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– समीर उपाध्याय ‘ललित’

मायूस क्यों होता है मनवा?
ज़िंदगी यदि ग़म से भरी लगती है तो
ख़ुशी के हसीन पल भी है।
एक बार उन पलों को मन भर जी भी लें….

मायूस क्यों होता है मनवा?
ज़िंदगी यदि अश्क का समंदर लगती है तो
रिमझिम बारिश की बौछार भी है।
एक बार बौछार में मनभर नहा भी लें….

मायूस क्यों होता है मनवा?
ज़िंदगी यदि ज़हर का प्याला लगती है तो
अमृत का कलश भी है।
एक बार अमीरस घोलकर पी भी लें…

मायूस क्यों होता है मनवा?
ज़िंदगी यदि कंटक से भरा रास्ता लगती है तो
सुवासित सुमन की सेज भी है।
एक बार उसकी मनहर ख़ुशबू का मज़ा भी लें…

मायूस क्यों होता है मनवा?
ज़िंदगी यदि संपूर्ण रसहीन लगती है तो
अनहद शराबे उलफ़त भी है।
एक बार शराबे उलफ़त का लुत्फ़ भी उठा लें.

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