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– डॉ. रीता सिंह

मोना, सच में अहिल्या पत्थर की हो गई थी क्या? क्या तुम्हें उस सन्त के प्रवचन की इस कहानी पर विश्वास है?
मोना और विमला एक बड़े सन्त के प्रवचन-कार्यक्रम से लौटते हुए आपस में आहिल्या की घटना पर चर्चा कर रही थी।
मोना और विमला दोनों बचपन की सखी है। अभी वह पंद्रह साल की है। अपनी दादी के सानिध्य में इस प्रवचनों में जाना सीखा है। इन प्रवचन कार्यक्रम में जाने की छूट घरवालों से आसानी से मिल जाती है। इसके बहाने इनका घूमना भी हो जाता है। अन्य सहेलियों से मिलना-जुलना भी हो जाता है।
मोना के प्रश्न पर विमला ने कहा, महाराज जी ने कहा है तो सत्य ही होगा। महाराज जी एक दिन के प्रवचन का लाखों रुपया लेते हैं। गलत बोलते तो कोई इतना पैसा उन्हें देता क्या? पैसे के वजन से सन्त के शब्दों के वजन को विमला तौलती है। मोना को भी यह सही ही लग रहा है। आखिर लाखों रुपया किसी झूठे को तो नहीं दिया जा सकता है। अहिल्या का पत्थर बनना सत्य ही होगा।
पर उसका मन मान नहीं रहा है कि कोई जीवित औरत पत्थर बन सकती है और राम के पैर के स्पर्श से फिर से जीवित हो सकती है।
बातचीत करते हुए विमला का घर आ जाता है।
अरे! दादी तुम पहले कैसे आ गई? विमला की दादी को घर में देखकर दोनों को आश्चर्य होता है कि वह प्रवचन स्थल से इतनी जल्दी घर कैसे आ गई? साथ ही तो चले थे सब।
दादी बोली, मैं तुमलोगों की तरह रास्ते भर गपियाती नहीं आती हूँ। वैसे क्या बात कर रही थी तुमदोनों रास्ते भर ? प्रवचन में क्या सीखा?
मोना को मौका मिल गया। उसने दादी से भी वही प्रश्न किया कि दादी क्या सच में अहिल्या औरत से पत्थर बन गई थी। कोई पति बोल देगा, तो कोई औरत पत्थर बन जाएगी।
दादी ने दोनों को बैठाया और अहिल्या की कहानी प्रारम्भ कर दी।
इंद्र भगवान ने एक दिन देवी अहिल्या को धोखा दिया था। देवी अहिल्या ब्रह्मा भगवान की मानस पुत्री थी। वह अत्यंत सुंदर थी। सभी देवता उनसे शादी करना चाहते थे। ब्रह्मा ने शर्त रख दी कि जो सबसे पहले त्रिलोक का भ्रमण करके आएगा, उससे अहिल्या का विवाह करेंगे। इंद्र पूरा प्रयास कर सबसे पहले पहुंचे। उनकी जीत की घोषणा होने ही वाली थी।
लेकिन तभी खबर मिली कि गौतम ऋषि ने इंद्र से पहले परिक्रमा पूरी की है। अहिल्या की शादी गौतम ऋषि के साथ हो गई। इंद्र को यह स्वीकार नहीं था। वह एक दिन गौतम ऋषि का रूप लेकर आया और अहिल्या के साथ धोखे से संबन्ध बना लिया। अहिल्या इस धोखे से अनजान थी। पर उसे इस धोखे की सजा मिली। उनके पति गौतम ऋषि ने उसे पत्थर हो जाने का श्राप दिया।
मोना को कहानी पसन्द नहीं आई। बताओ भला, जब अहिल्या की कोई गलती ही नहीं थी तो उसे श्राप देने का मतलब! श्राप देना था तो इंद्र को देते,जिसने गलती की। अहिल्या को श्राप देकर गौतम ऋषि ने ठीक नहीं किया।
मोना, मोना…….
