों ने इस बात को स्वीकार किया है कि “आज के व्यस्त समय में पुस्तकें पढ़ने के लिए किसी के पास समय नहीं है l  इसके बावजूद डिजिटल क्रांति ने सब कुछ सुलभ कर दिया है l  हम किसी भी चर्चित रचनाकार की कहानियां  डाउनलोड कर पढ़ सकते हैं l  नवोदित की श्रेष्ठ कहानियां,  जिसे कोई पत्र -पत्रिका या प्रकाशक  प्रकाशित नहीं करता था,  उसकी कहानियां भी मोबाइल के माध्यम से सुलभ हैं और पढ़ी जा सकती हैं l ”

उपरोक्त बातों से भी  इनकार नहीं किया जा सकता l  इसके बावजूद एक सच यह भी है कि जो सुख और आत्म तृप्ति प्रिंट मीडिया के माध्यम से साहित्य को पढ़ने से मिलती है,  वह मोबाइल के माध्यम से कदापि नहीं l

शायद यही कारण है कि मोबाइल पर नि:शुल्क उपलब्ध कराए जाने के बावजूद भी,  बड़ी-बड़ी कहानी, उपन्यास, आलेख, संस्मरण या शोध निबंध पढ़ने वालों की संख्या बहुत कम है l  मोबाइल पर कविता, लघुकथा,पत्रिका, पुस्तक भी पढ़ने वालों की संख्या कम हो गई है।

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♦ कौशल किशोर

विषय है आज के परिवेश मे मोबाइल पर पढी जा रही कहानियो पर चर्चा ।कहानी साहित्य की गद्य साहित्य की एक सशक्त विधा है । आज डिजिटल युग से हमलोग गुजर रहें हैं । मोबाइल एक सशक्त माध्यम हो गया जानकारी प्राप्त करने का तो हमारे समझ से तो और चीज देखने मे लोग समय ज्यादा व्यतित करते होंगे कहानी पढने की अपेक्षा । यह तो व्यक्तिगत रूची कौन लोग कहानी पढ रहे हैं कौन लोग कविता पढ रहे हैं क्या यह जाना जा सकता है ? फिर मेरी जहां तक कहानी मोबाइल पर पढने की बात है तो मै सिर्फ प्रेमचंद और रेणु जी की कहानियों को पढता हूं । हां अब जो कोरोना काल की स्थिति से गुजर रहें हैं और  इस समय मे ई बुक एवं ई लर्निंग पर बहुत जोर दिया जा रहा है ।लोग मोबाइल के माध्यम से कवि गोष्ठी  का आयोजन के साथ ही आन लाईन वर्ग का भी संचालन हो रहा है ।

लेकिन कहानी को पढने के लिए पुस्तक का होना बहुत जरूरी है । जितना आनंद पुस्तक से कहानी पढने मे है उतना आनंद  मोबाइल से नही । मोबाइल, फोन संवाद के लिए बना था ।एक दूसरे से हाल समाचार के लिए लाया गया था क्योकि चिट्ठियाँ पहुंचने मे तीन से चार दिन लग जाते थे पहले आज मोबाइल से हम तुरंत लोगो से बातचीत कर अपनी सुख दुख का इजहार तुरंत कर लेते हैं ।इंटर नेट के माध्यम  बहुत से कठीन प्रश्न हल हुए । बहुत सी बातों की जानकारी हमे मिल जाती है ।

यहां प्रश्न है कि आज मोबाइल मे कितनी कहानियां पढी जा रही है चर्चा इस पर करना है । कहानी की प्रासंगिकता पर नही । अच्छी कहानियां सभी पसंद करते हैं ।जिनके पास अरथाभाव है और  पुस्तक नही खरीद सकते  वे मोबाइल के माध्यम से कहानियों का अध्यन कर सकते हैं । नेट ने दुनिया की जानकरी प्राप्त करने के लिए सब कुछ आसान कर दिया है। अच्छे अच्छे लेखक की कहानियां हो दादा दादी की कहानियां हो  भूत प्रेत की कहानियां हो  राजा रानी की कहानियां हो सभी अपनी रूची के अनुसार मोबाइल के माध्यम से कहानी पढते हैं । उसके लिए एप भी बना है ।जहाअं कहानियों का संग्रह मिल जाता है ।

