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– डॉ. सच्चिदानन्द प्रेमी

 

नाच रहे सपने जीवन के

कब होगा मधुप्रात?

बीत रही यह रात !

निशा घनी है सनसन करती,

सूने घर में डर-भय  भरती;

शिशिर रात की वसुधा अंबर-से

करती गलबात !

बीत रही यह रात !

थर-थर कांप रहा तन ऐसे,

अर्णव ज्वार भरा नभ जैसे;

निद्रा सौतन साथ न छोड़े-

करती हर पल घात !

बीत रही यह रात !

उलट गई सृष्टि शुभ माया,

दिन कृष्-काय जलज सकुचाया;

आध-अधूरी छनी चंद्रिका-

कुमुद शिथिल सकुचात!

बीत रही यह रात !

परिवा-दूज-तीज है बीता ,

मावस को पूनम ने जीता;

सपने में ऋतुराज पधारे-

सोच शिशिर इठलात !

सखी री ! बीत रही है रात !

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