अरे, देखो मोना, तुम्हारी माँ बुला रही है। जल्दी जाओ, दादी ने मोना की माँ की आवाज सुनकर मोना को घर भेजा।
मोना का मन मान नहीं रहा था।
उसे स्कूल में अपने शिक्षिका के द्वारा बताई गई बातें याद आ रही थीं। स्कूल की शिक्षिका तो कुछ और बता रही थीं। कह रही थीं ऐसी कहानियां विभिन्न ग्रन्थों से ली जाती है। बता रही थीं कि प्रवचन में सन्त लोग ऊपर-ऊपर की बात करते हैं।
पर ग्रन्थों की बात को सीधा-सीधा नहीं समझा जा सकता है। ग्रन्थों की बातें सूत्र की तरह होती हैं। उसकी विशेष व्याख्या होती है। जरूर अहिल्या वाली बात की भी कोई विशेष व्याख्या होगी, कल उन्हीं से पूछूँगी।
इस निर्णय से उसका मन थोड़ा स्थिर हुआ और मां के बताए कामों को करती हुई, सुबह का इंतजार करने लगी।
अरे! मोना- विमला, सुबह-सुबह इधर कैसे?
शिक्षिका ने दोनों का स्वागत किया।
जी, हमें एक प्रश्न पूछना था, इसलिए आपके घर चले आये।
बहुत अच्छा। आओ बैठो। बताओ क्या प्रश्न है?
दीदी, महाराज जी ने कल प्रवचन में अहिल्या के पत्थर बनने की बात की। हमारी दादी ने भी इसे सही बताया। पर कोई जीवित औरत पत्थर कैसे बन सकती है और मान लिया बन भी गई तो फिर वह वर्षों बाद एक स्पर्श से जीवित कैसे हो सकती है?
मोना ने जल्दी से अपनी जिज्ञासा सामने रखी। आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर रही मोना का यह प्रश्न सही भी था। उसे ऐसी अनर्गल बातें पच नहीं रही थीं।
शिक्षिका हँस पड़ी। क्यों, महाराज जी पर विश्वास नहीं है।
विश्वास तो है, पर कोई महिला पत्थर बन जाए, यह सही नहीं लगता है। मोना बोली।
वहां और भी बच्चे खेल रहे थे। सभी उत्साहित हो उठे। हाँ, दीदी कोई औरत पत्थर कैसे बन सकती है?
सही सोच रहे हो तुमलोग। मुझे तुमलोगों पर गर्व है कि ऐसी बातों पर तुम्हारे मन में प्रश्न उठते हैं।
सच है, कोई जीवित औरत, एक श्राप से पत्थर नहीं बन सकती है। यह सब तो संकेत में बोलने की भाषा है। जैसे हम बोलते हैं नाच ना जाने अंगना टेढ़ा। इसका मतलब अंगना का टेढ़ा हो जाना तो नहीं हो जाता है। उसी तरह अहिल्या का पत्थर बन जाना कहना, उसका वास्तविक पत्थर बन जाना नहीं है।
अहिल्या ब्रह्मा की मानस पुत्री थीं। ब्रह्म तत्व की ज्ञाता थीं। ब्रह्म तत्व के ज्ञाता को हमेशा सचेत रहने की आवश्यकता है। प्रति पल के घटना के प्रति उन जागरूक रहना था।
उनके पिता के द्वारा रखे गए शादी के शर्तों को गौतम ऋषि ने पूर्ण किया था। वह गौतम ऋषि के साथ विवाह सूत्र में बंधकर भूलोक की वासी बनी। वह गुरु-पत्नी के रूप में शिक्षिका की भूमिका में आ गईं। समाज में शिक्षक की और भी बड़ी भूमिका होती है। वह समाज में चेतना के वाहक होते हैं। स्वयं की चेतना के प्रति सजगता ही उन्हें अच्छे शिक्षक की भूमिका में स्थापित कर सकती है।