आज के परिवेश मे मोबाइल से कहानी को पढना आसान हो गया है ।

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 अनीता मिश्रा सिद्धि

अति सामयिक और सार्थक विषय आद सिद्धेश्वर जी ने चुना है।

आज के व्यस्त समय मे पुस्तकें पढ़ने के लिए किसी के पास समय नहीं है।पर डिजिटल क्रांति ने सब कुछ सुलभ करा दिया है। हम कहीँ भी रहे ,आराम से प्रसिद्ध कहानीकारों के कहानियों को नेट से डाऊनलोड करके पढ़ सकते हैं। विदेशी लेखकों को भी पढ़ सकते हैं। आज कई नवोदित लेखक भी कहानी लिख रहे है। उन्हें भी पढ़कर उनका उत्साह-वर्धन कर साहित्य के क्षेत्र में आगे आने के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकतें है। दूसरी पहलू हम अगर किताब खरीद किसी लेखक को पढ़ते हैं तो उसे हम संग्रह भी कर सकतें हैं।

मेरे विचार से “आज के समय को औरमोबाईल के चलन में सार्थक प्रयास होगा हम सभी एक पाठक वर्ग तैयार करें । आज लिखने वाले ज्यादा हो गए हैं। पढ़ने और उस पर विचार करने वाले कम। अगर किसी भी लेखक को कोई पढ़ेगा ही नहीं , तो लेखन का औचित्य ही क्या रह जायेगा? ज्वलन्त प्रश्न है हम सभी के आगे। इसका समाधान करना ही होगा।

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♦ बी एल प्रवीण

विषय गम्भीर है। इससे जुड़ी कई बातें स्वत: प्रश्न चिन्ह बन कर उभर आती हैं। चाहे कुछ भी पढ़ना हो, वह ज्ञान तलाशने तक ही उपयोगी है। रोचकता का जहां तक विषय है, किसी भी रचना के लिए मोबाइल में पढ़ना अपेक्षाकृत तौर पर मुश्किल भरा तथा कष्ट साध्य  होता है। संतुष्टि तभी मिलती है जब उसे समय लेकर पढ़ा जाए। तकनीकी कारणों से यह मोबाइल के साथ संभव नहीं हो पाता, इसका अनुभव सभी को है। इसमें अतिरिक्त उर्जा की खपत के साथ-साथ आंखों को नुकसान पहुंचाने वाली उत्कीर्ण किरणों का खतरा तो बना ही रहता है। मध्य में किसी कॉल के टपक पड़ने पर कैसा मज़ा आता है यह सभी को पता है।

विचारणीय तथ्य यह भी है कि करोना काल ने यह जो अवसर प्रदान किया है वह मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षार्थियों के लिए भी

नुकसानदायक हो गया है। घर बैठे लैपटॉप अथवा कम्प्यूटर पर पढ़ाई करना यदि सही होता तो विद्यालय  सदा के लिए बंद कर दिए जाते।यह सच है कि किताब के महत्व को कभी समाप्त नहीं किया जा सकता । आज भी प्राचीन पांडुलिपियां हमें यह बोध कराती हैं कि ज्ञान मीमांसा की चीज है जिसे लगातार पढ़ने, सुनने और समझने पर ही हासिल किया जा सकता है। इसके लिए उपयोगी माध्यम मोबाइल के बजाय पुस्तकें ही हो सकती हैं।

याद आती है जब हमें बचपन में रेलवे स्टेशन स्थित बुक स्टाल पर चंपक और पराग जैसी पत्रिकाएं

देखकर ही उसे पढ़ने की ललक जोर मारने लगती थी। आज भी ताजा अखबार को पढ़ कर जो संतुष्टि मिलती है वह मोबाइल में देख कर नहीं मिलती।

कहानी को मोबाइल में पढ़ लेना आसान है। कठिनाई कुछ भी नहीं है। किंतु इसका दूरगामी प्रभाव शुभ संकेतक  हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। यूं तो मोबाइल ने पूरी दुनिया मुट्ठी में कर ली है। विरासत के तौर पर  किताब बची रहे, यह जरूरी है।

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  नीतू सुदीप्ति नित्या 

आज के विषय मोबाइल में कहानी पठनीयता पर अपने विचार में मैं यहीं कहूँगी कि वैश्विक महामारी कोरोना ने 2020 के मार्च से इतना आतंक मचाया था कि लॉक डाउन में सभी लोग घर में बैठ गए थे। कहीं आना-जाना नहीं किसी से मिलना जुलना नहीं।

