– पुष्पा जमुआर
मैं प्रवाह हूँ
जीवन प्रवाहित है
प्रवाह है, रफ्तार है,
गतिमान है जिंदगी ।।
मैं प्रवाह हूँ ।
तुम्हारे इंकार को वरण करूँ
यह हो नहीं सकता,
मैं रुक नहीं सकती,
मैं मुड़ नहीं सकती,
मैं प्रवाह हूँ ।
तुम बाधित हो,
शौक से रहो
तुम ईर्ष्यालू हो
है, एहसास मुझे
पर मैं भी अकाट्य-अड़िग हूँ ।
मैं नदी हूँ, प्रवाह हूँ,
अनवरत कल-कल करती,
स्वतंत्र-स्वछंद बहती हूँ ।
हाँ! मैं प्रवाह हूँ ।
रफ्ता-रफ्ता झुक जाओगे
मेरे प्रवाह के आगे
मेरी कदमबोसी करेगा,
तुम्हारा कदम, और
इंकार को इक़रार में बदल देगा
मेरा प्रवाह, मैं प्रवाह हूँ ।
टीका नहीं बहाव में जो भी आ जाता है,
फिर तुम क्या हस्ती हो
गीली मिट्टी हीं तो हो
ईर्ष्या में डूबे हुए ।
मैं प्रवाह हूँ
बहती धारा हूँ
हाँ, मैं प्रवाह हूँ जीवित हूँ
तब बह जाओगे
मिट्टी बन कर, मुर्दों की बस्ती में
पनाहगाह होगा तुम्हारा ।
और तब ! अलौकिक मोतियों से
भर जाएगा मेरा दामन ।
क्योंकि मैं प्रवाह हूँ ।