इंद्र देवों का राजा है। उपनिषदों में इंद्र को आत्मा कहा गया है। देवलोक गलत और सही की चेतना से परे होता है क्योंकि वहाँ शरीर नहीं चेतना काम करती है। आत्मा काम करती है। सभी ऊर्जा स्वरूप होते हैं। इसलिए तो जब मानव स्वरूप में वे अपनी ऊर्जा को बांधते हैं तो मानस पुत्र, पुत्री या अवतार नाम देते हैं। ऊर्जा या चेतना के द्वारा सांसारिक भूल नहीं होती है। वह सिर्फ प्रतीकात्मक होते हैं।
जिस उद्देश्य से मानस पुत्री अहिल्या का जन्म हुआ था क्या वह भूलोक में उस उद्देश्य की पूर्ति में संलग्न है या सांसारिक भोग में लिप्त है, इसका परीक्षण करने इंद्र और चन्द्र आए थे।
जैसे हमारे बच्चे पढ़ाई में ध्यान दे रहे हैं कि नहीं, इसकी जांच हमलोग करते रहते हैं। उनकी गतिविधियों से हमें पता चल जाता है कि वह अपना काम सही से कर रहे हैं या नहीं।
वैसे ही ब्रह्म चेतना को भी आभास हो जाता है कि उनके द्वारा भेजी गई चेतना सही से काम कर रही है या नहीं। वह उन्हें सचेत करने आते रहते हैं। इंद्र भी अहिल्या की चेतना को जगाने आए थे। अहिल्या एक उच्च स्तरीय चेतना थी। पर सांसारिक भोग-विलास में वह अपने कार्य को भूल चुकी थी।
यदि यह बात उन्हें सीधा बताया जाता कि उन्होंने अपनी चेतना की प्रखरता को त्याग दिया है, अपने कार्य को भूल चुकी है और संसार में लिप्त हो गई हैं तो वह कभी नहीं मानती। इसलिए उनके सांसारिक भोग का प्रत्यक्ष अनुभव कराना आवश्यक था। उन्हें बताना आवश्यक था कि जिस उद्देश्य के लिए उन्हें भुलोक में भेजा गया है, उससे वह विमुख हो चुकी हैं। वह पति-पत्नी के सांसारिक संबंधों को जीने में संलग्न है।
इंद्र रूपी आत्मा ने उनके आत्मा से सम्पर्क किया। वह सचेत हुई। सामने पति गौतम को देखा। उनके मुख से निकला आप वहाँ हैं? अपने आत्मा के प्रकाश में उन्होंने गौतम के वास्तविक स्वरूप को देखा। उसके सहज सांसारिक स्वरूप को देखा। यह क्या?
ना मैं ब्रह्म रूप रह पाई।
ना ही पति के तेज को परिस्कृत कर पाई।
इस सोच से वह कुंठित हुई। दुखी हुई।
वह दुखी इंद्र के झकझोरने से नहीं है।
वह दुखी है कि उसकी चेतना सो क्यों गई ?
वह दुखी है कि वह ब्रह्म तत्व से विमुख कैसे हो गई?
वह दुखी है कि वह गौतम तक ही सिमट कर कैसे रह गई?
गौतम भी दुखी हुए। अहिल्या सांसारिक भोग में इतनी लिप्त हो गई कि उसे अपने ब्रह्म स्वरूप का भी ख्याल नहीं रहा। गौतम उससे विरत होकर बोले – जाओ, शिला बन जाओ। मतलब एक जगह स्थिर हो जाओ। तुम समाधि में चली जाओ। खुद को ढूंढो।
अहिल्या शिला बन गई। जड़ बन गई। समाधिस्थ हो गई। वह स्वयं में विलीन हो गई।
अच्छा!