पत्रिका-पुस्तकें छपनी बंद हो गई। ऐसे समय में नई तकनीक से जुड़ा स्मार्ट फोन ही सभी का सहारा बना था, तारणहार बना था। उस समय सभी लेखक-पाठक अपने फोन से ही कहानी पोस्ट करने लगे और पढ़ने लगे थे।

सभी लोगों ने अपनी पत्रिका-पुस्तक की pdf बना कर मोबाइल के जरिए बांटा।

कहानियों की सबसे बड़ी वेबसाइट प्रतिलिपि पर लाखों रचनाएं हैं और उसे करोड़ों पाठक पढ़ते हैं।

परिवर्तन संसार का नियम है। हम अपने मोबाइल में ही किसी की रचना कभी भी पढ़ लेते हैं।  अगर रचनाएं अच्छी हो तो हम कहानी मोबाइल से पढ़ें या हाथ में किताब लेकर दोनों स्थितियों में पाठक उस कहानी से जुड़ ही जाता है।

मोबाइल में कहानी पढ़ने की पठनीयता इसी बात से लगाई जा सकती है कि आज बड़ी-बड़ी पत्रिकाओं जैसे हंस, वागर्थ, मेरी सहेली, सखी, सरिता, गृहशोभा और वनिता आदि की अपनी वेबसाइट है और पाठक मोबाइल में उन कहानियों को उतनी ही आत्मीयता से पढ़ रहे हैं जितनी हाथ में किताब लेकर!

मेरी खुद की वेबसाइट साहित्यप्रीत डॉट काम है।  जिसे मैंने 2020 में ही बनाई थी। बीच में यह बंद हो गई थी अब फिर चालू हो गई है और उसे लगातार देखा-पढ़ा जा रहा है।

सबसे बड़ी बात आज सिद्धेश्वर सर मोबाइल के जरिए ही हम दूर बैठे सभी लोगों से ऑनलाइन  कार्यक्रम के जरिए मिल रहे हैं। मोबाइल और किताब दोनों में कहानी पढ़ने का महत्त्व है और दोनों की पठनीयता हमेशा बरकर रहेगी।

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 राज प्रिया रानी 

हम कहानियां पुस्तक मैगजीन पर जो शौक से, आवश्यकतानुसार, या सहज प्रवृत्ति के अनुरूप पढ़ लेते हैं या ट्रेन में सफर के दौरान शौकिया तौर पर पढ़ लेते हैं वहां मोबाइल पर कहानी पढ़ने का कोई औचित्य ही समझ नहीं आता। मोबाइल पर जरूरी संदेश भेजने और उपयोगिता अनुसार लिखने में ही व्यस्तता लोग दिखाते हैं तो कहानी पढ़ने का एक अलग वक्त निकालकर बहुत खास ही हो सकता है। घर की महिलाएं अपने बच्चे को खाना खिलाने के दौरान या बच्चे को शौकिया तौर पर मोबाइल पर छोटी-छोटी कहानियां दिखाते हैं देखते हैं अपना मन बहलाते हैं। शिक्षाप्रद कहानियां बच्चे को जागृत भी करती हैं जो मोबाइल पर महिलाएं अपने बच्चे को दिखाकर चलचित्र की भांति उनके मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखने का उपाय ढूंढती हैं और बच्चे भी नैतिक कहानियां पढ़कर देखकर आनंद का अनुभव करते हैं जो मोबाइल पर कहानियों की उपयोगिता के रूप में होता है। जहां फिल्म के रूप में कहानी प्रस्तुत होता है तो बच्चे खाना भी खा लेते हैं मां भी खुश हो जाती है कि बच्चे खाना खा लिए और बच्चों का मन भी बदल जाता है आनंद अनुभव करते हैं बच्चे कुछ नैतिक शिक्षा बच्चों के दिलो-दिमाग पर छा जाती है या मोबाइल पर कहानी की उपयोगिता के रूप में ही होता है परंतु आज के भागम भाग वाले जिंदगी से रोजमर्रा के वक्त निकाल कर मोबाइल पर कहानी पढ़ने का शौक कोई पाठक नहीं करता संभवतः किसी पाठक को कहानी पढ़ने की रुचि होती है तो पत्रिका को ही प्रथम दर्जा देता है मोबाइल पर कहानी पढ़ने पर असहज महसूस करता है। मोबाइल पर लोगों की व्यस्तता सुबह उठते ही सुप्रभात से लेकर रात के शुभ रात्रि तक एक साथी के रूप में मोबाइल अपने जरूरी कारणों से स्वयं का संसाधन मानते हैं ऐसे में पाठक मोबाइल को अन्य उपयोगों के लिए रखते हैं मोबाइल की उपादेयता उनके कार्यों के अनुसार ही होता है ना कि लंबी कहानियों का पढ़ना उनका शौक कतई नहीं हो सकता। कविताएं आकार में छोटी और ऊर्जा वर्धक होने के कारण पाठक को प्रिय होता है जो कहानी चलचित्र का रूप लेता है वह पाठकों को पसंद आता है परंतु कहानी का पूरा आनंद मोबाइल का स्थान पर पाठक समाचार पत्र या पत्रिकाओं को ही ज्यादा अहमियतता देती हैं।

