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– अलका मित्तल

ग़ज़ल

दिल में उम्मीद के फूलों को खिलाकर रखना
ख़्वाब पलकों पे नया रोज़ सजाकर रखना

रात के बाद यक़ीनन ही सहर होनी है
आरज़ू का दिया हर शाम जलाकर रखना

ख़ामियाँ लोग गिनाने में बड़े माहिर हैं
अपने किरदार को तुम ऊँचा उठाकर रखना

मैं बहक जाऊँ न दुनिया की चमक में मुझको
अपनी आँखों के दरीचों में छुपाकर रखना

ज़िन्दगी में हैं बहाने तो ख़ुशी के लाखों
सिलसिला इनसे हरिक हाल बनाकर रखना

है जुदाई की घड़ी टलने ही वाली अलका
वस्ल की शब में महक अपनी बसाकर रखना

 

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