तो फिर गौतम उन्हें छोड़कर क्यों चले गए? मोना ने प्रतिप्रश्न पूछा।
अहिल्या के दुःख से गौतम भी व्यथित हो गए। उन्हें लगा कि हमारे कारण अहिल्या अपने उद्देश्य को भूल गई। अपने प्रखर चेतना से दूर हो गई। ब्रह्म तत्व को भूल गई।
मैं यहां रहूँ तो शायद पुनः संसार में लिप्त हो जाए। इसलिए वह उनकी साधना से दूर चले गए। हिमालय में जाकर स्वयं की साधना में तल्लीन हो गए। यह घटना अहिल्या के लिए भी और गौतम के लिए भी आत्म-अनुसंधान का रास्ता दे गया। दोनों आत्मा के अनुसंधान में लग गए। पर गुरु बिन ज्ञान असम्भव है। वर्षों दोनों रौशनी की तलाश में रहे। गुरु को ढूंढते रहे।
अंततः गुरु को आना पड़ा। शिष्य जब तप पर अड़ जाए तब देव तत्व को गुरु बनकर आना ही पड़ता है। श्रीराम गुरु बनकर आए। उन्होंने अहिल्या को ब्रह्म तत्व की शिक्षा पुनः दी।
अहिल्या के साथ गौतम के पास गए। पारिवारिक जिम्मेदारी के साथ लोक-कल्याण का सन्तुलन ही व्यक्ति को ब्रह्मवेत्ता बनाता है। दोनों ने शिक्षक के गुरु दायित्व को ग्रहण किया और समाज को नवीन ज्ञान देने के लिए पुनः एक साथ हो गए।
यह कहानी सिर्फ अहिल्या, गौतम या राम की नहीं है। यह त्रिकोण सभी के जीवन का सत्य है। जहां एक क्षण की भी सजगता गई, जीवन भर की पूंजी समाप्त हो जाती है।
अहिल्या इसका उदाहरण है। पूंजी यहां विवेक के सन्दर्भ में है। प्रत्येक मानस पुत्र-पुत्री यानी प्रत्येक मनुष्य, उन्नत प्रखर चेतना के साथ भूलोक पर भेजा जाता है। सांसारिक जिम्मेदारी के निर्वहन के साथ लोक-कल्याण उनका कर्तव्य होता है। परमात्म स्वरूप इंद्र मानव आत्मा में हरदम आता है। वह देखता है कि मानव देवलोक की प्रखरता के प्रति सचेत है या सो गई है।
यदि प्रखर चेतना जागृत रही तो वह उसकी प्रखरता को नवीन चमक देगा। यदि आत्मा सो रही है तो पुनः वर्षों आत्म-अनुसन्धान करने को प्रेरित करेगा। आत्म-अनुसन्धान एकांतवास है। अन्तर्मुखी साधना है। यह आत्म-अनुसन्धान गुरु सानिध्य में सम्पूर्णता को प्राप्त करता है। आत्म-अनुसन्धान पर विजय प्राप्त करना ही अहिल्या का जागरण है। अहिल्या का पत्थर से जीवित हो जाना है।
जिसके पास विवेक नहीं है, जो ज्ञानहीन है, वह पत्थर के समान है।

जैसे ही उनमें विवेक की चेतना जगती है, वह पुनः जीवित हो उठता है, चैतन्य हो जाता है।
अहिल्या का पत्थर से पुनः मानस बनना इसी बात का प्रतीक है।
मतलब हम सभी अहिल्या की तरह ही ब्रह्म शक्ति से भरे हुए हैं और ब्रह्म का काम नहीं कर रहे हैं, मतलब पत्थर की तरह हैं। रवि ने पूछा।
हाँ, रवि। सही समझे तुम। हम सभी देव ऊर्जा के साथ धरती पर भेजे गए हैं, अच्छे समाज के निर्माण के लिए। हमें हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए।
पौराणिक कहानियों के गूढ़ रहस्य को समझकर हमें अपने जीवन को समझना होगा। उसके अनुकूल जीवन जीने की कला सिखनी होगी।
शिक्षिका ने यह कहते हुए आज के सभा को विसर्जित किया।

( कॉपीराइट  कलाकृति – सिद्धेश्वर )

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