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जयंत

आज के संदर्भित विषय पर आयोजित परिचर्चा के लिए  संयोजक श्री सिद्धेश्वर धन्यवाद के पात्र हैं l

यह बात सच है कि आज के समय में मोबाइल पर कहानी की पठनीयता कई मायने से सफल है। निश्चित तौर पर आज  जबकि सोशल डिस्टेंसिंग का समय है। मोबाइल ने साहित्य के लिए एक महत्वपूर्ण साधन का काम किया है।

…….  परंतु हमें यह ध्यान रखना होगा मोबाइल साहित्य के लिए एकमात्र साधन नहीं हो सकता। हमें पहले समय की प्रतीक्षा करनी होगी और फिर से कागज कलम की ओर लौटना होगा। हमें यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि इंटरनेट पर पर उसी जारी बहुत सी कहानियां ऐसी हैं जो हम से दूर ले जा रही है। ऐसी कहानियों से बचने की भी आवश्यकता है।

……  मोबाइल पर भी कहानियां पढ़ने के अपेक्षा सुनी और देखी अधिक जा रही है l इसका सफल प्रमाण है आज लाइव आयोजित  कथा सम्मेलन  सिद्धेश्वर द्वारा संयोजित आज पढ़ी गई  कहानियां !

आइये मोबाइल पर पड़ी गई  आज की कहानियों पर कुछ चर्चा करूँ तो अपूर्व जी की कहानी आदर्श पर आधारित है तो यह कहानी यथार्थ से परे ली जाती है यूट्यूपियन ऑडियोलॉजी की पोषक है। हत्या अरमानों के मनोरमा गौतम की एक लंबी कहानी है और इस कहानी का नायक जो एक बार आदर्श होने का दंभ भरता है जब उसके यहां किन्नर बच्चे का जन्म होता है तो वह भीरु बनकर भाग खड़ा होता है। मीना परिहार जी की कहानी दहेज छोटी और सुंदर है। रसीद गौरी जी ने अपनी कहानी मसर्रत को बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत किया। हनी एक सार्थक संदेश देती है कि किस प्रकार लोग बहू को प्रताड़ित करते हैं। इस कहानी में बहू ससुर के प्राणों की रक्षा की है। रीता सिंह जी की कहानी अहिल्या एक बिल्कुल हटकर अलग कहानी है। इस कहानी में अहिल्या के पत्थर होने और फिर से नारी रूप में बदलने का वैज्ञानिक विश्लेषण हुआ है। आज ऐसी कहानियों की नितांत आवश्यकता है। कुल मिलाकर आज की सफल गोष्ठी के लिए आप सभी धन्यवाद के पात्र हैं। एक बार फिर से इस मोबाइल पर, फेसबुक के “अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका ” पेज पर  एक सार्थक कथा सम्मेलन कराने के लिए, मैं आप सबके साथ साथ भाई सिद्धेश्वर का भी धन्यवाद करता हूं।

 

प्रस्तुति :सिद्धेश्वर

♦ (सिद्धेश्वर का पता):

0 सिद्धेश्वर,”सिद्धेश् सदन” अवसर प्रकाशन, (किड्स कार्मल स्कूल के बाएं) / द्वारिकापुरी रोड नंबर:०2, पोस्ट: बीएचसी,  हनुमाननगर ,कंकड़बाग ,पटना 800026 (बिहार )मोबाइल :92347 60365 ईमेल:[email protected]

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